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महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुरिणया
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ने यह सब जाना और उसे प्रतिबुद्ध करने के लिये पर्वन और अपने पुत्र के दर्शन को तैयार हो रही थी। उत्सुकता पर ले गये । वहां एक बन्दरी का शव उमे दिखाया और मे उमने घर आए मुनि की ओर ध्यान ही नहीं दिया । पूछा- क्या तुम्हारी पत्नी इससे अधिक मुन्दर है ?" कर्मकरी ने भी अपने स्वामी को पहचाना शालिभद्र बिना वह बोला-"अवश्य ।" तब बुद्ध उमे त्रास्त्रिश स्वर्ग में भिक्षा पाए ही लोट पाए रास्ते में एक अहिग्न मिली। ले गये। अप्सरामों-सहित इन्द्र ने उनका अभिवादन दही का मटका लिए जा रही थी। मुनि को देखकर उसके किया। बुद्ध ने अप्सरामो की भोर संकेत कर पूछा- मन में स्नेह जगा । रोमाचित हो गई। स्तनो से दूध की "क्या जनपद कल्याणी नन्दा इससे भी सुन्दर है ?" वह धारा वह चली। उसने मुनि को दही लेने का प्राग्रह बोला-"नही, भन्ते !" बुद्ध ने कहा-"तब उसके किया। मुनि दही लेकर महावीर के पास प्राये पारणा लिए तू क्यो विक्षिप्त हो रहा है ? भिक्षु धर्म का पालन किया। महावीर से पूछा--"भगवन् । मापने कहा था, कर । तुझे भी ऐसी अप्सगएं मिलेगी।" नन्द पुन श्रमण माता के हाथ में पारणा कगे। वह क्यों नही हुमा ?" धर्म में प्रारुढ़ हुआ। उसका वह वैपयिक लक्ष्य तब मिटा, महावीर ने कहा-शालिभद्र | माता के हाथ से ही जब सारिपुत्र आदि प्रस्मी महा थावको (भिक्षो) ने उम पारणा हुपा है। वह पहिरन तुम्हारे पिछले जन्म की इस बात के लिए लज्जित किया। अन्त में भावना से भी माता थी।" विषय-मुक्त होकर वह अर्हत् हुअा।
महावीर की अनुज्ञा पा शालिभद्र ने उसी दिन वैभार मेघकुमार और नन्द के विर्चालत होने के निमित्त गिरि पर्वत पर जा प्रामरण अनशन ढा दिया । भद्रा सर्वथा भिन्न थे, पर घटना-क्रम दोनो का ही बहुत ममान समवशरण मे पाई। महावीर के मुख मे शालिभद्र का है। महावीर मेघकुमार को पूर्व भव का दुःख बताकर भिक्षाचारी में ले कर अनशन तक का सारा वृत्तान्त सुना। मुम्थिर करते हैं और बुद्ध नन्द के अागामी भव के मुख माता के हृदय पर जो बीत सकता है, वह बीता । नत्काल बताकर करते है।
वह पर्वत पर पाई। निर्मोही पुत्र ने पाम्ब उठाकर भी शालिभद्र
उमकी ओर नही देखा। पुत्र की उम नप: क्लिष्ट काया
को और मरणाभिमुख स्थिति को देख कर उसका हृदय राजगृह के शालिभद्र, जिनके वैभव को देखकर
हिल उठा । वह दहाड मार कर रोने लगी। राजा बिम्बराजा बिम्बिमार भी विस्मित रह गये थे; भिक्षु जीवन
स्वार ने उम मान्त्वना दी। उद्बोधन दिया। वह घर में पाकर उत्कट तपस्वी बने । मासिक, द्विमामिक और
गई। शालिभद्र मर्वोच्च देवगत को प्राप्त हए। उनके त्रैमासिक तप उनके निरन्तर चलता रहता। एक बार
गृही-जीवन की विलास-प्रियता मोर भिक्षु-जीवन की महावीर वृहत् भिक्षु-मघ के माथ गजगृह पाये । शालिभद्र
कठोर माधना दोनो ही उत्कृष्ट थी। भी माथ ये । उस दिन उनके एक महीने की नपस्या का
स्कन्दक पारणा होना था। उन्होने नतमस्तक हो, महावीर में
म्कन्दक महावीर के परिवाजक भिक्षु थे। परिव्राजकभिक्षार्थ नगर मे जाने की प्राज्ञा माँगी। महावीर ने कहा-"जामो, अपनी माता के हाथ में पारणा पानी।"
; माधना में भिक्षु-माधना मे आना और उसमें उत्कृष्ट रूप शालिभद्र अपनी माता भद्रा के घर पाए। भद्रा महावीर
में रम जाना उनकी उल्लेखनीय विशेषता थी। पागम
बनाते है स्कन्दक यत्नापूर्वक चलते, यत्नापूर्वक ठहरते, 1. सुत्तनिपात, अटकथा, पृ० २७२, धम्मपद, पट्ठ- प्रत्नापूर्वक बैठते. यत्नापूर्वक मोने, यत्नापूर्वक खाते और कथा, खण्ड १, ६६-१०५; जातक स. १८२, येरगाथा यत्नापूर्वक बोलते । प्रागण, भूत, जीव, मत्व के प्रति सयम १५७; Dictionary of Pah Proper Name, रखते। वे कात्यायन गोत्रीय स्कन्दक ईर्या मादि पांचों Vol. I, pp 10-11
ममिनियों में मयत, मनः मंयन, वच. मंयत, काय-मंयत,