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महाकवि समयसुंदर और उनका दान शील तप भावना संवाद
मारा संसार भला लगता है५ । तत्पश्चात् भगवान महा- ममान बतलाया है १ । किन्तु महाकवि फिर भी निष्कर्ष वीर अपना चातुर्तन्वममन्विन धर्मोपदेश प्रारभ करते है६। म्प मे भाव को ही श्रेष्ठ बतलाते हैं, क्योंकि वह अकेला
ही सर्वथा समर्थ है, यद्यपि बुरा वे तीनों को भी नहीं काव्यत्व
बतलाते२। भाव-पक्ष की दृष्टि से तो रचना में धर्मोपदेश ही को कला-पक्ष भी कृति का समद्ध है। सरल और मुहाप्रमुग्खता है। भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट धर्म के चारों वरेदार चुटीली भाषा मे धर्म-तत्त्वो का सवाद बड़ा ही तत्त्वों पर प्राचरण करने की प्रेरणा तो प्रस्तुत कृति से गेचक है। दोहा और पाच देशी ढालों-१. मधुकर, मिलती ही है, सहृदयो को शात रम से सराबोर होने का २ पास जिणंद जहारीयइ, ३ नणदल (दल), ४. कपूर भी मुअवसर मिलता है।
हुयइ अति ऊजल रे तथा ५. चेति चेतन करी-मे कृति
पाबद्ध है। उपमा, उदाहरण, अनुप्रास प्रादि अलंकारों भगवान महावीर ने तो यद्यपि विवाद मिटाने के लिए
का प्रयोग विशेषत. हुया है। मध्यम मार्ग निकाल कर दान शील तप और भाव को -
१. भगवन हठ भाजण भणी, च्यारे सरिखा गणति ।
च्यार करी मुख प्रापणा, चतुर्विध धरम भणति ।।४/८ ५. को केहनी म करउ तुम्हे, निदा नइ प्रहकार ।
० नउ पणि अधिक भाव छइ, एकाकी समरस्थ । आप प्रापणी ढामइ र य उ, सहु को भलउ मसार ।।४/५
दान मोल तप त्रिण भला, पणि भाव बिना अकयाथ ।४/६ ६. धरम हीयइ धरउ, धरम ना च्यार प्रकागे रे ।
अजन प्राख पाजता, प्रधिकी प्राणि रेख । भवियण सांभल उ, धरम मुगति मुग्वकागे रे।।५२
ग्ज माहे तज काढता, अधिक उ भाव विदोष ॥७
साहित्य-समीक्षा
१. प्राकृत भाषा-लेखक डा. प्रबोध वेचरदास विकाम भारतीय प्रायं प्रदेश में होता है और अश्वघोष पडित, प्रकाशक पाश्र्वनाथ विद्याश्रम हिन्दू यूनिवमिटी के समय में प्राकृत माहित्यिक स्वरूप प्राप्त कर लेती है। वाराणसी। पृ० मख्या ५७ मूल्य हंढ रुपया।
बोलियो के भेद से ही प्राकृत के विभिन्न रूप दृष्टिगोचर प्रस्तुत पुस्तक प्राकृत भाषा पर सन् १९५३ मे दिये होते है । नाटकों की प्राकतो पर भी विचार किया गया गये प्रबोध पडित के तीन भाषाप्रो का सकलन है। जिसे है। प्रस्तुत पुस्तक प्राकृत के छात्रों के लिए विशेष उपउन्होने सितम्बर के महीने में बनारस यूनिवर्सिटी के योगी है। भारती महाविद्यालय में दिये थे। उनमे पहला भाषण २. बौद्ध और जैनागमों में नारी जीवन-लखक डा. प्राकृत भाषा की ऐतिहासिक भूमिका, दूसरा प्राकृत के कोमलचन्द जैन, प्रकाशक मोहनलाल जैन धर्म प्रचारक प्राचीन बोली विभाग। इस भाषण में प्राकृत सम्बन्धि समिति अमृतसर । पृ० सध्या २७० मूल्य १५ रुपया। भनेक बोलियों पर विचार करते हुए व्याकरण की दृष्टि प्रस्तुत शोधप्रबन्ध मे, जिम पर हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राकृत भाषा के कुछ रूपों पर विचार किया गया है। बनारस से लेखक को पी-एच. डी को डिग्री मिली है। तीसरा है प्राकृत का उत्तर कालीन विकास । इस निबन्ध ग्रन्थ के ७ अध्यायों में बौद्ध और जैनागमो में विहित मे महावीर और बुद्ध के समय प्रतिष्ठित प्राकृतों का नारी के जीवन पर अच्छा प्रकाश डाला गया है।