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अनेकान्त
यह विचार सर्वमान्य नहीं है। विभिन्न कसौटियो पर यह है। दानग्रहणकर्ता श्री विजय देव पण्डित मूलसंघ परम्परा लेख खरा उतरता है।
की देवगण शाखा से सम्बन्धित थे। वह जयदेव पण्डित चालुक्य नरेश विजयादित्य के शासन काल के तीन के शिष्य रामदेवाचार्य के शिष्य थे । दान एक व्यापारी अभिलेखों का सम्बन्ध जैन सम्प्रदाय से है। शिवगाँत्र के अनुरोध पर, जिन पूजा के विकासार्थ दिया गया था२०॥ (धारवाड़ जिला) से उपलब्ध ताम्रपत्र में शक ६३० मे, कीर्तिवर्मन द्वितीय के शासन काल के तीन अभिलेखो में मलूप (मलूक) सामन्त चित्र वाहन के अनुरोन पर जैनों का उल्लेख है। इनमें से दो अभिलेख तो पाडूर जिला विजयादित्य द्वारा जैन विहार को दान देने का विवरण धारवाड से मिले हैं २१, तथा एक अण्णिगेरि में मिला है २२॥ है १६ । इम जैन विहार का निर्माण विजयादित्य को बहिन आइर से प्राप्त दोनों अभिलेख तिथि विहीन हैं। प्रथम कुकम देवी द्वारा पुलिगेरे नगर में किया गया था। कुकम ग्राडर अभिलेख का प्रारम्भ वर्धमान की प्रार्थना के साथ देवी द्वारा जैन सस्थान का निर्माण चालुक्य नरेशों द्वारा होता है। किसी राजा या सामन्त द्वारा २५ निवत्तन जैनों को श्रद्धा की दृष्टि से देखने का मकाट्य प्रमाण भूमिदान का उल्लेख है। दान धर्मगामुण्ड द्वारा निर्मित है । इसी गज्यकाल के दो अभिलेख लक्ष्मेश्वर में मिले जिनालय और भिक्ष गह को दिया गया था। प्राडर से हैं। प्रथम की तिथि शक ६४५ तथा द्वितीय की तिथि सो प्रभिलेख में कीतिवर्मन विसीय और उसके ६५१ शक है१७ । शक ६४५ का लक्ष्मेश्वर अभिलेख
सामन्त माधववत्ति प्ररस का उल्लेख है। इसमे माधववत्ति नष्टप्राय है और उसके विवरणों के विषय मे नि मन्दे-
जिनेन मन्दिर के पजार्थ तथा अन्य धार्मिक हात्मक रूप से कुछ भी कहना कठिन है। शक ६५१ क्रियानों के लिये परलर के चेडिय (चैत्य) को भूमिदान वाले अभिलेख में विजयादित्य द्वारा पुलिकर नगर के देने का विवरण है जैन गुरु व प्रभाचन्द्र का भा दाना दक्षिण में स्थित कदम नामक ग्राम को उदयदेव पडित आडर प्रभिलेखो में उल्लेख है। अण्णिगेरि (जिला बारउपाख्य निर्वाध पण्डित को दान दिये जाने का विवरण वाड) से प्राप्त अभिलेख मे जेवफगेरि के प्रमुख कलिहै। परम्पग की देवगण शाखा से सम्बधित थे। दान यम्म द्वारा चेडिय (जैन मन्दिर) के उल्लेख है । लेख पुलिकर नगर के शव जिनेन्द्र के मन्दिर के लाभार्थ दिया
के सम्पादक श्री यन. लक्ष्मी नारायण राव के अनुमार गया था। उदय देव पण्डित को सम्रट् विजयादित्य के
कलियम्म कोत्तिवर्मन द्वितीय के प्राधीन कोई अधिकारी पिता का पुरोहित बनाया गया है१८ । अतएव यह स्पष्ट पारा ही है, कि विनयादित्य को भी जैनो मे प्रास्था और श्रद्धा पक्त संक्षिप्त विवरण से यह स्पष्ट है कि प्राय' थी। उसके शासन काल मे उन्हे पूर्ण सम्मान एवम् सर- सभी चालक्य नरेशो ने इस धर्म के प्रति अपनी क्षण प्राप्त था।
की है । चालुक्य नरेश विजयादित्य के पुरोहित का जैन विक्रमादित्य द्वितीय के शासन काल का शक ६५६ होना. राजवंश मे जैनों के प्रभाव मोर मादर का स्पष्ट का लक्ष्मेश्वर अभिन्ने ख १६, उसके शासन काल मे जैनो
प्रमाण देता है। प्राय. सभी अभिलेखो में जैन मन्दिगे के को स्थिति पर प्रकाश डालता है। इसमे विक्रमादित्य
निर्माण या जीर्णोद्धार का उल्लेख है जो यह बताता है कि द्वितीय द्वारा पुलिकर नगर मे शस तीर्थ वसति नामक
उस युग में इस प्रदेश मे जिन पूजा पर्याप्त उन्नतिशील मन्दिर को सुशोभित करके, श्वेत जिनालय के जीर्णोद्धार
अवस्था में थी। प्राधे से अधिक जैनों से सम्बन्धित के उपरान्त नगर के उत्तर में भूमिदान देने का विवरण
२० इण्डियन एण्टिक्वेरी जिल्द ७, पृ० ११६ और पागे १६ ए० इ०, जिल्द ३२. पृ० ३१७ और प्रागे २१ इण्डियन एण्टिक्वेरी, जिल्द ११, पृ० ६६, कर्नाटक । १७ इण्डियन एण्टिक्वेरी जिल्द ७, पृ० ११२
अभिलेख (पंचसुखी द्वारा सम्पादित) जिल्द १ पृ०४ १८ इण्डियन एण्टिक्वेरी जिल्द ७, पृ० ११२
२२ एपिग्रेफिया इण्डिका, जिल्द २१, पृ० २०६ १९ इण्डियर एण्टिक्वेरी जिल्द ७, पृ० १०६
२३ एपिनेफिया इन्डिका जिल्द २१, पृ० २०६ और मागे