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धनपाल विरचित "भविसयतकहा" और उसकी रचना-तिथि
इतनी बृहत् रचना उपलब्ध नहीं हो सकी है। यद्यपि देर पत्ता' अर्थात् प्रत्यन्त दुर्गम दूर देशों में पहुँच गये बहिरङ्ग रूप में कोई ऐमा ठोस प्रमाण नहीं मिलता, थे। उस समय मुहम्मद शाह का शासन दिल्ली राज्य पर जिसके प्राधार पर काव्य की रचना-तिथि का निर्णय था। कहा गया है कि उसका राज्य दक्षिण भारत तक किया जा सके, किन्तु अन्तरङ्ग प्रमाण के आधार पर यह बहत दूर-दूर तक फैला था। इतिहास के उल्लेखों से कथाकाव्य महाकवि धनपाल के शब्दो में "पौष शुक्ल पता लगता है कि वह एक सफल शासक था। उसने द्वादशी, मोमवार, सवत् १३६३ (१३३६ ई.) में लिखा दक्षिण भारत तक के कई बलवों को दबाया था। जिस गया था।" उन दिनो दिल्ली के राज्य-सिहासन पर
समय प्रचण्ड मुहम्मदशाह दिल्ली में गज्य कर रहा था, मुहम्मदशाह थारूद था। कवि ने स्वय उसका उल्लेख
उसी समय दिल्ली से साठ कोस दूर पश्चिम मे अत्यन्त किया है । इतिहास में मुहम्मद नाम के कई बादशाह हुए।
रम्य 'मासोपवण्ण' नगर में रत्नपाल नाम का अग्रवाल इमलिए मुहम्मदशाह से यहा पर-इतिहास प्रसिद्ध
कुल मे उत्पन्न जैन धावक रहता था। उसका पुत्र मदनमुहम्मद बिन तुगलक अभिप्रेत है। मुहम्मद तुगलक के
मिह अत्यन्त परोपकारी था। उसके चार पुत्र उत्पन्न हुए अन्य नामो में मुहम्मदशाह भी मिलता है२ । मुहम्मदशाह
ज्येष्ठ पुत्र का नाम 'दुल्लह' था। उसके तीन सुपुत्र का राज्य काल सन् १३२५-१३५१ माना जाता है।
उत्पन्न हुए। पहले का नाम हिमपान, दूसरे का देवपाल कवि-लिखित-प्रशस्ति के अनुमार १३३५ ई. के लगभग
और तीसरे का लुद्दपाल बा। हिमपाल दिल्ली मे रहता दिल्ली में बगावत विद्रोह हुआ था। मन् १३३५ ई० मे
था । वह अत्यन्त धन-सपन्न था। उसके पुत्र का नाम मुल्तान मुहम्मदशाह जब मदुग के लिए कूच करता है।
वाधू पा । अकाल पड़ने पर वाधू जफराबाद चला गया। तब वारगल में ही लौट पाता है। जब सुल्तान दिल्ली
जफराबाद जौनपुर के पाम, जौनपुर मे चौदह मील दूर वापिस लौट कर पाता है तब देखना है कि चारो ओर
है। वही पर कवि धनपाल ने वाघू के हेतु इस काव्य ग्रन्थ अकाल पड रहा है। सहस्रो मनुष्य और पशु मर गये । का प्रणयन किया५ । इमसे यह भी स्पष्ट है कि कवि इमलिए वह अपनी गजधानी दिल्ली से हटा कर-गगा
धनपाल जफराबाद में रहते थे। इस प्रकार ऐतिहासिक के पाम शमशाबाद में ले गया३ । प्रशस्ति में भी कवि ने।
उल्लेखो के अाधार पर यह निश्चित है कि कवि धनपाल इस प्रकाल का सत किया है। प्रतीत होता है कि उम महम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में तथा गज्य मे रहते ममय दिल्ली में भयंकर अकाल पड़ा था, जिगमे हिमपाल थे और उन्होने गजनैनिक स्थिति के मम्बध मे जो कुछ जैसे माहकार भी-दरिद्र हो गये थे और बहुत से लोग लिखा है वह अक्षरश मन्य है। अपने प्राण-धन की रक्षा करते हुए बहुत दूर-दूर प्रदेशो - में जा कर बस गये थे। प्रशस्ति में कहा गया है कि- ४. महम्मद माहो वि गमी पय डो, लोग अपने-अपने स्थानों को छोड कर-'महादुग्गदूरम्मि लियो तेण मायर पमाणेहि दई ।
उमक्विट्ट णिलिवि मलिग्रोवि माणो, १. सुमवच्छरे अक्किग विक्कमेणं,
कियो रज्ज इकच्छत्ति हुई उवयतमाणो। अहीएहि तेणवदि तेरहसएण ।
-अन्त्य प्रगम्ति, भविसयत्तकहा । वरिस्मेय प्रमेण मेयाम्बि पस्मे,
५. पयट्ट वि दूमम्मि काले रउद्दे, तिही वारमी सोमि गहिहि रिक्वे ।।
पहनो मुवलूम दफगयवाद । २. दिल्ली मजनत, प्रकाशित भारतीय विद्याभवन,
हहत्ते परते मुहायारहेड, बम्बई, प्रथम सस्करण, पृ०६१।
तिणे लिहिये मुअपंचमी णियहं हेउ । ३. वही, चतुर्थ परिच्छेद, पृ०७७ ।
-अन्तिम प्रशस्ति