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अनेकान्त
जनानुरागी विद्वान पं० चैनसुखदास जी को समर्पण नजरन्दाज करते हुए ग्रन्थगत विषय का परिचय कराया किया गया है।
गया है, किन्तु उसमें बहुत कुछ सावधानी बर्ती पिता और पुत्र दोनो ही लेखको ने बड़े परिश्रम से गई है। फिर भी इतना दिखाने का अवश्य प्रयत्न किया शुद्धाम्नाय में प्राने वाली भ्रान्तियों का उद्भावन करते है कि अचेल परम्परा को भी ये पागम मान्य रहे है या हुए वस्तुस्थिति को सरल भाषा में रखने का प्रयल उनके आधार पर उन्होने (दिगम्बरो ने ) ग्रंथ रचे है। किया है। प्राणा है दोनों विद्वान भविष्य में और भी पृष्ठ ३६ पर लिखा है कि अचेल परम्परा के महत्वपूर्ण निबन्ध लिखकर जैन साहित्य का गौरव प्राचार्य धरमेन, यतिवृषभ, कुन्दकुन्द, भट्ट प्रकलंक बढायेगे।
पादि ने इन पुस्तकारूढ प्रगमो अथवा इनमे पूर्वके उपवीर शामन सघ का यह प्रकाशन सुन्दर हुमा है।
लब्ध पागमो के प्राधय को ध्यान में रखते हुए नवीन इसके लिए लेखक और प्रकाशक दोनो ही बधाई के पात्र साहित्य का सृजन किया है। प्राचार्य कुन्द कुन्द रचित है । मजिन्द प्रति का ५) मूल्य अधिक नहीं है। ममाज
माहित्य में प्राचार पाहुड, मुनपाहुड, समवाय पाहुड मोर विद्वानो को चाहिए कि वे खरीद कर पढ़ें।
प्रादि अनेक पाहडान्त ग्रन्थों का ममावेश किया जाता
है। इन पाहुडो के नाम मुनने मे ग्राचागंग, स्थानाग, (२) जैन माहित्य का बृहद् इतिहास (प्रथम
मभवायाग प्र.दि की मनि हो जाती है। भाग)- लेखक प. बेचग्दास दोषी, और डा० मोहन
___ इस विषय में इतना ही निखना पर्याप्त होगा कि लान मेहता। प्रकाशक, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध
महावीर का दामन जब प्रनिम थ नवे वली भद्रबाहु के संग्थान, जैनाथम हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणमी । पृष्ठ सच्या ३६०. पक्की जिल्द, छपाई-मफाई उत्तम, मूल्य :
ममय भिक्षादि कारगी गे दो भागो मे विभक्त हमा
सब गगाभर इन्द्रभूनि रचित द्वादशागमूत्र दोनो ही १५) रुपये।
परम्परामो के माधुग्रो मे कण्ठस्थ रहे । अन उनके नामो इम ग्रथ मे श्वेताम्बर जैन साहित्य का इतिहास मे ममानता रहना म्वाभाविक है। किन्तु उनके ममान f:या गया है, जो एक संगठित योजना का परिणाम है। नाममात्र की उपलब्धि पर में यह नतीजा नही निकाला
मके प्रथम भ ग में प्रग माहित्य का परिचय कराया जा मकला कि वर्तमान में जो श्वेताम्बर्गय प्रागम गया।मग्रन्थ की प्रमावना प० दलमुख मालवग्णि- माहित्य उपलब्ध है. उम पर में दिगम्बर माहित्य रचा या ने निस्वी, जिगमें इनिहाम का विवरण देते हुए अग- गया है। अगो के नाम एक होने पर भी उनके विषय, उपागो के सम्बन्ध में विचार किया गया है, और उनकी विवेचन और परिभाषादि मे भेद पाया जाता है। एक तालिका भी दी है। परन्तु प्रस्तावना में प्रग-सूत्रो अन्वेषण करने पर उनमें कुछ ऐमी विपनाए भी प्राप्त की भाषा और उमके इतिहास के सम्बन्ध में कोई प्राचीन हो सकती है जिनके कारण वे एक नही हो मकने । अतः पुष्ट प्रमाण नहीं दिये गए। प्रग माहित्य के इतिहास दिगम्बर गाहित्य स्वेताम्बर माहित्य के प्राधार पर रचा के इस अन्य में उनकी भाषा के सम्बन्ध में किसी प्राकृत गया है यह कोरी निराधार कल्पना है। भाषा के विशिष्ट अभ्यामी विद्वान से विचार कराना यदि ऐसा होता तो उसके माधार का स्पष्ट उल्लेख मावश्यक था।
मिलता। पर कुन्दकुन्दादि जिन प्राचार्यों के नामो का अग ग्रन्थो का २७० पृष्ठो में परिचय दिया गया उल्लेख किया गया है, उनका कोई भी ग्रन्थ श्वेताम्बरीय है जिसमे दो विशेषताएं दृष्टिगत होती है। एक तो प्रागम माहित्य के प्राधारपर नही रचा गया। जमा कि उममे श्वेताम्बर दिगम्बर के स्थान पर सचेल अचेल श्वेताम्बरीय ग्रन्थो में दिगम्बर ग्रन्थों का अनुकरण देखा प मग का उल्लेख किया गया है । दूमरे मत-भेदों को जाता है। कुन्दकुन्दाचार्य का जो साहित्य पाया जाता