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अग्रवालों का जन संस्कृति में योगदान
का महत्व ख्यापित होता है। भाठवीं रचना 'वैद्यविनोद' ४७. बारहमासा चरित्रगडेका १२५०, ४८. विवाहगीत है जिसे कवि ने सं० १७०४ मे सुलतानपुर (भागग) में वारहमास १२५०, ४६. रुसिनवेली का बारहमास ५ बनाया था। अन्य शेष रचनामो में संवत् नहीं दिया है। १४५०, ५०. गीत ११ १०, गढ़ दिल्ली में बनाया। प्रतएव वे सब रचनाएँ इन्ही के मध्य में रची गई है। ५१ वैगगीलाल बारहमासा १६ प. (मोती बाजार उनके नाम और पद्य संख्या निम्न प्रकार हैं :
दिल्ली में बनाया), ५२. चौमासा गीत ५ ५०, मधुकर .टडाणारास, १०. प्रादित्यव्रतगस, ११.पखवाडा गीत १४ प० दिल्ली मोती बाजार में बनाया। ५३. रास, १२. दशलक्षण रास.१३. खिचडीरास. १४. ममा- दिवाली ढाल गीत ११५०दिल्ली मोतीबाजार में बनाया. घिराम, १५. जोगीरास, १६. मनकरहारास, १७. रोहिणी- ५४. रागमारू पद १-१३ ५०, ५५. पश्चिमी भाषा का व्रतरास, १८, चतुरखनजारा रास, १९. द्वादश अनुप्रेक्षा, वणजारा गीत १४ ५०, ५६. ढमाल ३५५०, ५७. राज. सुगध दशमी कथा, २१ प्रादित्यवार कया, २२. अनथमी मती नेमीसुर गीत १८५०, ५८. मुक्तावलिरास २०५०. कथा, २३. चूनड़ी (मुक्तिरमणकी) २४. राजमती नेमी- ५६. राजमती नेमीश्वर ढमाल ८६ ५०, कपिस्थल में नाथ स्तवन, २५. सज्ञानी ढमाल, २६. प्रादित्यनाथ स्तवन, बनाया, ६०. वनजारा गीत ३५ पद्य । २७. शान्तिनाथ स्तवन, ८. बावनी छपई ७ पद्य, २६. इनके प्रतिरिक्त कवि की अन्य अनेक रचनाएँ प्रभी मनहरणगीत मे ६५०, ३०. मनमइगलुगीत २ १३ प०, ३१. मन्वषणाय है । इन रचनामा में से कतिपय रचनाएं सुन्दर दहाढालगीत १२ १० ३२. दहाढाल गीत (द्वितीय) १५ । हैं; और प्रकाशन की वाट जोह रही हैं । खेद है कि दिन पद्य, ३३. ललारे गीत १२५०, ३४. दहागीत ११ १०, समाज का ध्यान साहित्य प्रकाशन की पोर नगण्य सा है। ३५. भमरा गीत १८ प०, ३६. लघुमन्धि, ३७ खिचडी दसवे कवि पाडे रूपचन्द हैं। इनकी जाति मप्रवाल रासु २६ ५०, ३८ बडावीर जिनिंदगीत २२ ५०, ३६. और गोत्र 'गर्ग' था। इनका जम कुरुदेश के सलेमपर' हालिमडे का गीत १७ प०, ४०. सांवला गीत १२५०, नाम के स्थान पर हुमा था। इनके पितामह का नाम ४१. राइसाढालगीत १७ प०, ४२. चैतढमाल ३ राग मामट मोर पिता का नाम भगवानदास था । भगवानदास सालिग १७ प० ४३. ढमाल गग गाडी १७५०, की दूसरी पत्नी से रूपचन्द का जन्म हुमा था। इनके पार मोतीहटकई देह रह रंग भीने, मारूलाल रंग भीने हो। भाई और भी थे, हरिराज, भूपति, प्रभयराज पौर कीति४४. तुम छाडि चले जिन लाहो, गीत १०प०, ४५. मन- चन्द्र । रूपचन्द ने बनारस में शिक्षा पाई थी, विद्वान और सवा गीत १८ पद्य, कर्मचेतना हिंडोला गीत १६ १०, कवि थे और अध्यात्म के प्रेमी थे। इनकी कतिया परमार्थी १. सत्रह सइ रुचि डोत्तरइ. सुकल चतुर्दशि चतु।
दोहा शतक, मगल गीत प्रबन्ध, नेमिनाथ गस, खटोलना गुरु दिन भनी पूरनु करिउ, सुलितांपुर सहजयतु ॥
गीत और अध्यात्मपद पापका दोहा शतक और प्रध्यात्मिक
गीत दोनों ही सांसारिक विषयों से विराग उत्पन्न करनेवाले २. इद्र धनुष सम सोहनी विषय सुखन की प्राशा रे।
सुख चाहइ ते वावरे प्रति जु होहि निरासा रे॥५ तई तजिय मतिहीन समझ मनसूवा रे ॥१॥ अंत-परे धर्म ध्यान मनुलाइए तउ पावमि मिव वासोरे,
x ___ मोतीहट जोगिनिपुरे भनत भगोती दासोरे। प्रत-दास भगवती इउं मनइ मनसूवा रे । ३. अंत-ललना मोतीहट जोगिनपुरे भनत भगोतीदास । जो गावहि नरनारि समुझि जिनवाणी, जिनजी जे नर गावही ते खंडति प्रघ-पासु।
मनधरह मनसूबा रे। ललना नेमिनवल मेरइ मनिवसे ॥१७॥
ते उतरहि भव पार समझ मनसूवा रे ॥१८॥ ४. पादि-भव वन भमत दुखित भए मन सूवारे ।
५. अंत-जे नर नारी जिण गुण गावहि, इद्रिय मुख ज अधीन समभ मन सूवारे ।
पावहि अमर विलासो। श्री जिनशासन वनु भला मनसूवारे ।
गढ़ दिल्ली मोतीहटि जिणहरि भणत भगौतीदासो ॥१४