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मोम पहन
अनेकान्त
परमागमस्य बीजं निविडजात्यषसिन्धुरविधानम् । सकलमयविलसिताना विरोषमयनं नमाम्यनेकाम्सम् ॥
वर्ष २० किरण ३
। ॥
वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण संवत् २४६३, वि० सं० २०२४
अगस्त । सन् १९६७
सुपार्श्व-जिन स्तुतिः
(मुरजः)
स्तवाने कोपने चैव समानो यन्न पावकः । भवानेकोऽपि नेतेव स्वमाश्रेयः सुपाश्र्वकः॥२६॥
-समन्तभद्राचार्य
मर्ष-हे भगवन् ! सुपाश्र्वनाथ ! माप, स्तुति करने वाले पौर निन्दा करने वाले दोनों के विषय में समान हैं-राग द्वेष से रहित हैं। सबको पवित्र करने वाले है-सबको हित का उपदेश देकर कर्म बन्धन से छुटाने वाले है। मत: माप एक प्रसहाय (दूसरे पक्ष में प्रधान) होने पर भी नेता की तरह सबके द्वारा प्राश्रयणीय है-सेवनीय हैं।।
भावार्य-जिस तरह एक ही नेता भनेक प्रादमियों को मार्ग प्रदर्शित कर इष्ट स्थान पर पहुंचा देता है उसी तरह भाप भी अनेक जीवों को मोक्षमार्ग बतलाकर इष्ट स्थान पर पहुंचा देते हैं। और स्वयं भी पहुंचे हैं। प्रतः पाप सब की श्रद्धा और भक्ति के भाजन है।