________________
अनेकान्त
जैनाथम हिन्दू यूनिवमिटी, वाराणसी-५। पृ० २४४, प्रकाशक मोहनलाल जैनधर्म प्रकाशक समिति अमृतसर । मुल्य ५) रुपया।
बडा साईज, मूल्य २४) रुपया । प्रस्तुत पुस्तक का विषय जैन प्राचार है। जो छ प्रस्तुत ग्रन्थ एक खोजपूर्ण शोध प्रबन्ध है जिसमें अध्यायो या प्रकरणों में विभाजित है। जैनाचार की ईसा की ७ वी शताब्दी मे १३ वी शताब्दी तक के इति भूमिका जैन दष्टि मे चरित्र विकाम, जैन आचार ग्रन्थ, वृत्तो पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। ग्रन्थ का फारवर्ड थानकाचार, श्रमगधर्म और श्रमरगसंघ ।
(भूमिका) प्रसिद्ध विद्वान स्व । डा. वासुदेव शरण जी ___ लेग्वक महोदय ने इन प्रकरणों में जैनाचार को अग्रवाल ने लिखा है। और इस पर लेखक को बनारस स्पष्ट करने के लिए दिगम्बर-श्वेताम्बर ग्रन्थों के प्रति- हिन्दू यूनिवमिटी मे पी. एच. डी. की डिग्री भी रिक्त बौद्र और वैदिक ग्रन्थो का भी उपयोग किया है। मिली है। प्रौर प्रानार सम्बन्धी मान्यताओं को स्पष्ट करने हा डा. गुलाबचन्द चौधरी अच्छे विद्वान है उन्होने विषय ना स्पष्टीकरण किया है। डा० माहब के विचार अपने इम शोध प्रबन्ध में ७वी में १३ वी शताब्दी के मूलभे दा है। भाषा सरल और महावरेदार है। डा० मध्यवर्ती ममय में होने वाले विविध राजवशो, गजानो, मा० ने निगम्बर-वेताम्बर प्राचार ग्रन्थों का तुलनाभ्मक मभ्यता और उस समय के रचे जाने वाले साहित्य में अध्ययन किया है। उसके विकाम के दो रूपो का कथन । उल्लिखित जैन इति- वनो एवं कला पर प्रामाणिक बग्नेहा उसे इस रूप में रखने का प्रयत्न किया है, प्रकाश डालने का यत्न किया है। माथ ही ग्रन्थो, ग्रन्थ निममे नममें किमी विरोध की सम्भावना ही न रहे। प्रशस्तियो, शिलालेखो, नाम्रपत्रो, मुर्तिलेखो प्रादि पर प्राशा है डा. मा० जैन धर्म के जिन सिद्धान्तों पर तलना- से जो इतिवन्न मकलित किया उमे यथा स्थान नियोजित स्मक अध्ययन करना शेष है, उन पर भी तुलनात्मक किया है और फुटनोट में उनके उद्धरण भी दे दिये है। दपिट मे निम्तन प्रकाश डालने का यत्न करेंगे।
इममे ग्रन्थ महत्वपूर्ण हो गया है और अन्वेषक विद्वानो प्रम्नत पम्नक पार्श्वनाथ विद्याश्रम के प्रारण ला. और छात्रों के लिए उपयोगी बन गया है। इसके लिए हरजमराय जैन अमनमर को भेट की गई है। इसके लिये डा. गुलाबचन्द नौधरी पोर उक्त सम्था के मनालक लेखक और पकालाक दोनो ही धभावाद के पात्र हैं। गगा मभी धन्यवाद के पात्र है।
५ पोलिटिकल हिस्ट्री प्राफ नार्दन इन्डिया फ्रोम जन सोर्सेज -लेखक डा. गुलाबचन्द चौधरी
-परमानन्द जैन शास्त्री
अनेकान्त के ग्राहक बनें
'प्रनेकान्त' पूरा ख्यातिप्राप्त शोध-पत्र है। अनेक विद्वानों और समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों का अभिमत है कि वह निरन्तर प्रकाशित होता रहे। ऐसा तभी हो सकता है जब उममें घाटा न हो और इसके लिए ग्राहक संख्या का बढाना अनिवार्य है। हम विद्वानों, प्रोफेमरों, विद्यार्थियों, सेठियों, शिक्षासंस्थानों, मंस्कृत विद्यालयों, कालेजों और जनश्रत की प्रभावना में श्रद्धा रखने वालों से निवेदन करते हैं "अनेकान्त' के ग्राहक स्वयं बनें और दूसरों को बनावें। और इस तरह जैन संस्कृति के प्रचार एवं प्रमार में सहयोग प्रदान करें।