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राजा श्रेणिक या बिम्बसार का प्रायुष्य काल
तब राजा श्रेणिक की उमर लगभग ७३ वर्ष की थी। अर्थात् महावीर से श्रेणिक ३१ वर्ष बडे थे । इस हिसाब से जब श्रेणिक ने चेलना से विवाह किया तब श्रेणिक ३६ वर्ष के थे और महावीर ५ वर्ष के थे। इतिहास में महावीर और गौतम बुद्ध को समकालीन माना जाता है। अत: उस वक्त गौतम बुद्ध भी बालक ही माने जायेंगे ऐसी हालत में उस वक्त हम श्रेणिक को बौद्धमती भी नहीं कह सकते हैं बौद्ध धर्म के चलाने वाले खुद गौतम ही जब उस वक्त बालक थे तो उस समय बौद्धधर्म कहा से प्रायेगा ? अगर हम इतिहास की गड़बड़ी से बुद्ध और महावीर की वय में १०-१५ वर्ष का प्रन्तर भी मान लें तब भी श्रेणिक के समय में बौद्ध मत का सद्भाव नही था । इसीलिये हरिषेण कथाकोश में श्रेणिक को भागवतमत (वैष्णवमत) का बताया है । वह ठीक जान पडता है । तथा महावीर का निर्वारण उनकी ७२ वर्ष की वय में हुप्रा माना जाता है अतः महावीर मे ३१ वर्ष बड़े होने के कारण श्रेणिक की उम्र वीर निर्वाण के वक्त १०३ वर्ष की माननी होगी। उम्र का यह टोटल यहाँ कम से कम लगाया गया है, इससे अधिक भी संभव हो सकता है वीरनिर्वाण के वक्त श्रेणिक जीवित थे कि नहीं थे यह उत्तरपुराण से स्पष्ट नहीं होता है। किंतु हरिवशपुराण में वीरनिर्वाण के उत्सव में रिक का शरीक होना लिखा है । और हरिपेण कथाकोश में वथा २०५५ में कि का अंतकाल वीर निर्धारण से करीब ३||| वर्ष बाद होना बताया है। यथा :
ततो निर्वाणमापन्ने महावीरे जिनेश्वरे । तिम्रस्ममाश्चतुर्थस्य कालस्य परिकीर्तिताः ॥ ३०६।। तथा मासाष्टक ज्ञेय षोडशापि दिनानि च । एतावति गते काले नून दुःखमनामनि ॥३०७ || पूर्वोक्त श्रेणिको राजा सीमतं नरक ययो । १३०८ ||
अर्थ- महावीर के निर्वाण के बाद चतुर्थकाल के ३ वर्ष ५ मास १६ दिन व्यतीत होने पर दुखम नाम के पाँच काल में मनवाचित महाभोगी को भोग कर राजा श्रेणिक मर कर प्रथम नरक के सीमत बिल मे गया ।
1. उत्तरपुराण में चतुर्थकाम की समाप्ति में
उक्त १०३ वर्ष में वीर निर्धारण के बाद ये ३ ।। वर्ष जोड़ने पर श्रेणिक की कुल प्रायु १०७ वर्ष करीब की बनती है ।
अब हम श्रेणिक की प्रायु के साथ जम्बूकुमार का संबंध बताते है- ऊपर उत्तरपुराण की कथा में लिखा है कि - गौतम केवली जब प्रथम बार विपुलाचल पर श्राये थे उस समय राजगृह का राजा कुणिक था। यानी राजा श्रेणिक उस समय नही थे वे मर चुके थे । अर्थान् वीर निर्वाण से ३ || वर्ष बाद जब श्रेणिक न रहे
तब तक प्रथम बार गौतम केवलो विपुलाच धाये थे। उस समय बांधवो के अनुरोध से जम्बूस्वामी दीक्षा लेते २ रुक गये। पुन जब दुबारा गौतम केवली विपुलाच प श्राये तब उनके सान्निध्य में सुधर्माचार्य के पास से जम्बू स्वामी ने दीक्षा ग्रहण की। इस दीक्षा को अगर हम प्रदाजन वीर निर्वाण से यों कहिये गौतम के केवली होने से ६ वर्ष के बाद होना मान ले और दीक्षा के वक्त जम्बू कुमार की २० वर्ष की उम्र मानते तो कहना होगा कि वीरन के वक्त जम्बूकुमार १४ वर्ष के थे और जम्बू की १७ । । । वर्ष की उम्र के लगभग तक श्रेणिक जीवित रहे थे । इसलिये जम्बू का श्रेणिक की राज सभा में माना जाना व श्रेणिक द्वारा सन्मान पाना तो संगत हो सकता है। परन्तु कुछ जैन कथा प्रन्थों में लिखा है कि- " जम्बूकुमार की मदद से राजा श्रेणिक ने एक विद्याधर कन्या को विवाही थी" यह बात नहीं बनती है । क्योंकि उस समय राजा श्रेणिक बहुत ही वृद्ध हो हो चले थे । जब जम्बू ११ वर्ष के थे तब श्रेणिक एक सौ वर्ष के थे। इसी तरह कुछ कथा ग्रन्थो में जम्बू के दीक्षोत्मय में शिक की उपस्थिति बनाना भी गलत है। उत्तर पुराण के अनुसार दुबारा गौतम केवली विपुलाचल पर प्राये थे तब जम्बू ने दीक्षा ली थी किन्तु प्रथम बार जब गौतम केवली विपुनाचल पर घाये ये उसन
वर्ष ८ ।। मास शेष रहने परवीरनिर्वाण होना लिखा है । यहाँ ३ वर्ष मास १६ दिन इसलिये लिखा है कि १६ वे दिन पंचम काल का प्रारंभ होता है धौर उसी दिन में कि की मृत्यु हुई है।