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अपवालों कान संस्कृति में योगदान
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सहयोग भी प्रदान करते थे। वीरसेवामन्दिर तो उनकी उल्लेख नहीं किया। कवि की प्रथावधि तीन रचनामों प्रवृत्तियों का जीता जागता उदाहरण है। पुरातत्त्व के का उल्लेख मिलता है, जिनमे दो उपलब्ध है तथा उनकी सम्बन्ध में उनके कई महत्व के लेख प्रकाशित हुए हैं, और भाषा अपभ्रंश या पुरानी हिन्दी है तीसरी रचना की
भी बहत मी सामग्री उनकी अपूर्ण पड़ी है । खण्ड गिरि भाषा भी अपभ्रंश ही जान पडती है। और तीसरी रचना उदयगिरि के सम्बन्ध में उन्होने जो प्रयत्न किया वह भी चन्द्रप्रभचरिउ' का पाश्वनाथ चरिउ की माय प्रशस्ति मे सराहनीय है। वे प्रतिथि सत्कार के बड़े प्रेमी थे। उनके उल्लेख है। कवि ने पाश्वनाथ चरित्र की रचना सवत् लघुभ्राता बाबू नन्दलाल जी सरावगी भी अपनी उदार ११८६ मे योगिनीपुर (दिल्ली मे) अनंगपाल (तृतीय) के प्रवत्ति द्वारा सामाजिक क्षेत्र में सेवा-कार्य बड़ी लगन से राज्य मे मगसिर वदी अष्टमी के दिन की है। इस ग्रन्थ करते हैं। पूज्यवर्णी गणेशप्रसाद जी के स्मारक तय्यार की स. १५७७ की लिखी प्रति मागेर शास्त्र का भण्डार कराने मे पापने जो सहयोग दिया वह प्रशंसनीय है। मे उपलब्ध है। वीरसेवामन्दिर में तो पापका सराहनीय सहयोग रहा है कि टमरी रचना 'araमाण चरित। और वर्तमान मे है । दोनो ही भाई पूज्यवर्णीजी के प्रत्यन्त की १० सन्धियो मे जैनियो के अन्तिम तीर्थकर वर्धमान भक्त है, वर्णी जी महापुरुष थे, उनका सभी पर सम भाव का जीवन-परिचय प्रकित है । कवि ने इस कृति को रहता था। अन्वेषण करने पर अग्रवाल समाज के अनेक 'वेदार' नगर के जायसवशी दिनकर, ज्ञाह नरवर के पत्र व्यक्तियों का ऐसा परिचय भी उपलब्ध होगा जिन्होने नेमचन्द की मनमति से वि०म० ११६० के ज्येष्ठ मास देश, धर्म और समाज के उत्थान में अपना सर्वस्व प्रपंण के प्रथम पक्ष की पचमी गुरुवार के दिन समाप्त की है। किया है।
प्रथ की प्रति ध्यावर भवन में उपलब्ध है। कतिपय अग्रवाल जैन कवि और विद्वान
द्वितीय कवि सघारु है जिनकी जाति अग्रवाल थी। जैन संस्कृति के प्रसार प्रौर प्रचार में केवल श्रावको
पिता का नाम महाराज और माता का नाम 'मुधनु' था। ने हो योगदान नहीं दिया किन्तु समय-समय पर अनेक
जो गुणवती थी। कवि रच्छ नगर के निवासी थे। अग्रवाल जैन कवियो पौर विद्वानो ने अपनी रचनामों
इनकी बनाई हुई एक मात्र कृति 'प्रद्युम्न चरित्र' है जिसमे द्वारा लोक कल्याण की भावनामो को प्रोत्तेजन दिया है।
यादववंशी श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जीवनचरित प्रकित इतना ही नहीं किन्तु तात्कालिक रीति-रिवाजों के साथ
किया गया है। यह हिन्दी भाषा का एक सुन्दर चमित अपनी धार्मिक भावनामों को वृद्धिगत किया है। अग्रवाल जैनों में अनेक कवि हुए होगे किन्तु यहा उनमें से कुछ १. स णवासिएयारहसएहि, विद्वानो और कवियों का ही संक्षिप्त परिचय दिया जाता परिवाडिए बरिसहं परिगाह ।
कसणटुमीहि मागहणमासि, प्रथम कवि श्रीधर हरियाना देश के निवासी थे और रविवार समाणिउ मिसिर भामि ।। अग्रवाल कुल में उत्पन्न हुए थे, वे हरियाना से यमुना नदी
-पासणाह चरिउ प्रशस्ति को पार कर दिल्ली प्राये थे। कवि ने पार्श्वनाथ चरित २. णिवविक्कमाइच्च हो कालए, की प्रादि प्रशस्ति में दिल्ली का प्रच्छा वर्णन दिया है।
णिक्छव वर तूर खालए। वहां के तात्कालिक शासक तोमरवंशी राजा मनगपाल
एयारह मएहिं परिविगयहिं, (तृतीय) का भी उल्लेख किया है जिसका राज्य संवत् मंवच्छर सय णवहिं ममेयहिं ।। ११८६ मे दिल्ली में मौजूद था। कवि के पिता का नाम जेट पहम पक्ख इ पंचमि दिणे 'बुधगोल्ह' और माता का नाम 'बील्हा देवी' था। कवि गुरुवारे गयणं गणि ठिइयणे ।। ने अपनी गुरु परम्परा और जीवनादि घटना का कोई
-वर्धमान परित प्रशस्ति