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बशपुर मन्दसोर :
प्राचीनकाल में मन्दमोर को दशपुर एक देश का नाम बार, उसकी
मन्दसोर में जैनधर्म
गोपीलाल 'अमर' एम. ए.
पुर२ बहते ये । जपानी भी
१. मध्यप्रदेश के पश्चिम में इसी नाम के मुख्यालय ।
२. इस नाम की सार्थकता सिद्ध करने वाली एक मनोरजक घटना का उल्लेख श्रावश्यक सूत्र की चूणि निर्मुक्ति और वृत्ति यादि में इस प्रकार मिलता है।
महाराज उदयन (छठी शती ई० पू० ) चण्डप्रद्योत को बन्दी बना कर अपनी राजधानीको ले जा रहा था कि वर्षाकाल प्रारम्भ हो जाने से वह अपने अधीनस्थ राजाओं के साथ मार्ग में ही ठहर गया। उन राजाश्रों
एक जिले का
ने सुरक्षा के लिए दस दस किले बना लिए। चार माह में वहाँ ग्रामवासियों का यातायात और श्रावास भी प्रारम्भ हो गया । वर्षाकाल के पश्चात् उदयन और वे राजा तो वहा मे चले गए पर जो लोग वहाँ रहने लगे थे वे वही रहते रहे और वहा एक नगर ही बस गया जिस दस पुरो ( किलों) के कारण 'दशपुर' ही कहा जाने लगा।
३. कुमारगुप्त के ददापुर अभिलेख (श्लोक ३०) मे इसे मपुर' भी कहा गया है क्योकि गुप्तकाल मे यह पश्चिम भारत का सर्वश्रेष्ठ नगर माना जाता
था ।
४. मलीदार देशे पुरगोनदयोरपि विश्वलोधनकोश ( बम्बई, १९१२ ) रान्तवर्ग, श्लोक २७३, पृ. ३२२ ५. प्राचीन जनपदों की परम्परागत सूचियों मे दशपुर का नाम नही मिलता, उसे प्रवन्ति या मालवा मे मन्नर्गमित किया गया है।
६. काशी देश की राजधानी वाराणसी भी कालान्तर मे 'काशी' ही कही जाने लगी थी।
दशपुर कहलाती थी७ । 'मदमोर' शब्द 'मद उर' का तद्भव रूप प्रतीत होता है जिसका अपभ्रंश 'मढ दसउर' होगा । 'दसउर' का पाणिनीय व्याकरण द्वारा संस्कृतीकृत रूप 'दसोर' होगा। 'मढ' शब्द का मुखमुख के लिए गढा हुआ रूप 'मण' और फिर 'मन होगा । 'मन दसोर १०' ही 'मन्दसोर' या 'मदमोर' बना होगा। संक्षिप्त इतिहास :
रामायणकालीन चन्द्र वशी राजा रन्तिदेव की राजधानी दशपुर मे थी १२ । छठी शती ई० पू० के प्रवन्ति
७ बृहत्सहिता (२४, २० ) और कुमार गुप्त तथा
अन्वर्धन के पावाचस्तम्भ तेल मे इसे एक नगर के रूप मे ही उल्लिखित किया गया है।
८. मढ़ नाम का एक स्थान मन्दसोर के पास श्राज भी विद्यमान है ।
६.
'दस + उर', 'प्रदेङ् गुण. (अष्टाध्यायी, ११११२ ) सूत्र से गुण संज्ञा और 'श्राद् गुण ( वही ६।१४६७) ' मूत्र से गुण स्वर सन्धि होने पर 'दसोर' होगा । १०. मन्दसोर के लिए दसोर दाद भी प्रयुक्त होता है। देखिए, ग्वालियर स्टेट गजेटियर, प्रथम भाग पृ० २६५ श्रर भागे इस क्षेत्र में कुछ समय पूर्व तक पाये जाने वाले दसोरा ब्राह्मण भी यही सिद्ध करते है।
११. कुछ विद्वान् इसे 'मन्दसौर' मान कर कहते है कि यहा चूकि सौर (सुरस्य इदं सौरम् ) अर्थात् सूर्य का तेज मन्द होता है (मन्द सोरं यस्मिन् तत् मन्दसौरं नाम नगरम् ) प्रत यह मन्दसौर वहा जाता है ।
१२. मेघदूत ( पूर्व मेघ ), श्लोक ४५ पर मल्लिनाथ का टीका ।