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अनकान्त
८ लोकदे ... ... पु० भीभिणि बेटी
३ भाले भी बने हुए हैं, पाश्र्ववर्ती स्तम्भों पर खड़गा९ उसीनां शुभं भवतु गुरु
सनस्थ जिन प्रतिमाओं का अकन है। इस प्रासाद को १० सघई भीमा अगिवाण... .
नव्योपलब्धि में इस शिलालेख को मानता हूँ जिसमें ११ हु।। पुन सं १४३६ व
भगवान पार्श्वनाथ के जीवन सम्बन्धी मुख्य घटनायें १२ ज्येष्ट वदि ११ वारु शुक्र
उत्कीरिणत हैं, कमठोपसर्ग का सफल अंकन तो उस समय
की पूर्ण स्थिति का तादृश रूप खडा कर देता है, १॥५०॥स्वस्ति श्री देवकीतिदेवः
प्रसन्नता है कि इस पर स. ११९० अंकित है , पुरातत्व २ निषेदिका ण
और कला-समन्वित इस मंश का विशिष्ट महत्व है। ३ ... पणमति
यह शिला मलभाग के ऊपर के भाग में खडी है, लेख ४ सा० राड भार्या का
६ पंक्ति का है, पर भीतरी अंधकार के कारण उसे पढना ५राज... मति ..... भ्राता
असम्भव ही है, निरतर वर्षाकालिक जलसे वह बहुत
प्रभावित हुअा है। इसमें तक्षित प्रतिमानो पर किरीट७ ... श्री ग्रहवसब
मुकुट इस बात का परिचायक है कि नागदा वैष्णव ८ स. १४३६ वर्षे
सस्कृति का केन्द्र रहा है और कृष्ण के मस्तक की
शोभा किरीट ही अभिवृद्ध करता रहा है, इसका इन दो लेखो के अतिरिक्त इमी स्तम्भ के पूर्वाभि प्रभाव जैन मतियो पर भी पडना स्वाभाविक है। मख अंश में दम्पति युगल है, ऊपर नीचे दो लेख भी सं० ११२ वर्षे चैत्र वदि ४ रवी देवश्रीपाश्र्वखदे हैं. दूसरा स्तम्भ सयक्त होने से उन्हें सम्भव नही नाथ श्रीसकलसघशाचार्यचन्द्रभार्या ....... || पर लेखो का सम्बन्ध दिगम्बर सम्प्रदाय मे है
कृष्णवरणीय शिला पर यह लेख भी अकित है :गर्भगृहद्वार और गर्भगृह
स० १३५६ वर्षे श्रावण वदि १३ णारेसा तेजल गर्भगृह देवभवन का महत्वपूर्ण भाग होता है । इसी
सुत। मे पार !ध्य का प्रावास रहता है, मदिर का गर्भगृहद्वार ६ फुट ऊंचा और ३ फुट चौडा है, सोपेक्षत: इमका
संघपति पासदेव सघसमस्त ....." साहइत श्रीमदारक, कीतिमुख और शंखावटी सुन्दर है, द्वार इस
पासनाथ । क्षेत्र की परम्परा के अनुमार नही है ।सज्जा का अभाव दोना लेखा से कोई विशेष ऐतिह्य प्रकट नही होता। है। दोनों पोर प्रध: भाग में अन्योपकरणो के माथ
गर्भगृह में सुरक्षा की दृष्टि से ऊपर की और पक्का धरणेद्र और पद्मावती का अंकन है। साथ ही यहा भी
पलस्तर है। दो विशाल पालो में जिनबिम्ब रहने की अम्बिका अनुप्रेक्षणीय रही है, अग्रिम भाग में दो ताक
सम्भावना की जा सकती है। ऊपर की ओर सुरंग समान मतिशन्य है, यहा भी एक विस्तृत लेख के दशन हुए एक ऐसा स्थान बना है जिसके प्रागे शिला जड़ दी जाय परन्तु उन पर चूने का ऐसा गहरा पुनाइ हा गदहक तो गूप्त भण्डार का रूप ले सकता है, यह ८ फूट लम्बा है पर्याप्त सफाई के बाद भी पाठ अपठनीय ही रहा। पराने मन्टिगे से ये गत भण्डार विपत्ति
गर्भगह की लम्बाई-चौडाई क्रमश ८ फट ६ इंच लिए बनवाये जाते थे। और ११ फूट ७ इच है। त ३-३ फट ऊची और चौडी यहा प्रश्न हो सकता है कि महापुरुष या जिनसन्दर कलापूर्ण वेदिका उपत्यका के मल में निर्मित है प्रतिमानो का दीवार से सलग्न स्थापित न किया जाना