Book Title: Anekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 237
________________ भगवान महावीर और बुद्ध का परिनिर्वाण अणुव्रत परामर्शक मुनि श्री नगराज मन्तिम वर्षावास बुद्ध राजगृह से वैशाली प्राये। वहाँ कुछ दिन रहे। वर्षावास के लिए समीपस्थ वेलुव-ग्राम (वेणु-ग्राम) में माये । अन्य भिक्षुमो को कहा-"तुम वैशाली के चागे ओर मित्र, परिचित आदि देखकर वर्षावास करो।" यह बुद्ध का अन्तिम वर्षावास था। वर्षावास में मरणान्तक रोग उत्पन्न हुआ। बुद्ध ने सोचा, मेरे लिए यह उचित नही कि मै उपस्थाको और भिक्षु-सघ को बिना जतलाये ही परिनिर्वाण प्राप्त करू । यह सोच उन्होंने जीवन-सस्कार को दृढतापूर्वक धारण किया । गेग शान्त हो गया। शास्ता का निरोग देखकर मानन्द ने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा-"भन्न ! आपकी अस्वस्थता से मेरा शरीर शन्य हो गया था । म दिशाए भी नही दीख रही थी। मुझे धर्म का भी भान नहा होता था ।" बुद्ध ने कहा--"प्रानन्द ! मै जीर्ण. वृद्ध, महल्लक, अध्वगत, वय प्राप्त है। अस्सी वर्ष की मेरी अवस्था है। जैसे पुराने शकट को बांध -बध कर चलाना पड़ता है, वैसे ही मैं अपने आप को चला रहा है। मैं अब अधिक दिन कसे चलगा? इसलिए प्रानन्द प्रात्मदीप, प्रात्मशरण, अनन्यशरण, धर्मदीय, धर्मशरण अनन्यशरण होकर विहार करो।" मानन्द को भूल ___एक दिन भगवान चापाल-चैत्य में विश्राम कर रहे थे । प्रायुप्मान उनके पास बैठे थे। प्रानन्द से भगवान् ने कहा-.-"आनन्द । मेने चार ऋद्धिपाद साये है। यदि चाहूँ तो मै कल्प भर ठहर सकता हूं।" इतने स्थूल सकेत पर भी प्रानन्द न समझ सके। उन्होने प्रार्थना नही को१. अत्तदीया विहरथ, अत्तसरणा, अनब्रसरणा, धम्मदीपा, धम्मसरणा, प्रनञ्जसरणा। "भगवन् ! बहुत लोगो के हित के लिए, बहुत लोगो के सुख के लिए आप कल्प भर ठहरे।" दूसरी बार और तीसरी बार भी भगवान् ने ऐसा कहा, पर आनन्द नहीं समझे। मार ने उनके मन को प्रभावित कर रखा था। अन्त मे भगवान् ने बात को तोड़ते हुए कहा-"जाग्रो प्रानन्द ! जिसका तुम काल समझते हो।" मार द्वारा निवेदन आनन्द के पृथक् होते ही पापी मार भगवान के पास पाया और बोला---"भन्ते । आप यह बात कह चुके है-- 'मै तव तक परिनिर्वाण को प्राप्त नही करूँगा, जब तक मेरे भिक्ष-झिक्षणिया, उपासक-उपाशिकाएँ आदि सम्यक् प्रकार से धर्मारूढ, धर्मपथिक और आक्षेप-निवारक नही हो जाएगे तथा यह ब्रह्मचर्य (बुद्ध-फर्म) सम्यक प्रकार से ऋद्ध, स्फीत व बहु जन-गृहीत नही हो जायेगा ।' भन्ते । अब यह मब हो चुका है। आप शीघ्र निर्वाण को प्राप्त करे ।" भगवान् ने उत्तर दिया-"पापी। निश्चिन्त हो प्राज से तीन मास पश्चात् मै निर्वाण करूगा।" भूकम्प तब बुद्ध ने चापाल चैत्य में स्मृति-सप्रजन्य के साथ प्राय सरकार को छोड़ दिया। उस समय भयकर भुकम्प हुअा। देव दुन्दुभियाँ बजी। मानन्द भगवान के पास आये और बोले "आश्चर्य भन्ने ! अद्भुत भन्ते !! इस महान भूकम्प का क्या हेतु है ? क्या प्रत्यय है ? भगवान् ने कहा-भुकम्प के पाठ हेतु होते है। उनमे से एक हेतु तथागत के द्वारा जीवन-शक्ति का छोड़ा जाना है। उसी जीवन-शक्ति का विसर्जन मैने अभी-अभी चापाल-चैत्य मे किया है। यही कारण है, भूकम्प आया, देव-दुन्दुभिया बजी।" यह सब सुनते ही आनन्द को समझ आई, कहा"भन्ते । बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय आप कल्प-भर ठहरे ।" बुद्ध ने कहा-"अब मत तथागत से प्रार्थना

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