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अनेकान्त
केन्द्र है।
कि जैनाचार्यों एवं विद्वानों ने भाषा विशेष से कभी मोह उनके सम्बन्ध में जानकारी प्रस्तुत करने का कभी नही रखा किन्तु जनता की मांग के अनुसार इन्होंने अपनी व्यवस्थित कार्य नहीं किया जा सका। कृतियों का निर्माण एवं उनका सग्रह किया। इसीलिए
राजस्थान के इन भण्डारों को छानबीन के लिये प्राज इन भंडारों में प्राकृत एवं संस्कृत की कृतियो के प्रेरणा देने का मनसे
प्रेरणा देने का सबसे अधिक श्रेय पं. चैनसुखदास जी अतिरिक्त अपभ्रश हिन्दी एवं राजस्थानी कृतिया भी न्यायतीर्य जयपुर को है। इस दिशा मे श्री दिगम्बर जैन पर्याप्त संख्या मे मिलती है। इसलिए ये प्राचीन साहित्य, अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी का साहित्य शोध विभाग इतिहास एवं संस्कृति के अध्ययन करने के लिये प्रामाणिक की सेवाएँ उल्लेखनीय है इसका मुख्य उद्देश्य राजस्थान
के जैन शास्त्र भडारों की ग्रंथ सूचियाँ तैयार करने एवं लेकिन राजस्थान के इन जैन ग्रंथ संग्रहालयों की उनमें अप्रकाशित साहित्य को प्रकाश में लाने का है। महत्ता की अोर विद्वानो का सर्वप्रथम ध्यान आकृष्ट करने क्षेत्र के साहित्य शोध विभाग की अोर से इन भंडारों की का श्रेय पाश्चात्य विद्वान कर्नल जेम्स टाड को है जिन्होने ग्रंथ सूचियो के चार भाग छप चुके है जिनमे करीब अपनी पुस्तक (Travels in Westero India) मे २०,००० ग्रंथों की सूचियाँ है। मैंने अपना शोध प्रबन्ध जैसलमेर के जैन ग्रन्थ सग्रहालयो का बहुत ही सुन्दर एव भी 'जैन अथ भडार इन राजस्थान' पर ही लिखा है। रोचक वर्णन किया । टाड के ४५ वर्ष पश्चात् डा. व्हलर जिसमें राजस्थान के १०० ग्रंथ भडारों पर ऐतिहासिक एव डा. जैकोबी जैसे विद्वानों ने जैसलमेर के ग्रथ भंडारों दृष्टि से प्रथम बार लिखने का अवसर मिला। मेने अपने का निरीक्षण किया और यहाँ की साहित्य समृद्धि की पोर शोध निबन्ध में उनकी साहित्यिक समृद्धि एव विशाल विद्वानो को स्मरण कराया। इन तीन पाश्चात्य विद्वानों सग्रह के सम्बन्ध में व्यवस्थित रूप से प्रकाश डालने का के महत्वपूर्ण एव खोजपूर्ण लेखों के कारण भारतीय प्रयास किया है। विद्वानों का भी उनकी ओर ध्यान आकृष्ट हुमा । सन् राजस्थान के इन ग्रथ भण्डारों में ताडपत्र की १९०४ मे भारतीय विद्वानो में सर्वप्रथम श्रीधर भण्डारकर पाण्डुलिपियो को दृष्टि से जैसलमेर का वृहद ज्ञान भण्डार जैसलमेर गये और अपनी इस यात्रा का वर्णन सन् १६०६ अत्यधिक महत्वपूर्ण है किन्तु कागज पर लिखित पाण्डुकी खोज रिपोर्ट में प्रकाशित कराया इसके पश्चात् कितने लिपियो की दृष्टि से नागौर, बीकानेर, जयपुर एवं अजमेर ही विद्वान यहाँ के भण्डारो को देखने के लिए जाते रहे के शास्त्र भण्डार उल्लेखनीय है। अकेले नागौर के जिनमें प. हीरालाल, हसराज, सी. डी. दलाल, मुनि भट्टारकीय शास्त्र भण्डार मे १२००० हस्तलिखित ग्रंथ पुन्यविजय जी एवं मुनि जिनविजय जी के नाम उल्लेख- एव २००० गुटको का संग्रह है। गुटकों में संग्रहीत ग्रंथों नीय हैं।
की सख्या की जावे तो वह भी १००० से कम नही होगी। जैसलमेर के ग्रथ भडारों के अतिरिक्त राजस्थान के इसी तरह जयपुर मे २५ से भी अधिक ग्रथ संग्रहालय हैं मन्य शास्त्र भंडारों की ओर विद्वानों का विशेष ध्यान जिनमे पामेर शास्त्र भण्डार, बडा दिगम्बर जैन मन्दिर होते हुए भी कुछ वर्ष पूर्व तक किसी भी भारतीय तेरहपंथियों का शास्त्र भंडार, पाटोदियो के मन्दिर का विद्वानों ने उन्हें व्यवस्थित रूप से नहीं देखा और शास्त्र भडार आदि का नाम उल्लेखनीय है। इन भंडारों साहित्य की प्रमूल्य निधिया उनमे ऐसे ही बन्द पड़ी में अपभ्रंश एवं हिन्दी ग्रंथों की पाण्डुलिपियों का अच्छा रही। बीकानेर, चूरू सरदार शहर आदि कुछ नगरों में संग्रह है। इन शास्त्र भंडारों में जैन विद्वानों द्वारा लिखित स्थित प्रथ भंडारो की सूचियां तो अवश्य बनायी गई तथा ग्रंथों के अतिरिक्त जैनेतर विद्वानों द्वारा निबद्ध ग्रंथों की भी श्री अगरचंद जी नाहटा जुगलकिशेर जी मुख्तार एवं पं. प्राचीनतम एवं महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों का संग्रह मिलता परमानंद जी शास्त्री ने अपने लेखों में किसी किसी है। इनमें महापण्डित मम्मट विरचित काव्य प्रकाश, राजभडार पर प्रकाश भी डाला। लेकिन विद्वानों के समक्ष शेखर कृत काव्यमीमांसा, कुत्तककवि कृत वक्रोक्तिजीवित,