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अनेकान्त
ह्येतत् (१८२) ये पद्य टीका में नहीं है । टीका में विवरण मालुम नही) चौलुक्य नृपति (कुमारपाल) की प्रार्थना से के 'प्रथवा शकुना द्विधात' नामक पद्य न० १७७ से पहले प्रेरित होकर लिया गया है, यह बात स्वोपज्ञवत्ति (विव'यदुक्तं' रूप मे ६ पद्य दिये है, पश्चात् 'अथ यत्रमाह' रण) के निम्न पदय से जानी जाती हैवाक्य के साथ बहुत से पद्य यंत्र-मत्रादि के साथ दिये है, श्री चौलुक्यक्षितिपतिकृतप्रार्थनाप्रेरितोऽहं, तदनन्तर उक्त पद्य न० १७७ को लिया है । इसी तरह तत्त्वज्ञानामृतजलनिधोगशास्त्रस्य वृत्तिम् । विवरण में स्थित 'लग्नस्थश्चोच्छशीसौरि'-(२०३) से स्वोपज्ञस्य व्यरचयमिमां तावदेषा च नन्द्याद्, 'एबमाध्यात्मिक काल' (२२४) नाम के पद्य भी टीका यावज्जनप्रवचनवती भवःस्वस्त्रयीयम् ।। में ग्रहोत नही है। इसके बाद 'को ज्येष्यति द्वर्योयुद्ध द्वितीय अधिकार की समाप्ति पर जो निम्न सन्धि(२२५) से लेकर 'क्रमेणवं परपुर: प्रवेशाभ्यासशक्तितः' वाक्य टीका में दिया है उममे स्पष्ट घोषणा की गई है कि (२७३) तक के पद्य टीका में पद्म न. २७४ से ३२४ यह अधिकार योगशास्त्र की टीका में उसके पांचवे प्रकाश के अन्तर्गत है-कुछ पद्य नहीं भी है, जैसे 'अग्रे वाम. की अमरकीति भट्टारक के शिष्य इन्द्र नन्दि भट्रारक विरविभाग' (२५३), 'लाभाऽलामो सुख दुःख' (२५४) चिन टीका के रूप में है:नाम के पद्य टीका मे नही है ।
इति योगशास्त्रस्य पचम प्रकाशस्य श्रीमदमरकोतिइस तरह पचम प्रकाश के विवरण और टीका दोनो भट्टारकाणां शिष्य श्री भट्रारकइन्द्रनन्दिविरशितायां मे परस्पर योगशास्त्र के मूलपद्यों की कमी-वेशी प्रादि योगशास्त्रस्य टीकायां द्वितीयोधिकारः ॥ के रूप में कितना ही अन्तर पाया जाता है । यह सब पदयो के उक्त अन्तर के अतिरिक्त प्राठो प्रकाशो मे अन्तर कब कैसे तथा किसके द्वारा घटित हुमा, एक अनु- विवरण गत तथा टीकागन मूल इलोको मे परस्पर पाठासधान का विषय है, जिसका पता उन प्रति प्राचीन प्रतियों न्तर भी बहत पाये जाते है, जिनमें कुछ साधारण और तथा उनपर से होनेवाली दूसरी प्रतियो से चलाया जा कुछ विशेष महत्व के है, उन सब की सूची बनाना समयमकता है जो स्वोपज्ञवृत्ति रूप विवरण के लिखे जाने से साध्य है और इसलिये उसको यहाँ छोडा जाता है; फिर पूर्व प्रचार मे आई हों । विवरण मूल ग्रन्थ के साथ साथ भी नमूने के तौर पर कुछ पाठान्तर यहाँ पंचम प्रकाश के नहीं लिखा गया, बल्कि बाद को (कितने वर्ष बाद यह और दिग्बलाये जाते है - विवरणगत पाठ पद्य नं० सहित
टीकागत पाठ पद्य नबर सहित २१ प्राणापानसमोदानध्यानेष्वेषु वायषु ।
६ प्राणापान...... रौ लौ बीजानिध्यातव्यानि यथाश्रमम् ॥ ऐंद्रोबंरों ला बीजानि धातव्यानि यथाक्रमम २८ पाणों गुल्फे च जघायां
४३ पाणी गुल्फे जघयोश्चा ६८ उदेति पवनः पूर्व शशिन्येष यह ततः
१२६ उवेति पक्षे विनारम्भे यत्नेन शशिनस्तथा ८६ प्रथेदानी प्रवक्ष्यामि
१४५ अधुना प्रविवक्ष्यामि ११८ प्राध्यात्मिविपर्यासः, संभवेद
१७३ प्राध्यात्मिकविपर्यासः, सभवेद व्याधितोपितन्निश्चयाय, कालस्य लक्षणम्
त्याहितोपि, तत्त्वैश्वर्याय, कालस्य निर्णयम् १२७ षडाविषोडशविनान्यान्तराण्यपि शोषयेत् १८३ षडादिषोडशान्तानामग्निधोष शृणोति न । १८१ अनुपूर्णहशोगावो
२५२ अशुभघूर्णदृशो गावो