Book Title: Anekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 249
________________ केशि-गौतम-संवाद श्री पं० बालचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री श्वेताम्बर सम्प्रदाय मे एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उत्तरा- समन्वयात्मक दृष्टिकोण से विचार किया गया है वह ध्ययन प्रसिद्ध है । उसकी गणना मूल-सूत्र आगमो मे प्रथम बहुत ही आकर्षक है। मूलसूत्र के रूप में की जाती है। इसमे विनय व परीषह इस अध्ययन में ८६ मूत्र है जो अनुष्टुप् वृत्त में है। प्रादि ३६ अध्ययन है । उनमें तेईसवा अध्ययन 'केशि-गोत- प्रथम सूत्र द्वारा भगवान पार्श्व जिनेन्द्र का स्मरण करते मीय' है जो विशेष महत्त्वपूर्ण है। इसमें भगवान् पार्श्व हुए उन्हें अहंत, लोकपूजित, सम्बुद्धात्मा, सर्वज्ञ और जिनके एक शिष्य केशिकुमार श्रमण और वर्धमान स्वामी धर्म-तीर्थकर कहा गया है। के प्रमुख गणधर का मधुर मिलन होने पर जो दोनो के इस प्रसग को लेकर प्रस्तुत ग्रन्थ के एक वृत्तिकार मध्य में प्रश्नोत्तर हए उनका रोचक वर्णन है, जो बहुत श्री मिचन्द्र ने अपनी सखबोधा वत्ति में इस प्रथम सूत्र उपयोगी है । अपने को स्याद्वादी ख्यापित करने वाले बीपीका मे भ. पाश्र्व जिन के चरित्र का चित्रण किया है जैन महानुभाव यदि इस अध्ययन को पढ़े, मनन करे, २५-६५) जो किसी अन्य ग्रन्थ से जैसे का तर और जीवन में उतारं तो वर्तमान कलुषित वातावरण लिया गया प्रतीत होता है। सर्वथा समाप्त हो जाय। इसमे पारस्परिक द्वैविध्य के मागे (सू २-४) कहा गया है कि भ पार्श्व जिनेन्द्र के विषय मे जो एक दूसरे को सम्मान देते हुए' सौजन्यपूर्ण एक महायशस्वी शिष्य केशिकुमार श्रमण---जो ज्ञान और १ पारस्परिक सम्मान का पता इससे सहज मे लगता है चारित्र के पारगामो होते हुए अवधिज्ञान और श्रुतज्ञान कि गौतम प्रमुख गणघर होकर भी ज्येष्ठ कुल का से बुद्ध (तत्त्ववेत्ता) थे--प्रामानुग्राम विहार करते हुए विचार करके केशिकुमार श्रमण से मिलने के लिए अपने शिष्यसमुदाय के साथ श्रावस्ती पुरी में पाये और स्वय उनके स्थान पर जाते है। यथा नगरी के समीप तिन्दुक उद्यान मे प्रासुक शय्या-सस्तारक गोतमे पडिरूवण्णू सीससघसमाउले । (वसतिगत शिलापट्ट आदि) पर ठहर गये । जेट्ठ कुलमवेक्खतो तेदुय वणमागयो ।।१५।। इसी समय लोकविश्रुत भगवान् वर्षमान धर्म-तीर्थकर उधर उनको पाता हुआ देखकर कैशिकूमार भी के महायशस्वी शिष्य गौतम भी-जो ज्ञान व चारित्र के शीघ्रतापूर्वक स्वागत करते हुए उन्हे समुचित प्रासन पारगामी, बारह अगों के वेत्ता व बुद्ध थे-ग्रामानुग्राम आदि देते है। यथा विहार करते हुए अपने शिष्यवर्ग से वेष्टित होकर उपकेसीकुमारसमणो गोयम दिस्समागय । युक्त पुरी मे माये और नगर के समीप कोष्ठक उद्यान में पडिरूव पडित्ति सम्म सपडिवज्जती ॥१६॥ साह गोयम पन्ना ते छिन्नो मे ससमो इमो। पलाल फासुय तत्थ पचम कुसतणाणि य । अन्नोऽवि संसमो मज्झत मे कहसु गोयमा ।। गोयमस्स णिसिज्जाए खिप्प सपणामए ॥१७॥ (२८ व ३४ प्रादि) इसी प्रकार केशिकुमार के द्वारा पूछे गये प्रत्येक १ प्रकृत ग्रन्थ के कितने ही सस्करण विविध टीकाप्रश्न का गौतम के द्वारा समाधान करने पर बार टिप्पणो के साथ निकल चुके है। किन्तु हमारे सामने बार केशिकुमार के श्रीमुख से गौतम की बुद्धिचातुर्य वह श्री नेमिचन्द्र की इस सक्षिप्त सुखबोधा वृत्ति की प्रशसा मे निम्न सूत्र कहलाया जाता है सहित है।

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