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प्रनकान्त
पर वह प्रतिमा वहाँ से हटायो न जा सकी। देववाणी से सूत्र, पावश्यकणि, उत्तराध्ययन सूत्र, नन्दीसूत्र और ज्ञात हा कि उसकी राजधानी शीघ्र ही भूमिसात् हो जाने विविधतीर्थकल्प आदि में इनके पाख्यान पाते है२८ । वाली है अतः यह प्रतिमा यहीं रहना चाहिए। अतएव प्रार्यरक्षित सूरि सोमदेव और रुद्रसोमा के पुत्र थे। जो उदायन ने वहीं एक मन्दिर का निर्माण कराया और उसमें दशों दिशामों के सारभूत दशपुर में रहते थे२६ । फल्गुवह प्रतिमा स्थापित कर दी२४ । अपने देश को लौटकर रक्षित इनका अनुज था। उच्चशिक्षा प्राप्त करके जब ये चण्डप्रद्योत ने जीवन्त स्वामी२५ की पूजा की और उस पाटलिपुत्र से दशपुर लौटे तब स्वय राजा ने इनकी मन्दिर को १२०० ग्रामों का दान किया।
अगवानी को थो३० । माता के कहने पर ये दृष्टिवाद का प्रथम शती ई० १० मे रचित नन्दीसूत्र में प्रार्यरक्षित अध्ययन करने को प्राचार्य तोसलीपुत्र के पास गये मरि की वन्दना की गयी है। इन्होने न केवल चारित्ररूपी जिन्होंने इन्हे दीक्षित करके दष्टिवाद की शिक्षा दी। सर्वस्वकी रक्षाकी थी बल्कि रत्नोकी पेटी के सदृश अनुयाग फिर ये उज्जयिनी मे बज्रगुप्त सूरि के पास पाये और की भी रक्षा की थी२६ । दशपुर इनके जन्म से ही नहीं, वहा मे यथामभव ज्ञानार्जन करके वजस्वामी से अध्ययन महत्वपर्ण योगदान से भी मबद्ध रहा है२७ । दशवकालिक करने लगे। एक an फल्गाशित को माता ने ले लेने
के लिए भेजा। पार्यरक्षित ने उसे भी दीक्षित कर विद्या२४. प्रद्योतोपि वीतभय प्रतिमाय विशुद्धधी ।
ध्ययन कराया ३१ । एक दिन उन्होंने गुरु से पूछा कि शासनेन दशपुर दस्वान्ति पुरीमगात् ॥
मने दशम पूर्व की यविकार्य तो पढ़ ली, अब कितना अन्येधुविदिशा गत्वा भायलस्वामिनामकम् । देवकीयं पुर चक्रे नान्यधा धरणोदितम् ।।
अध्ययन और शेष है ? गुरु ने उत्तर दिया कि अभी तो विद्युन्मालीकृताय तु प्रतिमाय महीपति ।
तुम मेरु के सरसो और समुद्र की बूद के बराबर ही पढ़ प्रददौ द्वादशग्रामसहस्र शासनेन स.॥
सके हो३२ । कुछ समय तक और अध्ययन करके वे दश. --हेमचन्द्राचार्य, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, 'पुर ग्राये और वहां उन्होंने अपने सभी स्वजनो को दीक्षित
१०१२।६०४-६ । २५. यह वास्तव में महावीर स्वामी की प्रतिमा थी जिसे २८ देखिए, श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ म श्री
महावीर स्वामी के जीवन काल में ही निमित कगये मदनलाल जोशी का लेख, पृ० ४५२ और प्रागे । जाने के कारण जीवन्तस्वामी की प्रतिमा कहा जाता
२६. प्रास्तेपूर दशपुर मार दशदिशामिव ।
है। था। परन्तु इस नाम की प्रतिमा की परम्परा लग
मोमदेवो द्विजस्ता रुद्रसोमा च तत्प्रिया ।। भग एक हजार वर्ष तक चलती रही। देखिए, शाह
-प्रावश्यककथा श्लोक १। उमाकान्त प्रेमानन्द का लेख, जरनल प्राफ दी प्रोरिएण्टल इस्टीट्यूट, जिल्द १, अक १, 70 ७२ २०. चतुर्दशापि तत्रासौ विद्यास्थानान्यधीतवान् । पौर भागे तथा जिल्य १, अंक ४, १० ३५८ पौर अथागच्छद् दशपुर राजागात् तस्य सम्मुखम् ॥ मागे ।
-वही श्लोक ७७। २६. बंदामि प्रज्जरक्खिय-खवणे, रक्खियचारित्त सवस्त। ३१ सोम्यवाद् भ्रातरागच्छ व्रतार्थी तेजनोखिल । रयण-करडग-भूप्रो, अणुयोगो रक्खिनो जेहि ।। __ स ऊंचे सत्यमेतच्चेत् तत्त्वमादो परिव्रज ।। -नन्दीसूत्र (लुधियाना, १६६६), गाथा ३२ ।
-वही इलोक ११३। २७. विस्तृत विवरण के लिए दखिए, अभिधान राजेन्द्र ३२. यविकोणतो प्राक्षीत्, शेषमस्य कियत् प्रभो।
कोष में प्रज्जरक्विय' शब्द (पागे के उद्धरण वही स्वाम्यच मर्पर मेगेबिन्दुमब्धस्त्वमग्रही । में लिए गये है)।
--वही, ग्लोक ११४ ।