________________
भनेकान्त
पुराणों से संकलन व पौराणिक ब्राम्हणों का उन पर दिया। प्रतिक्रिया केवल ब्राम्हण धर्म (यज्ञ) ही नहीं, अधिकार होने तक रही।
ग्राम्हणों के गढ कुरु पंचाल के खिलाफ भी जगी भोर वस्तुतः क्षत्रिय परम्परा ऋग्वेदकाल से पूर्ववर्ती है।
वैदिक सभ्यता के बाद वह समय पा गया। जब इज्जत उपनिषद् काल में क्षत्रिय ब्राम्हणो का पद छीन लेने को कुरुपपाल र
कुरु-पचाल की नहीं, बल्कि मगध और विदेह की होने उद्यत नही थे प्रत्युत ब्राम्हणों को प्रात्म-विद्या का
लगी। कपिलवस्तु में जन्म लेने के ठीक पूर्व, जब तथागत ज्ञान दे रहे थे। जैसा कि डा० उपाध्याय ने लिखा है
स्वर्ग मे देवयोनि मे विराज रहे थे, तब की कथा है कि
देवतानों ने उनसे कहा कि अब प्रापका अवतार होना ब्राम्हणों के यज्ञानुष्ठान आदि के विरुद्ध क्रान्तिकर क्षत्रियों ने उपनिषद् विद्या की प्रतिष्ठा की और ब्राम्हणों
चाहिए । प्रतएव प्राप सोच लीजिए कि किस देश और ने अपने दर्शनों की नींव डाली। इस संघर्ष का काल.
किस कुल मे जन्म ग्रहण कीजिएगा। तथागत ने सोच प्रसार काफी लम्बा रहा जो पन्ततः द्वितीय शती ई. पूर्व
समझकर बताया कि महाबुद्ध के अवतार के योग्य तो में ब्राम्हणों के राजनीतिक उत्कर्ष का कारण हुप्रा । इसमें
मगध देश और क्षत्रिय वश ही हो सकता है। इसी प्रकार
महावीर, वर्धमान भी पहले एक ग्राम्हणी के गर्भ मे पाए एक मोर तो वशिष्ठ, परशुराम, तुरकावर्षय, कात्या
थे। लेकिन इन्द्र ने सोचा कि इतने बड़े महापुरुष का यन, राक्षस, पतंजलि और पुष्यमित्र, देवापि, जनमेजय, प्रश्वपति, कैकेय, प्रवाहण, जैबलि-प्रजातशत्रु, कौशेय,
जन्म ग्राम्हण वंश मे कैसे हो सकता है ? प्रतएव उसने जनक, विदेह, पाश्र्व, महावीर, बुद्ध और बृहद्रथ की२।
ब्राम्हगी का गर्भ चराकर उसे एक क्षत्राणी की कुक्षी में
डाल दिया। इन कहानियों से यह निष्कर्ष निकलता है प्रात्म-विद्या और अहिंसा
कि उन दिनों यह अनुभव किया जाता था कि अहिंसा धर्म महिंसा का प्राधार प्रात्म-विद्या है। उसके बिना
का महाप्रचारक ब्राम्हण नही हो सकता, इसीलिए बुद्ध
और महावीर के क्षत्रिय वंश मे उत्पन्न होने की कल्पना पहिंसा कोरी नैतिक बन जाती है, उसका प्राध्यात्मिक
लोगों को बहुत अच्छी लगने लगी। मूल्य नहीं रहता।
उक्त प्रवतरणो व अभिमतो से ये निष्कर्ष हमें सहज अहिंसा और हिंसा कभी आम्हण और क्षत्रिय परंपग उपलब्ध होते हैंकी विभाजन रेखा थी। अहिंसा-प्रिय होने के कारण १ अात्म-विद्या के आदि स्रोत तीथंकर ऋषभ थे। क्षत्रिय जाति बहुत जन-प्रिय हो गई थी। जैसा कि दिन
1. वे क्षत्रिय थे। करजी ने लिखा है-प्रवतारों में वामन और परशुगम, ३. उनकी परपरा क्षत्रियों में बराबर समादत रही। ये दो ही है, जिनका जन्म ब्राह्मण कुल मे हृपा था । ४. अहिमा का विकास भी प्रात्म-विद्या के प्राधार बाकी सभी अवतार क्षत्रियो के वश मे हुए है। यह परहना। प्राकस्मिक घटना हो सकती है, किन्तु इससे यह अनुमान ५. यज्ञ संस्था के समर्थक ब्राम्हणों ने वैविककाल में, प्रासानी से निकल भाता है कि यज्ञों पर चलने के कारण प्रागम-काल मे, प्रात्म-विद्या को प्रमुखता नही दी। ग्राम्हण इतने हिसाप्रिय हो गए थे कि समाज उनमे घृणा
६. पारण्यक उपनिषद्काल मे वे प्रात्म-विद्या करने लगा और बाम्हणों का पद उसने क्षत्रियों को दे रही
।द की ग्रोर प्राकृष्ट हुए। १. Ancient India Historical tradition byFF ७. क्षत्रियों के द्वारा उन्हे वह (मात्म-विद्या) प्राप्त
Pargiter Page 5-6. २. संस्कृति के चार अध्याय, पृ० ११०
३. वही, पृ० १०६, ११०