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राजस्थान के इतिहास निर्माण में जैन ग्रन्थ संग्रहालयों का महत्त्व
डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल
भारतीय इतिहास में राजस्थान का महत्वपूर्ण स्थान करें तो हमे मालूम होगा कि राजस्थान मे जैन ग्रंथ समहै । इतिहास के सैकडो पृष्ठ इस प्रदेश के निवासियों की हालय सबसे अधिक संख्या में मिलते है । ये अथ संग्रहालय वीरता एवं पराक्रम की कहानियो से भरे पडे है । वास्तव छोटे-छोटे गाँवों से लेकर बडं २ नगरो तक मे स्थापित में यहाँ के शासको एवं शासितो ने देश के इतिहास को किये हुए है। इन संग्रहालयों की निश्चित संख्या एवं कितनी ही बार मोड दिया था। यहाँ के रणथम्भौर, उनमे सग्रहीत पाण्डुलिपियो की संख्या बतलाना तो कठिन चित्तौर, भरतपुर, जोधपुर, जैसलमेर जैसे दुर्ग वीरता है लेकिन अब तक की खोज के प्राधार पर इतना प्रवश्य शोध एवं शक्ति के प्राधर स्तम्भ रहे थे किन्तु वीरता के कहा जा सकता है कि इन हस्तलिखित ग्रंथों की संख्या साथ साथ यहाँ भारतीय साहित्य एव सस्कृति के गौरव- १ लाख से कम नही होगो। जयपुर, बीकानेर, अजमेर, स्थल भी पर्याप्त संख्या में मिलते है। यदि राजस्थानी जैसलमेर, बूदी जैसे नगरी में एक से अधिक पथ संग्रहालय वीर योद्धाओ ने जननी जन्मभूमि की रक्षार्थ हँसते-हंसते है। अकेले जयपुर नगर में ऐसे २५ अथ भडार है जिनमें प्राणों को न्योछावर किया तो यहाँ होने वाले प्राचार्यों, सभी मे हस्तलिखित पाण्डुलिपियो का अच्छा संग्रह है। मुनियों, सन्तों एव विद्वानो ने भी अपनी कृतियो द्वारा इनमे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, हिन्दी, राजस्थानी भाषा जनता में देश भक्ति नैतिकता एव सास्कृतिक जागरुकता के हजारो ग्रथों की पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित है । ताडपत्र पर का प्रचार किया। उन्होने नागौर, बीकानेर, अजमेर, सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि सन् १०६० की है जो जैसलमेर जैसलमेर, जयपुर आदि कितने ही नगरों में प्रथ भडारो के वृहद ज्ञान भडार में संग्रहीत है इसी तरह कागज पर के रूप मे साहित्यिक दुर्ग स्थापित किये जहाँ भारतीय संवत् १३२६ - सन् १२७२ : पाण्डुलिपि जयपुर के श्री साहित्य एवं संस्कृति की सुरक्षा एवं उसके विकास के दिगम्बर जैन मन्दिर तेरहपथियों के शास्त्र भंडार के संग्रह उपाय सोचे गये तथा सारे प्रदेश में ग्रथों की प्रतिलिपियां में है। कागज वाली पाण्डुलिपि मे देहली का नाम योगिकरवाने, उनके पठन पाठन का प्रचार करने का अर्थ नीपुर एवं तत्कालीन सम्राट् का नाम गयासुद्दीन तुगलक व्यवस्थित रूप से किया गया और राजनैतिक उथल-पुथल के नाम का उल्लेख है। इन भंडारों मे तेरहवी, १४वी एवं सामाजिक झगड़ो से इन शास्त्र भंडारों को दूर रखा शताब्दी से लेकर १९वी शताब्दी तक लिखे गये ग्रंथों का गया। वास्तव में साहित्य की सुरक्षा एवं उसकी श्रीवद्धि विशाल संग्रह है जिनमे भारतीय विद्या एवं संस्कृति के में सबसे अधिक जन सहयोग जैन ग्रंथ संग्रहालयो का रहा अमूल्य तत्त्व छिपे पड़े है। यहाँ किसी एक विषय पर यही कारण है कि जैन अथ संग्रहालय राजस्थान के छोटे- अथवा एक ही भाषा में ये पाण्डुलिपियों संग्रहीत नही है छोटे गांवों तक में मिलते है। इन शास्त्र भडारों ने किन्तु धर्म, दर्शन, पुराण, कथा, काव्य एव चरित के राजस्थान के इतिहास के कितने ही महत्वपूर्ण तथ्यों को अतिरिक्त इतिहास, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद सगीत जैसे संजोया मोर उसे सदा ही नष्ट होने से बचाया। यदि हम लौकिक विषयों पर अच्छी से अच्छी कृतियों की पाण्डुइन ग्रंथ भंडारों के संबंध मे कुछ गम्भीरता से विचार लिपियाँ उपलब्ध होती हैं। यहाँ मैं यह बतलाना चाहूंगा * जोधपूर मे प्रायोजित राजस्थान इतिहास काग्रेस के प्रथम अधिवेशन पर दिया गया एक भाषण