________________
प्रोम् अहम्
अनेकान्त
परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
।
वर्ष २० किरण ६
वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण सवत् २४६४, वि० स० २०२४
{
फर्वरी
सन् १९६८
श्रेयो-जिन-स्तुतिः
अपराग समाश्रेयन्ननाम यमितोभियम् । विदार्य सहितावार्य समुतसन्नज वाजितः ॥४६ अपराग स मा श्रेयन्ननामयमितोभियम् । विदार्यसहितावार्य समुत्सन्नजवाजितः ॥४७
-समन्तभद्राचार्य
अर्थ-हे वीतराग ! हे मर्वज्ञ ! आप सुर, अमुर, किन्नर आदि सभी के लिए आश्रयणीय हैं-सेव्य हैसभी आपका ध्यान करते है, आप सबका हित करने वाले है अत: हिताभिलाषी जन सदा आपको घेरे रहते है
आपकी भक्ति वन्दना आदि किया करते है । आपकी शरण को प्राप्त हुए भक्त पुरुष भय को नष्ट कर-निर्भय हो, हर्ष मे रोमाञ्चित हो जाते है । आप पराग से-कपाय रज से--रहित है । ज्ञानवान् श्रेष्ठ पुरुषों से सहित है, पूज्य है, तथा राग-द्वेप रूप सग्राम से आपका वेग नष्ट हो गया है-आप राग-द्वेष से रहित है। मैं आपके दर्शनमात्र से ही आरोग्यता और निर्भयता को प्राप्त हो गया है । हे श्रेयान्स देव । मेरी रक्षा कीजिए ॥४६॥४७॥