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स्वर्गीय नरेन्द्रसिंह सिंघी का संक्षिप्त परिचय
स्वर्गीय नरेन्द्र सिंह सिघी पात्मज स्वर्गीय बहादूर करके अकाल पीडितों की सहायता की। आपने लागत से सिह सिघी का जन्म ४ जुलाई सन १९१० मे हुआ था। कम मूल्य पर दिल खोल कर चावल का वितरण किया।
ने अपने जीवन काल में जन संस्कृति एव साहित्य इन लोकहितकर प्रवृत्तियो के अलावा राजनैतिक, की जो निष्काम सेवा की उसे भूलना कठिन है। वे सामाजिक, धार्मिक एव शिक्षा सम्बन्धी कार्यों में भी प्राप ईा-द्वेष से रहित अत्यन्त सौम्य एव धर्मनिष्ठ व्यक्ति भाग लत थे। अपनी उदार दृष्टि के कारण सन् १९४५ थे। पिता ने अपने दूरदर्शी एव अनुभवी पुत्र को परखा में आप वगाल लेजिस्लेटिव एसेम्बली के सदस्य चुने गए। था और अपना समस्त कार्यभार उन्हे ही सौप गए थे। आप अखिल भारतीय प्रोसवाल महासम्मेलन के मत्री, जिसे उन्होने जीवन भर सुयोग्यता से निभाया । प्रगति सुप्रसिद्ध सिंघी पार्क मेला के कोपाध्यक्ष तथा जियागंज एव एकता के प्रबल समर्थक थे। उन्होने दूसरो को उपदेश सिविल इवाक्युएशन रिलीफ कमेटी के मत्री रहे। नही दिया वग्न स्वय प्रगति के पथपर चलकर दिखाया।
या। श्री सिघी जी जैन समाज के एक अग्रणी नेता थे । वे सरस्वती के वग्द पुत्र तो थे ही लक्ष्मी की भी उन पर
न शन" कलकत्ता को १० हजार रुपये असीम अनुकम्पा थी । लक्ष्मी एव सरस्वती का ऐसा ।
की सहायता दी थी। पाप उसके स्थायी ट्रस्टी थे । अनेक सुयोग विरल ही देखने को मिलता है।
वो तक मत्री तथा कोषाध्यक्ष के पद पर भी रहे। पाप सिंघी जी एक होनहार विद्यार्थी थे। प्रेसीडेन्सी कुछ दिनो तक इसके सभापति भी रहे। सम्मेलन शिखर कालेज कलकत्ता से बी० एस० सी० तथा एम० एस० सी० तीर्थधाम के मन्दिरो के जीर्णोद्धार का कार्य एवं प्रतिष्ठा की परीक्षामो मै सर्वप्रथम रहे और स्वर्णपदक भी प्राप्त महोत्सव की सुव्यवस्था आपके अत्यन्त प्रशसनीय कार्य है । किया। सन १९३४ ई० में उन्होंने वकालत की डिग्री आपकी इस सेवा के लिए समस्त जैन समाज पापका भी प्राप्त की।
आभारी है। जीर्णोद्धार समिति को मापने ११००१ रुपये नरेन्द्र सिंह जी सन् १९३६ से १६४५ तक जियागज
की धनराशि भेट की थी। आप भारत के जैन महामडल एडवर्ड कारोणेशन (जिसका नाम आजकल राजा विजय
के उपाध्यक्ष भी थे। सिह विद्यामन्दिर है) अवैतनिक मन्त्री रहे । सन् १९४६ स्व. बाबू बहादुरसिहजी मिची ने जिस सिधी प्रथमाला से १९५५ तक श्रीपति सिह कालेज मुर्शिदाबाद के भी की स्थापना "भारतीय विद्या भवन" बम्बई मे की थी अवैतनिक सचिव रहे तथा लालबाग में उन्होने अबतनिक उस कार्य को भी नरेन्द्रसिह जी सिघी ने आगे बढ़ाया। मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया । सन् १९४६ में वे बनारस इसका व्यय अपने ज्येष्ठ म्राता के सहयोग से पूरा किया। हिन्दू विश्वविद्यालय के कोर्ट के सदस्य रहे। सिधी हाई वाब बहादुरसिह जी की मृत्यु के बाद भी ग्रंथमाला का स्कूल लालबाग, केशरकुमारी बालिका विद्यालय अजीम- कार्य (प्रकाशन) आगे की ही भांति हो रहा है । इस गज तथा अन्य शिक्षा संस्थानो, जिनमे भारतीय विद्या प्रथमाला के तत्वावधान में अब तक ४५ ग्रथ प्रकाशित भवन भी शामिल है आपने पूर्ण रूप से आर्थिक सहायता हो चुके है जिनमे कई सामायक, दार्शनिक, साहित्यिक, की। आपने लन्दन मिशनरी अस्पताल में एक वार्ड भी ऐतिहासिक, वैज्ञानिक एवं कथात्मक इत्यादि विषयों से बनवाया।
सबधित है। प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों का नूतम संशोधसिंघी जी अपने प्रेम के कारण सर्वविदित थे। सन् नात्मक साहित्यिक प्रकाशन भी हुआ है। १९४२ के बंगाल दुर्भिक्ष में आपने लाखो रुपये व्यय मापने इसके अतिरिक्त अनेक लोकहितकारी धार्मिक