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राजा श्रणिक या बिम्बसार का प्रायुष्य काल
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उसे नगर से निकाल दिया। वहां से निकल कर श्रेणिक सत्य को ने ज्येष्ठा पुत्री की याचना उसके पिता राजा दूर देश में जाने की इच्छा से चलता हुअा नंदिग्राम में चेटक से की थी। परन्तु चेटक ने उसे नही दी जिससे पहा । कितु नदिग्राम के निवासियो ने राजाज्ञा के भय ऋद्ध हो सत्यकि ने चेटक से सम्राम किया। संग्राम में से राजकुमार श्रेणिक को कोई पाश्रय नहीं दिया। इससे सत्यकि हार गया। प्रतः लज्जित हो वह दमधर मुनि से नाराज हो श्रेणिक पागे बढ़ा। रास्ते में उसे एक ब्राह्मण दीक्षा ले मुनि हो गया। इसी तरह चेलना पुत्री को भी का साथ हमा। उससे प्रेमपूर्वक अनेक बाते करता हुआ राजा श्रेणिक ने मांगी थी परन्तु उस समय श्रेणिक श्रेणिक उस ब्राह्मण के मकान पर जा पहुचा । थेणिक की उम्र ढल चुकी थी जिससे चेटक ने उसे देने से की वाक्चातुरी, यौवन प्रादि गुगणों पर मुग्ध होकर उम इकार कर दिया था। फिर अभयकुमार के प्रयत्न से ब्राह्मण ने उसके साथ अपनी युवा-पुत्री का विवाह कर छिपे तौर पर चेलना के साथ श्रेणिक का विवाह हुमा था दिया । थेणिक अब यही रहने लगा। यही पर थेगिक उस प्रयत्न मे ज्येष्ठा का विवाह सम्बन्ध भी श्रेणिक के के उस ब्राह्मण कन्या से एक अभयकुमार नाम का पुत्र साथ होने वाला था कित चेलना की चालाकी से वैसा हमा । एक दिन थणिक के पिता कुणिक को अपना न हो सका। इमी एक कारण से विरक्त हो ज्येष्ठा ने राज्य छोडने की इच्छा हुई। कुणिक ने ब्राह ग के ग्राम प्रपनी मामी यशस्वती प्रायिका से दीक्षा ले ली थी और से श्रेणिक को बुला कर उसे अपना मब गज्य सभला वह प्रायिका हो गई थी। (श्लोक ३ से ३४ तक) दिया। अब धणिक राज्य करने लगा। पीछे से अभय कुमार और उसकी माता भी राजा श्रेणिक से पा मिले ।
उत्तरपुरागा पर्व ७६ श्लोक ३१ प्रादि में लिखा है (श्लोक ४१८ से ४३०)
कि-श्रेणिक ने महावीर के समवशरण में जा वहाँ उत्तरपुगरण पर्व ७५ में लिखा है कि :
गौतमगणधर से पूछा कि-"प्रतिम केवली कौन होगा" मिधुदेश की वैशाली नगरी के राजा चेटक के १० पुत्र
इम पर गौतम ने कहा कि-वह यहा समवशरण में पौर ७ पुत्रिया थी प्रियकारिणी मृगावती सुप्रभा, प्रभावती,
प्राया हुआ विद्युन्माली देव है जो प्राज से ७ दिन बाद
जम्बू नाम का सेठ पुत्र होगा। जिस समय महावीर मोक्ष चेलना, ज्येष्ठा चंदना ये उन पुत्रियो के नाम थे। ये
पधारेंगे उस ममय मुझे केवलज्ञान होगा और मैं मुधर्म सब-वय में उत्तरोत्तर छोटी छोटी थी। इनमें सबसे बड़ी
गणधर के साथ विचरता हुग्रा इमी विपुलाचल पर पुत्री प्रियकारिणी थी जो राजा सिद्धार्थ को व्याही गई थी जिससे--भगवान् महावीर का जन्म हुआ था। और इससे छदो भंग भी नही होता है। सबसे छोटी पुत्री चदना थी जो बालब्रह्मचारिणी ही रह हरिवंशपुराणत्रिलोय पण्णत्ती त्रिलोयसार, हरिषेण कर महावीर स्वामी की सभा में प्रायिकामो में प्रधान कथाकोश, विचारमार प्रकरण (श्वे.) सभी में ११वे रुद्र गणिनी हुई थी। तथा गंधार देश के महीपुर के राजा का नाम सच्चइ मुप (मत्यकि सुत) देते हुए इस राजा
1 उत्तर पूराण पर्व ५७ इलो० में 'सत्यको' पद है का नाम सत्यकि ही प्रकट किया है। इसी राजा का जिमसे नाम 'सत्यक' प्रकट होता है किन्तु इसी के प्राधार मुनि अवस्था में उत्पन्न पुत्र ११ वा रुद्र है। प्रतः हमने पर बने पुष्पदत्त कृत अपभ्रश महापुराण में इमी स्थल 'सत्यकि' ही नाम सब जगह दिया है। हरिपेण कथा कोप पर (भाग ३ पृ. २४३ में) 'सच्चई' पद है जिससे नाम में सांक के साथ कही कही सात्यकि नाम भी दिया 'सत्यकि' प्रकट होता है इसके सिवा उत्तर पुराण ही में है। ब्र० नेमिदत्त कृत पाराधना कथाकोष में तो सात्यकी सर्ग ७६ श्लो० ४७४ मे "मत्यकि-पुत्रक" पद देते हुए ही दिया है। प्राकृत के 'सच्चह' पद का सात्यकि और सत्यकि नाम सूचित किया है प्रतः पर्व ७५ श्लो० १३ में सत्यकि दोनो बन जाता है। तथा 'कि' भी हस्व और सत्यको की जगह सत्यकि (सत्यकी शुद्ध पाठ होना चाहिए दीघं दोनो रूपों में हो जाती है।