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शिरपुर का जैन मन्दिर दिगम्बर जैनियों का ही है
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जैनधर्म में सम्यक ज्ञान की कितनी महिमा है, यह जो संस्थाएं इस दिशा में प्रयत्नशील हैं, उन्हें मैं बधाई बताने की आवश्यकता नही । यह ज्ञान तटस्थ प्रात्मा का देता हैं। पर वे मेरी इस बात से सहमत होगी कि अब समग्रभाव युक्त ज्ञान है। वही ज्ञान हमारे ज्ञान और समय तेजी से प्रागे बढ़ने को आ गया है । अब जबकि कर्म को एकत्व भाव प्रदान करता है। आज इसी की चन्द्रलोक मे जाने और वहां बसने की चेष्टाए हो रही है, आवश्यकता है और हमारी शिक्षा-सस्थाओ को अब आगे हमे अपने वर्तमान प्रयत्नों से संतुष्ट नहीं रहना चाहिए । इसी दिशा में निष्ठापूर्वक प्रयास करना चाहिए । 'चरैवेति' के मूलमत्र को सामने रखकर गतिपूर्वक मागे
बढ़ना चाहिए। प्राचार्य विनोबा के शब्दो में, "अग्नि की दो शक्तियां बहनो और भाइयो, मैंने आपका बहुत समय ले लिया मानी गई है । एक 'स्वाहा', दूसरी 'स्वधा'। ये दोनों क्षमा करे। मैं नही जानता कि ये विचार मापके लिए शक्तिया जहा है, वहां अग्नि है । 'स्वाहा' के मायने है । कितने उपयोगी होगे । मै मानता हूँ कि अब समय कहने आत्माहुति देने की, आत्म-त्याग की शक्ति और 'स्वधा से अधिक करने का है । मैं एक बार पुनः प्रापका पाभार के मायने है 'प्रात्मधारण करने की शक्ति ।" ये दोनो मानता है और आपने मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनी, उसके शक्तिया हमारे शिक्षण मे जाग्रत होनी चाहिए। लिए आपको धन्यबाद देता हूँ।
शिरपुरका जैनमन्दिर दिगम्बर जैनियों का ही है
सुप्रसिद्ध इतिहासकार डा० देशपांडे का अभिमत नागपुर बुधवार । “उपलब्ध सभी ऐतिहासिक प्रमाणों केवल दिगम्बर जैन ही थे । उस समय श्वेताबरी पथ से गिरपुर का प्रतरिक्ष पार्श्वनाथ जी का मन्दिर और अत- अस्तित्व मे नही था, गत २०० माल से श्वेतांबरियों ने रिक्ष पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा, ये दोनों पूर्ण निर्ग्रन्थ व व्यापार के बहाने विदर्भ मे प्रवेश किया। दिगम्बर जैनों के है । इसमे किचित् मात्र भी शका नहीं" करीब २०० साल पहले तक विदर्भ मे एक भी श्वेताऐसा वक्तव्य भारत के मान्यवर ८६ वर्षीय इतिहासकार बरी मन्दिर अथवा प्रतिमाये नही थीं, तदुपरात श्वेताबरिडा. य. खु. देशपाडे ने दिया है।
यों ने योजनायें बनाकर दिगम्बर जैन मन्दिगे और मूर्तियों डा. देशपाडे ने इतवारी स्थित श्री दि. जैन सेनगण
पर पूजा का हक स्थापित करने का प्रयास किया। इस
प्रयास द्वारा ही उन्होंने श्री अतरिक्ष पार्श्वनाथ जी मन्दिर मन्दिर के प्रांगण में, नागपुर दि. जैन बघेरवाल मडल के तत्वावधान में आयोजित परिचय समारोह की जाहिर सभा
पर कुछ अंशों मे हक स्थापित किया । डा. देशपाईने अपील में भाषण देते हुए उक्त रहस्योद्घाटन किया। अध्यक्षता
को कि दोनों सम्प्रदायो के लोगों को धर्म का प्रचार कर
हिंसा को तिलाजली देना चाहिये । मन्दिर और प्रतिमाये नागपुर दि. जैन बघेरवाल मडल के अध्यक्ष श्री व. क.
किसकी है, यह निश्चित करने का कार्य ऐतिहासिक प्रमाणों गरीबे ने की।
पर छोड देना चाहिए । डा. देशपाडे ने कहा की सभी ऐतिहासिक प्रमाणों से प्रारभ में प्रो. मधुकर जी बाबगांवकर ने डा० देशपांडे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि करीब २००० साल पहले का परिचय कराया। इस अवसर पर प्रो. ब्रम्हानंद जी भारत में केवल दिगम्बर जैन धर्म और उसके मन्दिर देशपाडे, नेमचद डोणघावकर, मनोहर आग्रेकर के समयो(प्रतिमायें ) अस्तित्व में थे, और भगवान महावीर के चित भाषण हुए। प्रत में सचिव अरविंद जोहरापुरकर ने महानिर्वाण के बाद ५००-६०० साल तक भारतवर्ष में प्राभार प्रदर्शन किया।