________________
भगवान महावीर और बुद्ध का परिनिर्वाण
- अणुव्रत परामर्शक मुनिश्री नगराज
महावीर का परिनिर्वाण पावा में और बुद्ध का परि- व देवता शोकातुर होते है । इतना अन्तर अवश्य है कि निर्वाण कुसिनारा में हमा। दोनों क्षेत्रों को दूरी के विषय महावीर की अन्त्येष्टि में देवता ही प्रमुख होते है, मनुष्य में दीघ-निकाय-प्रदकथा (सुमंगलविलासिनी) बताती गौण । बुद्ध को अन्त्येष्टि में दीखते रूप में सब कुछ मनुष्य है-"पावानगरतो तीणि गावुतानि कुसिनारानगरं" ही करते है, देवता अदृष्ट रहकर योगभूत होते हैं; देवता मर्थात् पावानगर से तीन गव्यूत (तीन कोस) कुसिनारा क्या चाहते है। यह महंत भिक्षु मल्लों को बताते रहते हैं। था। बुद्ध पावा के माध्याह्न मे विहार कर सायंकाल देवतामों के सम्बन्ध मे बौदों की उक्ति परिष्कारक कुसिनारा पहुँचते हैं। वे रुग्ण थे, असक्त थे, विश्राम लगती है। ले-लेकर वहाँ पहुँचे । इससे भी प्रतीत होता है कि पावा से
अन्तिम वर्ष का विहार दोनों का ही राजगृह से कुसिनारा बलुत ही निकट था। कपिलवस्तु (लुम्बिनी) ,
होता है। महावीर पावा वर्षावास करते है मौर कार्तिक और वैशाली (क्षत्रियकुण्डपुर) के बीच २५० मील की
प्रमावस्या की शेष गत मे वहीं निर्वाण प्राप्त करते है। दूरी मानी जाती है१ । जन्म की २५० मील की क्षेत्रीय दूरी निर्वाण मे केवल ६ मील की ही दूरी रह गई ।
पावा और राजगृह के बीच का कोई घटनात्मक विवरण
नही मिलना और न कोई महावीर की रुग्णता का भी कहना चाहिए, साधना से जो निकट थे, वे क्षेत्र से भी
उल्लेख मिलता है । बुद्ध का राजगृह से कुसिनारी तक का निकट हो गये।
विवरण विस्तृत रूप से मिलता है। उनका शरीरान्त भी ___ दोनो की ही अन्त्येष्टि मल्ल-क्षत्रियो द्वारा सम्पन्न
सुकर-मद्दव से उद्भुत व्याधि से होता है। उनकी निर्वाणहोती है। महावीर के निर्वाण-प्रसंग पर नव मल्लकी, नव तिथि वैशाखी पूणिमा मुख्यतः मानी गई है, पर लिच्छवी, अठारह काशी-कौशल के गणराजा पौषधव्रत सर्वास्तिवाद-परम्परा के अनुसार तो उनकी निर्वाण-तिथि मे होते है और प्रातः काल अन्त्येष्टिक्रिया मे लग जाते कार्तिक पूर्णिमा है१ । है । बुद्ध के निर्वाण-प्रसग पर मानन्द कुसिनारा मे जाकर
___ निर्वाण से पूर्व दोनो ही विशेष प्रवचन करते है। सस्थागार मे एकत्रित मल्लो को निर्वाण को सूचना देते
महावीर का प्रवचन दीर्घकालिक होता है और बुद्ध का हैं। मानन्द ने बुद्ध के निर्वाण के लिए कुसिनारा को
स्वल्पकालिक । प्रश्नोत्तर चर्चा दोनों की विस्तृत होती उपयुक्त भी नही समझा था; इससे प्रतीत होता है कि
है। अनेक प्रश्न शिष्यों द्वारा पूछे जाते हैं और दोनों द्वारा मल्ल बुद्ध की अपेक्षा महावीर से अधिक निकट रहे हो।
यथोचित उत्तर दिये जाते हैं। दोनों ही परम्परामों के इन्द्र व देव-गण दोनों ही प्रसंगों पर प्रमुखता से भाग
कुछ प्रश्न ऐसे लगते हैं कि वे मौलिक न होकर पीछे से लेते हैं। महावीर की चिता को अग्निकुमार देवता जड हुए हैं। लगता है, जिन बातो को मान्यता देनी थी, प्रज्वलित करते हैं और मेधकुमार देवता उमे शान्त करते वे बातें महावीर और बुद्ध के मुह से कहलाई गई । मन्तिम हैं; बुद्ध की चिता को भी मेघकुमार देवता शान्त करते रात मे दोनो ही क्रमशः राजा हस्तिपाल और मुभद्र हैं। दोनों के ही दाढ़ा प्रादि अवशेष ऊर्वलोक और परिव्राजक को दीक्षा प्रदान करते है । पाताललोक के इन्द्र ले जाते है । दोनों ही प्रसंगों पर इन्द्र निर्वाण-गमन जानकर महावीर के अन्तेवासी गणधर १. राहुल सांकृत्यायन, सूत्रकृतांग सूत्र की भूमिका पृ० १ १. EJ. Thomas, Life of Buddha, P. 158.