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क्रमांक
गनवाण
विषय-सूची
अनेकान्त को सहायता विषय
५) ला० विगनचन्द जी गोटे वाले लग्खनऊ की १ पद्मप्रभ-जिन-स्तुनि--ममन्तभद्राचार्य १९३] मुपुत्री मी० किरण के विवाहोपल में निकाले हुए दान में २. श्रीधर स्वामी को निर्वाण भूमि कुण्डलपुर--
में डा. ज्योति प्रमाद जी लखनऊ की मार्फत ५) रुपया प. जगमाहनला र मास्त्री
१६८ मधन्यवाद प्राप्त हा। ३ जैन ग्रन्थ मग्रहालयो का महत्त्व
व्यवस्थापक 'अनेकान्त' डा. कम्तुरचन्द कामलीवाल १९६ ४ भारतीय वास्तुशास्त्र मे जैन प्रतिमा सम्बन्धी
विलम्ब का कारण ज्ञातव्य... अगरचन्द नाहटा ५ भगवान महावीर और बुद्ध का पगिनर्वाण
अनेकान्त की यह किरण प्रेम में नये टाइपो को --मुनि श्री नगगज
व्यवस्था के कारण विलम्ब गे प्रकाशित हो रही है। इसके ६. यशपाल जैन का अध्यक्षीय भाषण
| लिए हम खेद है। ग्रागे की किरण यथा सम्भव शीत्र ७. शिरपुर का जैन मन्दिर दिगम्बर जैनियों प्रकागिन करने का प्रयत्न किया जायगा। का ही है। २२७
व्यवस्थापक केशि-गौतम-मवाद-१० बालचन्द
'अनेकान्त' सिद्धान्त शास्त्री ६. आत्म-निरीक्षण-परमानन्द शास्त्री २३२
अनेकान्त के ग्राहकों से १० अग्रवालो का जैन मरकृति में योगदान-- परमानन्द शास्त्री
०३३
अनेकान्त के जिन ग्राहक महानुभावो ने अपना वापिक ११ स्वर्गीय नरेन्द्रमिह मिधी का मक्षिप्त परिचय २३७
शल्क नही भेजा है, उन्हें अपना वार्षिक शल्क ) रुपया १० साहित्य-ममीक्षा-डा. प्रेममागर तथा
मनी आईर में शीघ्र भेज देना चाहिए । कारण कि परमानन्द शास्त्री
२०वा वर्ष ममाप्त हो रहा है। प्रागा ही नही विश्वाम है कि ग्राहक महानुभाव २०वे वर्ष का अपना वापिक मन्य
शीघ्र भेजकर अनगृहीत करेंगे। सम्पावक-मण्डल
व्यवस्थापक डा० प्रा० ने० उपाध्ये
अनेकान्त' डा० प्रेमसागर जैन
वीरसेवा मन्दिर २१ दरियागज, दिल्ली श्री यशपाल जैन
हा हा
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अनेकान्त का वाषिक मूल्य ६) रुपया एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ १०
भनेकान्त मे प्रकाशित विचारो के लिए सम्पादक माल उत्तरदायी नहीं हैं। -यवस्थापक अनेकान्त
भोकान में प्रकाशित विचारों के लिए सम्मा
एक किरण का