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अग्रवालों का न संसहति में योगदान
नगर के पाश्र्वनाथ मन्दिर में बनाकर समाप्त की थी। पतएव पट्टावली का उक्त समय (सं० १५०७) संकित कवि की दूसरी रचना 'वहत्सिक चक्रपूजा' है। जिसे ग्रन्थ हो जाता है। म. जिनचन्द्र उस काल के प्रभाविक विद्वान कर्ता ने वि० सं० १५८४ में दिल्ली के बादशाह बाबर के थे। पापके द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियां भारत के प्रत्येक राज्यकाल में रोहतक के उक्त पाश्र्वनाथ मन्दिर में काष्ठा- प्रान्त के मन्दिरों में पाई जाती है। पापके पनेक शिष्य थे संघ माथुरान्वय पुष्करगण के भट्टारक यशोसेन की शिष्या उनमें पं. मेधावी प्रमुख थे। ये हिसार के निवासी थे प्रायिका राजश्री के भाई नारायणसिंह पद्मावती पुरवाल और कुछ समय नागौर भी रहे थे। उन्होंने नागौर में के पुत्र जिनदास की पाज्ञा से बनाई थी। कवि की ही सं० १५४१ में फिरोजखान के राज्य काल में 'मेधावी दोनों रचनाएं संस्कृत भाषा में हैं और वे सब पूजा के संग्रह श्रावकाचार' पूरा किया था। पापके द्वारा अनेक विषय में लिखी गई हैं। कवि की अन्य रचनामों के अन्य दातृ प्रशस्तियां लिखी गई हैं जो सं० १५१६ से सम्बन्ध में अन्वेषण करना चाहिए। नन्दीश्वर पूजा मोर १५४२ तक की लिखी हुई उपलब्ध होती हैं। म.जिनऋषि मंडलयत्र पूजा ये दो ग्रंथ भी इनके बताये जाते हैं। चन्द्र के शिष्य पुस्तक गच्छीय श्रुतमुनि और दो अन्य परन्तु उनके बिना देखे यह कह सकना कठिन है कि वे मुनियों से मेधावी ने प्रष्टसहस्री का अध्ययन किया था। इन्ही वीरु की कृति हैं या अन्य किसी वीरु नाम के जिनचन्द्र के शिष्य रत्नकीति, रत्नकीति के शिष्य विमलविद्वान की।
कीति थे। जो श्रुतमुनि के द्वारा दीक्षित थे। मेधावीकृत पांचवे कवि पं० मेघावी है। जो सोलहवीं शताब्दी के दातृ प्रशस्तियों में अनेक ऐतिहासिक उल्लेख पौर तात्काप्रसिद्ध भट्टारकीय विद्वान थे। पापका वंश अग्रवाल था, लिक श्रावको की धामिक परिणति का परिचय पिता का नाम साह 'उखरण' पौर माता का नाम 'भीषही' है। मघावा
ही है। मेघावी प्रतिष्ठाचार्य भी थे। परन्तु इनके द्वारा प्रतिथा३ । कवि प्राप्त मागम के घद्धानी मौर जिन चरणों के ष्ठित मूर्ति मभी अवलोकन में नहीं प्राई है। भ्रमर थे। इनके गुरु भ.जिनचन्द्र थे जो दिल्ली में भ० छठवं कवि है, छोहल जो भग्रवाल कुलभूषण नाल्लिगशुभचन्द्र के पट्ट पर संवत् १५०७ की ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी वंश के विद्वान थे। पाप के पिता का नाम नाथ या नाथके दिन प्रतिष्ठितए थे। मापकी जाति बघेरवाल और राम था५। पापकी रचनामों में पच सहेली गीत. पन्थीपट्टकाल ६४ वर्ष बतलाया जाता है। किन्तु मापके द्वारा गीत, पचान
जा गीत, पंचेन्द्रियवेलि भोर बावनी भादि है। पंचसहेलीगीत प्रतिष्ठित मूर्तियां सं० १५०२ की उपलब्ध होती है। एक
और एक शृगार परक रचना है जो सं० १५७५ मे फाल्गुन १. चन्द्रबाणाष्टषप्ठाकैः (१५८६) वर्तमानेष सर्वतः। ४. सपादलक्षे विषयेऽतिसुदरे श्रीविक्रमनपान्नूनं नयविक्रमशालिनः ।।
श्रिया पुरं नागपुरं समस्ति तत् । पोषे मासे सिते पक्षे षष्ठोंदुदिननामकः (के)। पेरोजखानो नृपतिः प्रपाति रुहितासपुरे रम्ये पाश्र्वनाथस्य मन्दिरे |
यन्यायेन शौर्येण रिपूग्निहन्ति च ॥१८.
-धमंचक पूजा २. वेदाष्टबाण शशि-सवत्सर विक्रमनपादहमाने।
मेधाविना निवसन्नहं बुधः, रुहितासनाम्नि नगरे बबर मुगलाधिराज-सद्राज्ये ॥ पूर्वा व्यवां ग्रंथमिमं तु कार्तिके । श्रीपाश्वचैत्यगेहे काष्ठासंघेच माथुरान्वयके ।
चंद्राम्धिबाणकमितेऽत्र वत्सरे, पुष्करगणे बभूव.......................॥
कृष्ण त्रयोदश्यहनि त्वभक्तितः।। -वृहत्सिरचक्रपूजा।
-धर्मस ग्रह श्रा. ३. स्वग्रोतानूकजातोदरणतनुरुहो भीषुहीमातृसूतः। ५ नातिग बंस सि नाथु सुतनु, अगरवास कुल प्रगट रमि। मोहास्यः पंडितो जिनमतनयतः श्रीहिसारे पुरेऽस्मिन् ।। बावनी बसुधा बिस्तरी, कवि कंकण छीहल कवि ।।
-धर्म संग्रह श्रा।