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विषय-सूची
प्राकृत भाषा एवं साहित्य पर परिसंवाद विषय
। शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापूर के तत्वावधान में १ श्रेयो--जिन-स्तुति----समन्तभद्राचार्य २४१
विश्वविद्यालय अनुदान पायोग की सहायता से इसी ग्रीप्मा२ कारी तलाई की जन मूर्तियां-१० गोपीलाल
वकाश में बुधवार दिनाक २२ मई से २५ मई तक प्राकृत 'अमर' एम. ए
भाषा एव माहित्य, पर एक परिसवाद प्रायोजित किया
गया है, देश के प्रसिद्ध विद्वान विशेष कर प्राकृत भाषा और ३. समर्पण और निष्ठुरता-मुनि कन्हैयालाल २४६ साहित्य के पडित इस परिमवाद मे सम्मिलित हो रहे है, ४. वादामी चालुक्य अभिलेखो मे वणित जैन
प्राकृत भाषायों के अध्ययन का महत्व सर्वविदित है, मम्प्रदाय तथा प्राचार्य-प्रो० दुर्गाप्रसाद हिन्दी, मगठी, गुजगती प्रादि आधुनिक भारतीय भाषाम्रो दीक्षित एम. ए.
01 की उत्पत्ति और विकास भिन्न-भिन्न प्राकृतो से हुआ है, ५. एलिचपुर के राजा श्रीपाल उफ ईल
इतना ही नही द्रविड कुल की कन्नड आदि भाषाम्रो का नेमचन्द धन्नूसा जैन
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शब्द भडार भी प्राकृतो की सहायता से ही समृद्ध हुआ है ६. वैधता और उपादेयता-... डा. प्रद्युम्नकुमार
भारत के प्राचीन शिलालेख, नाटक, अलकार प्रथ और जैन
मुक्तक माहित्य में प्राकृत भाषाओं का महत्व पूर्ण स्थान है बुधजन के काव्य मे नीति-गगागम 'गग'
पाली में लिग्वित त्रिपिटक के समान अर्धमागधी में रचित
प्रागम साहित्य भी महत्वपूर्ण है, भारतीय विचारधारा तथा एम ए.
मस्कृति की ममृद्धि मे प्राकृतिक साहित्य का विशेष योगदान मोक्षमार्ग प्रकाशक का प्रारूप -- बालचन्द
है, भारतीय विद्या विभिन्न क्षेत्रो में प्रसृत है। एतद्सबधी मिद्धान्त शास्त्री-परमानन्द शास्त्री
गोध-कार्य प्राकृत भाषा एव साहित्य के अध्ययन के बिना ६ श्रमण सस्कृति का प्राचीनत्व-मुनि श्री
अधग ही रहेगा, प्राकृत भाषा और साहित्य में पाश्चिमात्य विद्यानन्द
एवं पौर्वात्य पहितो ने व्यक्तिगत रूप से अनुसंधान किया है १०. यशस्तिलक का सास्कृतिक अध्ययन- - डा.
और कर भी रहे है, जितना कार्य हा है उससे अधिक गोकुलचन्द जैन प्राचार्य एम.ए पी-एच डी २७३
शोध कार्य शेष है, अपने देश में इसके लिए विपुल साहित्य ११. कविवर देवीदाम का पदपकत-डा० भाग
और माधन उपलब्ध है, इस क्षेत्र मे आज तक किए गये चन्द एम ए पी-एच डी.
अनुसधान के परिदेश मे, भारतीय विद्यानो की ममृद्धि के १२. माहित्य-समीक्षा--परमानन्द शास्त्री
| लिए भविष्य में जो कुछ कार्य करना है उसका दिशा१३ अनेकान्त के २०वे वर्ष की विषय-सूची २८७ / दर्शन इस परिसवाद में किया जायगा।
प्राकृत के प्रसिद्ध पडित डा० परशुराम लक्ष्मण वैद्य सम्पादक-मण्डल
जी के नेतृत्व मे इस परिसवाद की तैयारी का प्रारम्भ हो डा० प्रा० ने० उपाध्य
चुका है। अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन के भूतडा० प्रेमसागर जेन
पूर्व अध्यक्ष, डा. आ. ने. उपाध्ये, डीन कला-सकाय श्री यशपाल जैन
शिवाजी विश्वविद्यालय, इम परिसवाद के निर्देशक है ।
२८२ प्रनुसका।
अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक मण्डल उत्तरदायी नहीं है। -व्यवस्थापक अनेकान्त |
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