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भगवान महावीर और गुड का परिनिर्वाण
२१९ प्रानन्द के प्रश्न
"पत प्रानन्द ! शोक करो, मत मानन्द ! रोपो। मैने आनन्द ने पूछा-"भगवन् ! अब तक अनेक दिशाओं कल ही कहा था, सभी प्रियो का वियोग अवश्यम्भावी है। में वर्षावास कर भिक्षु प्रापके दर्शनार्थ पाते थे। उनका आनन्द । तूने चिरकाल तक तथागत की सेवा की है। सत्सग हमे मिलता था। भगवन् ! भविष्य में किसका त कृतपुण्य है। निर्वाण-साधन मे लग। शीघ्र मनायव सत्संग करेंगे, किसके दर्शन करेंगे ?"
"प्रानन्द ! भविष्य में चार स्थान सवेजनीय (वैरा- कुसिनारा हो क्यों ? ग्यप्रद) होंगे
अानन्द ने कहा-"भन्ते । मत इस क्षुद्र-नगरक में १. जहाँ तथागत उत्पन्न हुए (लुम्बिनी)।
शाखा नगरक मे, जगली नगरक मे पाप परिनिर्वाण को २. जहाँ तथागत ने सम्बोधि-लाभ किया (बोधि-गया) प्राप्त हों । अनेक महानगर है- चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, ३. जहाँ तथागत ने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया साकेत, कौशाम्बी, वाराणसी, वहाँ पाप परिनिर्वाण को (मारनाथ)।
प्राप्त करे।" वहाँ बहुत से धनिक क्षत्रिय, धनिक ब्राह्मण ४. जहा तथागत ने निर्वाण प्राप्त किया (कुमिनाग) तथा अन्य बहुत से धनिक गृहपति भगवान् के भक्त हैं । "भन्ने ! स्त्रियो के साथ कैसा व्यवहार हो?" वे तथागत के शरीर की पूजा करेंगे। "प्रदर्शन ।"
आनन्द । मत ऐसा कहो। कुसिनारा का इतिहास "दर्शन होने पर भगवन् !"
बहुत बड़ा है । किसी समय यह नगर महासुदर्शन चक्रवर्ती "अनालाप।"
की कुशावती नामक राजधानी था । प्रानन्द ! कुसिनारा "पालाप आवश्यक हो, वहाँ भन्ते ।"
मे जाकर मल्लों को कह–'वाशिष्टो । प्राज रात के "स्मृति को संभाल कर अर्थात् सजग होकर पालाप अन्तिम प्रहर तथागत का परिनिर्वाण होगा । चलो करे।"
वाशिष्टो । चलो वाशिष्टो । नहीं तो फिर अनुताप "भन्ने । तथागत के शरीरको अन्त्येष्टि कैसे होगी?" करोगे कि हम तथागत के बिना दर्शन के रह गये।" "जैसे चक्रवर्ती के शरीर की अन्त्येष्टि होती है।"
आनन्द ने ऐसा ही किया। मल्ल वह सवाद पा "वह कैसे होती है भगवन् ।”
चिन्तित व दुःखित हुए। सब के सब भगवान् के बन्दन के "पानन्द ! चक्रवर्ती के शरीर को नये वस्त्र से लपेटते ।
लिए प्राये । आनन्द ने समय की स्वल्पता को समझ कर है। फिर रूई में लपेटते है। फिर नये वस्त्र से लपेटते है।
एक-एक परिवार को क्रमश: भगवान के दर्शन कराये । फिर तेल की लोह-द्रोणी में रखते है। फिर मुगन्धित
इस प्रकार प्रथम याम मे मल्लो का अभिवादन सम्पन्न काष्ठ की चिता बना कर चक्रवर्ती के शरीर को प्रज्वलित
हुआ। द्वितीय याम मे मुभद्रा की प्रव्रज्या' सम्पन्न हुई। करते है। तदनन्तर चौराहे पर चक्रवर्ती का स्तूप बनाते
अन्तिम प्रादेश
१. तब भगवान् ने कहा-"प्रानन्द ! सम्भव है, प्रानन्द का रुदन
तुम्हे लगे कि शास्ता चले गये अब उनका उपदेश तब आयुष्मान प्रानन्द विहार में जाकर कपिशीर्ष
शास्ता नही है । आन्द ! ऐसे समझना, "मैंने जो धर्म कहा (खूटी) को पकड कर रोने लगे-"हाय ! मैं शैक्ष्य है।
है, मेरे बाद वही तुम्हारा शास्ता है। मैंने जो विनय कहा मेरे शास्ता का परिनिर्वाण हो रहा है।" भगवान् ने
है मेरे बाद वही तुम्हारा शास्ता है। भिक्षुओं से पूछा-"प्रानन्द कहाँ है ?"
२. “अानन्द ! अब तक भिक्षु एक-दूसरे को 'प्रावुस' भगवन् ! वे विहार के कक्ष में रो रहे है।"
कहकर पुकारते रहे हैं। मेरे पश्चात् अनुदीक्षित को "उसे यहाँ लामो?" तब आयुष्मान् मानन्द वहाँ पाये । भगवान् ने कहा- १. पूरे विवरण के लिये देख,