________________
श्रीधर स्वामी की निर्वाण भूमि, कुण्डलपुर
पांचों पहाड़ियों में कुण्डलगिरि किसी का भी नाम नही मेरा वर्षों से मत चला पा रहा है जबकि अन्य स्थान था और न प्राज भी है। तब पच पहाड़ियो में उसकी सिद्ध नहीं होते। कल्पना का कोई आधार नहीं रह जाता फलतः कुण्डल- यह कहा जाता है कि यह अतिशय क्षेत्र है कारण गिरि स्वतंत्र निर्वाण भूमि है यह सिद्ध होता है नीचे प्रसिद्ध अत्याचारी शासक मोरंगजेब ने मूर्तिखडन करने लिखा प्राकृत निर्वाण भक्ति का उल्लेख भी इसे सिद्ध का यहाँ प्रयास किया था पर उसके सेवकों पर तत्काल करता है।
मधुमक्खियो का ऐसा आक्रमण हुआ कि वे सब भाग खडे अग्गल देवं वंदमि वरणयरे निवण कुण्डली वंदे।
हुए। इस अतिशय के कारण यह अतिशय क्षेत्र माना पासं सिरपुरि वंदमि लोहागिरि संख दीवम्मि। जाता है । निर्वाणभूमि अभी तक नही माना जाता। वरनगर मे अर्गलदेव (आदिनाथ) की तथा निर्वाणकुण्डली यहाँ एक प्रश्न है कि मोरंगजेब के काल में यह पतिक्षेत्र को श्रीपुर में श्री पार्श्वनाय को तथा लोहागिरि शय हुमा और तब से यह अतिशय क्षेत्र माना जाय पर शखद्वीप मे श्री पार्श्वनाथ को मे वंदना करता हूँ। क्षेत्र तो मोरंगजेब से बहुत पूर्व का है। छठवी शताब्दी की __इस निर्वाण भक्ति मे कुण्डली के साथ निर्वाण शब्द कला का अनुमान है । जैनेतर मदिर भी जिन्हे ब्रह्म मदिर
भी लगा है। इससे भी यह निर्वाण क्षेत्र सिद्ध है। पंच- कहते है छठी शताब्दी से वहाँ है ऐसा कहा जाता है। पहाड़ियों के नाम इस श्लोक मे नही है ताकि उसे उनमे तब छठी शताब्दी से औरगजेब काल तक १००० वर्ष तक से एक पहाडी मान लिया जाय।।
यह कौन सा क्षेत्र था। प्रस्तुत प्रमाणों से "कुण्डलगिरि कोई निर्वाण क्षेत्र है" कुण्डलाकार यह पर्वत ऐसा स्थान नही है जहाँ किसी यह सिद्ध हो गया। प्रश्न अब यह है कि वह स्थान कहां
राजा का किला या गढी है। जिससे यह माना जाय कि है कुण्डलपुर (बिहार) कुण्डल (ोध रियासत) तथा उसने मन्दिर और मूर्ति बनवाई होगी। कोई प्राचीन कुण्डलपुर (दमोह) म०प्र० ये तीन स्थान कुण्डल नाम से
विशाल नगर भी वहाँ नहीं है कि किन्हीं सेठों ने या है। ये तीनो भारत में स्थित है। चौथा कुण्डलगिरि
समाज ने मंदिर निर्माण कराया हो। तब ऐसी कौन सी जिसका उल्लेख मगलाष्टक मे पाता है वह मनुष्य लोक
बात है जिसके कारण यहाँ इतना विशाल मदिर और के बाहिर कुण्डलगिरि द्वीप में, वह तो निर्वाण भूमि नही
मूर्ति बनाई गई । तर्क से यह सिद्ध है कि यह सिद्ध भूमि हो सकता । अतः तीन का ही विकल्प शेष रहता है । इन
ही थी जिसके कारण इस निर्जन जंगल में किसी ने यह पर पागे विचार किया जाता है।
मंदिर बनाया तथा अन्य ५८ जिनालय भी समय-समय पर (१) बिहार प्रदेश का कुडलपुर भगवान महावीर
यहाँ बनाये गये जो आज भी सुशोभित हैं। ये जिनालय का जन्म स्थान माना गया है न कि निर्वाण भूमि । आज
वि० सं० ११०० से १६०० तक के पाए जाते है । सन् कल तो यह भी नही माना जाता बल्कि वैशाली कुडपुर मवत लेख रहित भी बीमो जित मिस उनकी जन्मभूमि सिद्ध हो चुका है।
है। वहाँ १७५७ का जो शिलालेख है वह मदिर के (२) प्रोध रियासत में कुण्डल रेलवे स्टेशन से २ निर्माण का नही बल्कि जीर्णोद्धार का है। लेख सस्कृत मील है जहाँ दो मन्दिर है पर वे भगवान पार्श्वनाथ के भाषा में है कि है। किन्तु यह निर्वाणभूमि नही माना जाता।
श्री कुन्द कुन्दाचार्य के मन्वय में यश: कीर्ति नामा (३) कुण्डलपुर (म० प्र०) यह दमोह से २० मील मुनीश्वर हुए उनके शिष्य श्री ललितकीर्ति तदनंतर धर्महै। कुण्डलाकार (गोलाकार) पर्वत है और मूल मन्दिर कीर्ति पश्चात् पपकीर्ति पश्चात् सुरेन्द्रकीर्ति हुए। उनके में (प्रख्यात नाम) श्री महावीर तीर्थकर की तथा यथार्थ शिष्य सुचन्द्रगण हुए जिन्होंने इस स्थान को जीर्ण-शीर्ण आदिनाथ भगवान की मूर्ति है।।
देखकर भिक्षावृत्ति से एकत्रित धन से इसका जीर्णोद्धार यह स्थान निर्वाणभूमि श्री श्रीधर स्वामी की है ऐसा कराया अचानक उनका देहावसान हो गया तब उनके