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भारतीय वास्तुशास्त्र में जन प्रतिमा सम्बन्धी ज्ञातव्य
होता है। यह विशिष्टता गुप्त काल से प्रारम्भ होती है, २४ नोर्यकर शासन-देवियां (यक्षिणियां) जब से तीर्थकरों की प्रतिमाओं में यक्ष-यक्षिणियो का अनि- १ आदिनाथ (ऋषभ) वृषभ चक्रेश्वरी च. वार्य साहचर्य बन गया।
२ अजितनाथ गज रोहिणी - अजितबला जैन-प्रतिमा की तीसरी विशेषता गन्धर्व माहचर्य है। ३ सम्भवनाथ अश्व प्रज्ञावती दुरितारि यद्यपि प्राचीनतम प्रतिमानो (मथुरा, गाधार) में यक्षा
४ अभिनन्दननाथ बानर । यनशंखना काली का निवेश नही; परन्तु गन्धर्वो के उन मे दर्शन अवश्य ५ मुमतिनाथ क्रोच नरदत्ता म.काली होते हैं । मथुरा की जैन मूर्तियो मे एक प्रमुग्ब विशिष्टता पद्मप्रभु पद्य मनोवेगा श्यामा उनकी नग्नता है । गुप्त कालीन जैन प्रतिमाये एक नवीन- मुपार्श्वनाथ स्वस्तिक कालिका शान्ता परम्परा की उन्नायिका है । यक्षो के अतिरिक्त शामन ८ चन्द्रप्रभु चन्द्र ज्वालामालिनी ज्याला देवतापो का भी उनमे समावेश किया गया, धर्म-त्र-द्रा ६ मुविधिनाथ मकर महाकाली सतारा का भी यही से श्री गणश हुआ
१० गीतलनाथ श्रीवत्म मानवी अशोका जैन प्रतिमाओं के विकास में सर्वप्रथम प्रतीक परम्ग
११ श्रेयागनाथ गण्डक गौरी मानवी का मूलाधार है । प्रायाग पटो पर चित्रित जिन प्रतिमा १२ वासुपूज्य
महीप गंधारी प्रचण्डा इसका प्रबल निदर्शन है । प्रायाग पट्ट एक प्रकार के प्रगस्ति।
वगह विराट विदिता पत्र अथवा गुणानुकीर्तन पत्र (Tables of hamage) है।
। १४ अनन्तनाथ १०
श्यन अनन्तमती अकुश इनमें जिन प्रतिमाये लॉछन शन्य है। कुशान कालीन जैन १५ धमनाथ
वन मानसी कदर्पा प्रतिमाय प्राचीनतम निदर्शन है। इनके तीन वर्ग है- १६ शातिनाथ मृग महामानसी निर्वाणी स्तूपादि मध्य प्रतिमा, पूज्य प्रतिमा, तथा आयाग पट्टीय १७ कथ
छाग घया बला प्रतिमा । हिन्द्र त्रिमूर्ति के सदग । चौमुखी या सर्वतो भद्र १८ अग्नाथ नन्द्यावत विजया धारिणी प्रतिमा में चारों कोणो पर चार 'जिन' चित्रित किए जाते १६ मल्लिनाथ कलश अपराजिता वैराट्या है। प्रत्येक तीर्थकर का प्रथक-प्रथक चिन्ह है। जिसमे २० मुनिसुव्रत कूर्म बहुरूपा नरदत्ता नीर्थकर विशेष की अभिज्ञा (पहिचान) सम्पन्न होती २१ नामनाथ
नीलोत्पल चामुण्डा गाधारी है। पापाततः जिन प्रतिमा भी बौद्ध प्रतिमा के सदश ही
२२ नेमिनाथ
शख अम्बिका अम्बिका प्रतीत होती है परन्तु जिन प्रतिमा की पहचान प्राभरण २३ पार्श्वनाथ मर्प पद्मावती पद्मावती लकरण के वैशिष्ट्य से बुद्ध प्रतिमा से पृथक की जा २८ महावीर सिंह सिद्धायिका सिद्धायिका मकती है। इन आभरण लकरणों के प्रतीको में स्वस्तिक
शासन देव :स्तूप, दर्पण वेतशासन, दो मत्स्य, पुष्पमाला और पुस्तक १ दृषवक्त्र
११ यक्षेश विशेष उल्लेख्य हैं। सभी तीर्थकरो की समान मुद्रा नही । २ महायक्ष
१२ कुमार ऋषभ, नेमिनाथ और महावीर-इन तीनों की प्रामन ३ त्रिमुख
१३ षण्मुख मुद्रा में कैवल्य प्राप्ति की सूचक है अतः इन तीनो की ४ चतुरानन
१४ पाताल प्रतिमा अभिज्ञ मे वह तथ्य सदैव म्मरणीय है । अन्य शेष ५ नुम्बुरू
१५ किन्नर तीर्थकरो की प्रतिमा का कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रदर्शन ६ कुसुम
१६ गरुड आवश्यक है क्योंकि उन्हें इसी मुद्रा में निर्वाण प्राप्त हुआ ७ मातग
१७ गंधर्व] ८ विजय
१८ यक्षेश अस्तु संक्षेप में निम्न तालिका तीर्थङ्करों के लछन एवं जय
१९ कुबेर शासन-देव तथा शासन देवियों का क्रम प्रस्तुत करती है- १० ब्रह्मा
२० वरुण
था
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