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अनकान्त
शुक्र के तेज को न सह सकने के कारण एक एक करके मर गईं। इसी तरह अन्य भी एक सो विद्याधर कन्याये मरण को प्राप्त हुई । प्राखिर में एक विद्याधर कन्या ऐसी निकली जो इस काम में उसका साथ दे सकी । उसके साथ उस ने नाना प्रकार के भोग भोगे । फिर इसी सत्यकी पुत्र ( २१ वे रुद्र) ने आकर भगवान महावीर पर उपसर्ग किया था। यह कथा श्रुतसागर ने मोक्ष पाहुड गाथा ४६ की टीका में भी इसी तरह लिखी है ० नेमिदत्त ने भी धाराधना कथा कोश में लिखी है।
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इस प्रकार उत्तरपुराण की कथाम्रो के ये उद्धरण ऐसे हैं जिनसे हम राजा लिक की धायु का पदाजा लगा सकते है कि को देश निकाला होने पर उसने जो देशांतर में एक ब्राह्मण कन्या से विवाह किया था श्रौर उससे अभयकुमार पुत्र हुआ था उस समय श्रेणिक की उम्र कम से कम १८ वर्ष की तो होगी ही । प्रागे चल कर इसी प्रभयकुमार के प्रयत्न से श्रेणिक का चलना के साथ विवाह हुआ है ऐसा कथा में कहा है । तो चलना के विवाह के वक्त धमयकुमार की धा भी १८ वर्ष से तो क्या कम होगी ? इसी प्रकार यहा तक यानी चेतना के विवाह के वक्त तक की उम्र करीब ३६ वर्ष की सिद्ध होती है । उसीसे कथा में लिखा है कि कि की आयु ढल जाने के कारण ही राजा चेटक अपनी पुत्री बेलना को खिक को देना नही पाहता था। अब प्रागे चलिये - चेलना की बहिन ज्येष्ठा को श्रोणिक की प्राप्ति न हुई तो वह दीक्षा ले प्रायिका हो गई। इसी धार्मिक के सत्यक मुनि के संयोग से सत्यकि पुत्र ( रुद्र ) उत्पन्न हुआ है। चेलना के विवाह के बाद
1. इस ११वे रुद्र का असली नाथ क्या था यह किसी ग्रन्थकार ने सूचित नही किया है किन्तु कवि अशाग ने महावीर चरित सर्ग १७ श्लोक १२५-१२६ में भव नाम दिया है । हरिषेण कथाकोश की कथा न०६७ मे तथा श्रीधर के अपभ्रंश वर्द्धमान चरित प्रादि में भी भव दिया है लेकिन यह नाम नही है रुद्र का पर्यायवाची शब्द है देखो धनंजय नाममाला श्जोक ७० अथवा अमरकोष ।
सत्यकी 'पुत्र की उत्पत्ति होने तक कम से कम एक वर्ष का काल भी मान लिया जावे तो यहा तक श्र ेणिक की उम्र ३७ वर्ष की होती है शास्त्रो मे रुद्रों के ३ काल माने हैं— कुमारकाल संयमकाल और असंयमकान हरिवंश पुराण सर्ग ६० में लिखा है कि
वर्षाणि सप्त कोमार्य विशति संयमेटभि । एकाददास्य रुद्रस्य चतुस्त्रिपादसंयमे || ५४५ ।।
- ११वे द्र का कुमारकाल ७ वर्ष, संयमकाल २८ वर्ष श्रौर प्रसयमकाल ३४ वर्ष का था ।
यह विषय त्रिलोकप्रज्ञप्ति में भी भाया है । उसके चौथे अधिकार की गाथा नं १४६७ इस प्रकार है।
सगवास कोमारी संजयकाली हवेदि चोती | अडवीसं भंगकालो एयारसयस्स रुट्स्स ॥। १४६७।। इसमें ११ व रुद्र का सयमकाल ३४ वर्ष का श्रौर श्रममकाल २८ वर्ष का बताया है । यह गाथा श्रशुद्ध मालूम पड़ती है। इसलिये इसका कथन हरिवंशपुराण मे नही मिलता है। इस गाथा में प्रयुक्त 'चौतीस' के स्थान में 'अडवीस' और 'अडवीस' के स्थान में 'चोत्तीम' पाठ होना चाहिये। जान पड़ता है किसी प्रतिलिपिकार ने प्रमाद से उलट पलट लिख दिया है।
अब प्रकृत विषय पर आइये - रुद्र ने महावीर पर उपसर्ग किया तो वह ऐसा काम सयमकाल में तो कर नही सकता है। रुद्र की संयमकाल की अवधि उनकी ३५ वर्ष की उम्र तक मानी गई है जैसा कि ऊपर लिखा गया है इन ३५ वर्षों को श्रेणिक की उक्त ३७ वर्ष की उम्र मे जोडने पर यहाँ तक कि की उम्र ७२ वर्ष की हो जाती है । फिर संयमकाल की समाप्ति के बाद सत्यकि पुत्र का फैलाश पर पहुँच कर वहा विद्याधर कन्याओ को व्याहने और एक एक करके उन कन्याओ के मरने पर अंत में विशिष्ट विद्याधर कन्या के साथ रमण करते हुए भगवान महावीर तक पहुच कर उन पर उपसर्ग करने में भी ज्यादा नही एक वर्ष भी गिन ले और और महावीर को उनकी उम्र के ४२ वे वर्ष में केवलज्ञान हुआ उसी वर्ष में ही यह उपसर्ग भी मान ले तो इसका यह अथ हुआ कि महावीर को जब केवल ज्ञान पैदा हु