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अग्रवालों का जम संस्कृति में योगदान
बाम अंग पर जलिय तासु भय जाण न पायउ। भोर श्रवणदास के पुत्र नन्दलाल को एक मानकर उनके छोहल गमण बहुविसि नहीं चित चिन्ता चिन्तउहरिण साथ पांडे हेमराज की पुत्री जैनी का विवाह हो गया लिखा
हाहा व संकट परो तो विण प्रवर न को सरण ३ है। जब कि दोनों नन्दलाल भिन्न भिन्न व्यक्ति हैं। दोनों अन्तभाग:
के समय, स्थान पोर माता पिता के नामो में भी भिन्नता बउरासी अग्गल सहज पनरह संबन्छर ।
है। ऐसी स्थिति में उनका एकस्व सदोष और निराधार सुकुल पक्स मष्टमी कातिग गुरु वासर ।
है। पाशा है पाठकगण इस भूल का परिमार्जन करने का हृदय उपन्नी बुद्धि नाम श्री गुरु को लीन्हों।
प्रयत्न करेंगे। सारद तणइ पसाइ कक्ति सम्पूरण कीन्हीं।
दूसरी रचना 'यशोधर चरित्र' है जिसमें राजा यशोनातिगवंश सि नाथसुतनु अगरवाल कुल प्रगट रवि । बावनी वसुधा विस्तरी कवि कंकण छोहल्ल कवि।।
धर का चरित अंकित है। कथानक पौराणिक होते हुए
भी कवि ने उसमें नवीनता लाने का प्रयत्न किया है । पांचवी कृति उदर गीत है, जो सम्बोधक उपदेशक
भाषा मे प्रमाद और गतिशीलता है। कवि ने अन्य के रचना है। कवि की अन्य कृतियों का अन्वेषण होना चाहिये।
प्रारम्भ मे जहागीर द्वारा होने वाले गोवध निषेध की घटना सातवे कवि नन्दलाल है, जो प्रागरा के पास गोसना नामक ग्राम के निवासी थे । इनकी जाति . अग्रवाल और
का उल्लेख किया है-'गोवध मेट्यो मान दिवाय । गोत्र गोयल था। पिता का नाम भैरों या भैगेदास पौर
___ कीरति रही देश में छाप ।" जहांगीर के राज्यकाल में माता का नाम चंदा देवी था। कवि की दो कृतिया मेरे
जैनियो के द्वारा सम्पन्न होने वाली प्रतिष्ठा का भी उल्लेख अवलोकन में पाई है। दोनो ही रचनाए सुन्दर हैं। पहली
किया है:रचना सुदर्शन चरित है, जिसमे ५१० पद्यो मे सेठ सुदर्शन
होय प्रतिष्ठा जिनवर तनी, दीसहि धर्मवंत बहमनी । के चरित का चित्रण किया गया है। कथानक पर नयनन्दी एक करावहिं जिनवर धाम, लागे जहां प्रसंखिम वाम ॥१४ के 'सुदसण चरिउ, का प्रभाव स्पष्ट है । भाषा और भाव कवि ने इस ग्रन्थ की रचना सवत् १६७० मे श्रावण दोनो का चयन सुन्दर हपा है। अन्य यद्यपि चौपाई छन्द शबला सप्तमी सोमवार के दिन समाप्त की थी, जैसा कि मे लिखा गया है: चरित्र रोचक और शिक्षा प्रद है। कवि उसके निम्न पद से प्रकट है:ने इस अन्य की रचना स० १६६३ माघ शुक्ला १चमी२
___ संबत सौरह से मषिक, सत्तरि सावन मास । गुरुवार के दिन जहांगीर बादशाह के राज्य में समाप्त की
सुकल सोम टिन सत्तमी, कही कथा मृदभास ॥ है । ग्रन्थ की यह प्रति नयामन्दिर धर्मपुरा दिल्ली के शास्त्र भडार में उपलब्ध है।
कवि की दोनों ही रचनाएं भी प्रप्रकाशित हैं जिन्हें डा. प्रेमसागर जी ने हिन्दी जैन भक्ति का
प्रकाश में लाना चाहिए। * पृ० १५८ पर नन्द कवि के परिचय मे, नन्द कवि पाठवे कवि वशीदास है, जो फातिहाबाद के निवासी १. प्रप्रवार है वंश गोसना थानको,
और अग्रवाल कुल में उत्पन्न हुए थे। पौर मूलसंघ के गोइल गोत प्रसिद्ध चिन्ह ता ठाव को।
भट्टारक विशालकीर्ति के शिष्य थे। कवि की बनाई हई माता चंदा नाम पिता भैरों भन्यों,
एक मात्र कृति रोहिणी विधि कथा है जिसे कवि ने सबत नन्द कही मनमोद सुगुन गनुना गन्यो ।
१६६५ जेठ वदी दोयज को बनाकर समाप्त की थी, २. संबत सौरहसै उपरान्त, मठि जानह वरस महत 110 जैसा कि ग्रन्थ की मादि प्रशस्ति के निम्न पद्यों से स्पष्ट
माघ मास उजार पाख, गुरु वासर दिन पंचमी। है:बंध चोपही भाप, नन्द कही मति सारिणी ॥५०६ सौरहसौ पचामउवई, ज्येष्ठ कृष्णा की दुतिया भई।
-सुर्दशन चरित्र फातिहाबाद नगर मुखमान, अग्रवाल शिव जाति प्रधान ।