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अनेकान्त
नेम उदास भये जबसे कर जोडके सिद्ध का नाम लियो है। हो सकता है कि कवि ने उनके लिए रची हो। किन्तु अम्बर भूषण डार दिये शिर मौर ऊतार के डार दिया है। ग्रन्थ की पुष्पकामों मे-"इति श्री मन्महाराज श्रीजगतरूप धरो मनिका जबही तबहीं चढ़ि के गिरिनारि गयो है। राय जी विरचतायां सम्यक्त्व कौमुदी कथाया अष्टं कथा'लाल विनोदी' के साहिब ने तहां पंच महावत योगलयो है। नक संपूर्ण ॥ यह संभव है कि जगतराय को उस समय
छठवीं रचना फूलमाला पच्चीसी और ७वी नेमिनाथ अवकाश न हो, और कवि कासीदास से उसे बनवाया हो। बारहमासा है। अनेक पद भी प्रापके बनाये हुये है। पर कासीदास का अन्य कोई ग्रन्थ या परिचय नही मिला । सभी रचनाये सम्बोधक और सुरुचिपूर्ण है। कवि की अस्तु अन्य का रचनाकाल सं० १७२२ सुनिश्चित है, मध्य रचनाए अन्वेषणीय है।
किन्तु राजस्थान की सूचीवाला संवत चिन्तनीय है ।१ अठरहवें कवि 'जगतराय' हैं, जो पानीपत के पास
सम्यक्त्व कौमुदीकी रचनाभी सं०१७२२ में हुई है। गोहाना नगर के निवासी थे। और वहा से प्रागरा में।
कविने छन्दरत्नावली हिम्मतखां के अनुरोध से स० १७३० रहने लगे थे। इनकी जाति अग्रवाल और गोत्र सिंगल था
मे बनाकर समाप्त की थी। ग्रन्थ मे कवि ने हिम्मत्खान माईदास श्रावक के दो पुत्र थे, रामचन्द्र और नन्दलाल ।
के यश और वीरत्व की प्रशंसा भी की है। जैसा कि उस उनमें जगतराय रामचन्द्र के पुत्र थे। और जगनराय
के निम्न पद्यों से प्रकट है .के पुत्र टेकचन्द थे। जगतराय प्रागरा के ताजगज मे राय से बाग में
जगतराय सौ यह कह्यो, हिम्मतखान बुलाइ । रहते थे। उच्च कोटि के कवि और विद्वान थे। आप वहा
पिंगल प्राकृत कठिन है, भाषा ताहि बनाइ ।। की अध्यात्म शैली के उन्नायक थे। आपकी इस समय
वान मान गुनवनान सुजान, दिन-दिन वाढो हिम्मतखान। तीन कृतिया प्रवलोकन में पाई है। पद्मनन्दि पच्चीसी,
जगतराय कवि यह जस गायो, पढत सनत सबही मन भायो।। सम्यक्त्व कौमुदी और छन्द रत्नावली। इनके मिवाय ।
हिम्मतखां सो अरि कपत, भाजत ले ले जीय । संवत् १७८४ में इन्होंने कविवर द्यानतराय की फटकर अरि रि हमें हूँ सग ले, बोलत तिनकी तीय । कवितानों का संकलन कर मैनपुरी मे उमे पागम विलास
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+ नाम दिया था२। पद्मनन्दि पच्चीमी कवि ने सवत संवत सहस सात सतीस, कातिक मास शुकल पख दोस। १७२२ के फाल्गुण शुक्ला दशमी मगलवार को समाप्त भयो ग्रथ पूरन शुभ थान, नगर प्रागरो महा प्रधान ॥ की थी। जैसा कि उसके निम्न पद्य से प्रकट है -
यहा यह बात खास तौर से उल्लेखनीय है कि अनेक "संवत सतरास बावीस, फागुण मासि सुदि पक्ष जगीस।
विद्वान जगत राय, जगतराम, जगगम को एक ही व्यक्ति तिथि दशमी पुष्प मगलवार, ग्रन्थ समाप्तभयो जयकार ॥" मानकर उल्लेख करते है। पर विचार करने पर जगतगय
यहां यह बात विचारणीय है कि डा० ज्योतिप्रसाद और जगतगम भिन्न-भिन्न व्यक्ति ज्ञात होते है । उनकी जी ने सम्यक्त्व कौमुदी का रचयिता कामीप्रसाद नाम के किसी कवि को बतलाया है, जो जगतराय के प्राश्रित थे।
१ विक्रम सवत ते जान, सत्रह से बाईस बखान ।
माधवमास उजियारो सही, तिथि तेरस भूसुतसी लही। १ पानीपथ सुभदेश सहर गुहानो जानिये।
-प्रने० वर्ष १०, कि० १० पृ. ३७४ कबही न दुख को लेश, सुखवर ते जहा सर्वदा ।।
राजस्थान प्रन्थ भण्डार की सूची न० ४ पृ.२५२ रामचन्द्र मुत जगत अनूप, जगत गय ज्ञायक गुणभूप । पर सम्यक्त्व कोमुदी कथा भाषा जगतराय पत्र स० तिन यह कथा ज्ञान के काज, वर्णी पाठो समकित साज। १५.१ र० काल १७७२ फाल्गुण सुदी १३, बेठन न०
-सम्यक्त्व कौमुदी ७५३ दिया है । अतः ग्रथ का रचनाकाल विवादस्थ २ सवत सतरह से चौरासी माघ सुदी चतुरदशी भापी। हो जाता है। प्रतः उसकी जाच हो जाना चाहिए तब यह लिखत समारत कीनी, मैनपुरी के माहि नवीनी ।। कि दोनो मे रचनाकाल कौनसा सही है।