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भारतीय वास्तुशास्त्र में जैन प्रतिमा सम्बन्धी ज्ञातव्य
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वहन ।
५. बृहस्पति-काञ्चनवणं, पीताम्बर, पुस्तकहस्त, हसवाहन । स्थापत्य-निदर्शनो में-महेत (गोंडा) की ऋषभनाथ ६. शुक्र-स्फटिकोज्ज्वल, श्वेताम्बर, कुम्भहस्त, तुरग- मूर्ति ; देवगढ की अजितनाथ-मूर्ति और चद्र-प्रभा-प्रतिमा;
फैजाबाद संग्रहालय की शान्तिनाथ-मूर्ति; ग्वालियर-राज्य ७ शनैश्चर-नीलदेह, नीला, पशुहस्त, कमठवाहन । की नेमिनाथ मूर्ति, जोगिन का मठ, (रोहतक) मे प्राप्त ८. राहु-कज्जलश्यामल, श्यामवस्त्र, परशुहस्त, सिहवाहन । पाश्वनाथीय मूर्ति---जिन-मूर्तियो मे उल्लेख है। महावीर । केतु-श्यामाङ्ग, श्वामवस्त्र, पन्नगवाहन, पन्नगहत।
की मूनि भारतीय संग्रहालय में प्राय सर्वत्र दृष्टव्य है।
ग्वालियर राज्य में प्राप्त कुबेर, चक्रेश्वरी और गोमुख की क्षेत्रपाल-एक प्रकार का भग्व है जो योगिनियो का
प्रतिमाए दर्शनीय है । देवगढ की चक्रेश्वरी मूर्ति बडी अधिपति है। आचार दिनकर में क्षेत्रपाल का लक्षण है
सुन्दर है । उसी राज्य (गंडवल) मे प्राप्त क्षेत्रपाल, देवकृष्णगौर काञ्चनपुंसर-कापलवणं, विगात भुजदड, गढ़ की महामानसी अम्बिका और श्रत-देवी: झांसी की वर्बर केश, जटाजूट-मण्डित, वासुकी कृतनिजोपवीत, लक्षक
रोहिणी, लखनऊ सग्रहालय की सरस्वती, बीकानेर की कृतमेखल, शेषकृतहार, नानायुधहस्त, सिंहाचर्नावत, प्रेता- श्रत-देवी ग्रादि प्रतिमाएं भी उल्लेखनीय है । मन, कुक्कुर-वाहन, त्रिलोचन ।
जैन मन्दिरश्रुतदेवियां विद्यादेवियां
आबू पर्वत पर जन-मन्दिर बने हे जिन्हे मन्दिर-नगर १. रोहिणी, २. प्रज्ञप्ति, ३ वज्रशृग्वला, ४. बज्रा
के रूप में अकित किया जा सकता है। इन मन्दिरों के कुशी, ५ अप्रतिचक्रा, ६. पुरुषदता, ७. का नोदेवी,
निर्माण में मगमरमर पत्थर का प्रयोग हुआ है। एक ८ महाकाली, ६. गौरी, १० गान्धारी, ११ महाज्याला,
मन्दिर विमलशाह का बनवाया हया है और दूसरा तेज१२. मानवी, १३. बैरोटया, १४. अच्छुता, १५ मानमी,
पाल तथा वस्तुपाल बन्धुम्रो का। इन मन्दिरो मे चित्रकारी १६. महामानमी।
व स्थापत्य-भूषा-विन्यास बड़ा ही दर्शनीय है। टि. १ इनके लक्षण यक्षणियो मे मिलते-जुलते है।
काठियावाड प्रान्त मे पालीताणा राज्य मे शत्रजय टि० २ श्री (लक्ष्मी), सरस्वती और गणेश का भी नामक पहाडी जैन मन्दिरों से भरी पड़ी है। जैनी लोगों जैनियों में प्रचार है। प्राचार-दिनकर मे इनके लक्षण का प्राव के समान यह भी परम पावन तीर्थ स्थान है। बादाण-प्रतिमा लक्षण से मिलते-जुलते है। शाति-देवी के काटियावाड के गिरनार पर्वत पर भी जैन-मन्दिर्गे की नाम से भी श्वेताम्बरों के ग्रथों में एक देवी है जो जैनियों भरमार है। जैनो के इन मन्दिर नगरों के अतिरिक्त की एक नवीन उद्भावना कही जा सकती है ।
अन्य बहुत मे मन्दिर भी लब्धप्रतिष्ठ हैं जिनमे प्रादिनाथ टि. ३ योगिनिया--जनो को ६४ योगिनिया में का चौमुग्व-मन्दिर (मारवाड) तथा मैमूर का जन-मन्दिर ब्राह्मणों से बलक्षण्य है । अहिसक एव परम वैष्णव जैनियो विशेष उल्लेखनीय है। अन्य जैन-मन्दिर पीठो में मथुरा, मे योगिनियो का आविर्भाव उन पर तान्त्रिक आचार एव काठियावाड (जूनागढ) में गिरनार, इलौरा के गहा-मन्दिरो तान्त्रिकी पूजा का प्रभाव है। जैनो की शाक्तर्चा पर हम में इन्द्र-सभा और जगन्नाथ,सभा, खजुराहो, देवगढ धादि पीछे सकेत कर चुके हैं।
विशेप विश्रुत है।
स्वावलम्बन-जिन्होंने अपनी इन्द्रियों तथा मन पर नियन्त्रण कर लिया है, वे मानव इस संसार में स्वतन्त्र हैं । जो इन्द्रियों के दास हैं, वे परतन्त्र हैं । स्वतन्त्रता मुक्ति है । परतन्त्रता बन्धन है । स्वतन्त्रता विकास का मार्ग है, परतन्त्रता हास का मार्ग है। अपने जीवन-निर्माण में वे ही सफल होते हैं, जो प्रत्येक क्रिया में स्वावलम्बी होते, परमुखापेक्षी नहीं होते।