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भगवान महावीर और बडका परिनिर्वाण
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जैसे घी और तेल के जलने पर कुछ शेष नहीं रहता, वैसे द्रोण ब्राह्मण ने मल्लो मे कहा-"यह निर्णय ठीक भगवान् के शरीर में जो चर्म, मास आदि थे, उनकी न नही । भगवान् क्षमावादी थे. हमे भी क्षमा से काम लेना राख बनी, न कोयला बना । केवल अस्थिया ही शेष रही। चाहिए । अस्थियों के लिए झगडा हो, यह ठीक नही। भगवान् के शरीर के दग्ध हो जाने पर आकाश में मेध पाठ स्थानों पर भगवान् की अस्थियाँ होगी, तो पाठ प्रादुर्भूत हुआ और उसने चिता को शात किया। स्तूप होगे और अधिक लोग बुद्ध के प्रति प्रास्थाशील
उस समय मल्लो ने भगवान् की अस्थिया अपने बनेगे।" सस्थागार मे स्थापित की । मुरक्षा के लिए शक्ति-पजर' मल्लो ने इस प्रस्ताव को पास किया । तदनन्तर द्रोण बनवाया । धनुष-प्राकार' वनवाया। अम्थियों के सम्मान ब्राह्मण ने अस्थियो के पाठ विभाग कर सबको एक-एक में नृत्य, गीत आदि प्रारम्भ किये ।
भाग दिया । जिस कुम्भ मे अस्थियां रखी थी, वह अपने धातु-विभाजन
पास रखा । पिणलीवन के मोर्य प्राये । अस्थियों बट चुकी उस समय मगधराज अजातशत्रु ने दूत भेज कर
थी, वे चिता से प्रगार (कोयला) ले गये। सभी ने अपनेमल्लो को कहलाया--"भगवान् क्षत्रिय थे, मे भी क्षत्रिय
अपने प्राप्त अवशेषो पर स्तूप बनवाये। है। भगवान् की अस्थियो का एक भाग मुझे मिले । मै स्तूप भगवान की एक दाढ स्वर्गलोक में पूजित है पोर बनवाऊँगा और पूजा करूगा। इसी प्रकार वैशाली के एक गधारपुर मे । एक कलिग राजा के देश में और एक लिच्छवियो ने, कपिलवस्तु के शाक्यो ने. मल्लकाय के को नागगज पूजते है । चालीम केश, गेम आदि को एकबुलियो ने, गम-गाम के कोलियो ने, वेठ-द्वीप के ब्राह्मणो एक करके नाना चबवालो मे देवता ले गये। ने, तथा पावा के मल्लो ने भी अपने पृथक्-पृथक् अधिकार -- - -- बतलाकर अस्थियो की माग की। कुसिनारा के मल्लाने १ एका हि दाठा तिदिवेहि पूजिता. निर्णय किया--"भगवान् हमारे यहाँ परिनिवृत्त हा है,
एका पन गधारपुरे महीयनि । अत हम किसी को अम्थियो का भाग नही देगे।"
कालिङ्गरओ विजिते पुनक,
एक पन नागराजा महेनि ॥......... १ हाथ मे भाला लिए पुम्पो का घेग ।
चसालीम समा दला, केसा लोमा च मन्चमो। २ हाथ में धनुप लिए पुरुषो का घेरा।
दवा हरिम एकेक, चक्कवालपरम्पग ति॥
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