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अनेकान्त
दाये बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ की यक्षिणी सिंह भक्तों ने उसकी यथा सम्भव जुड़ाई करा दी है। इसे वाहिनी अम्बिका प्रकित है, जिसके दायें हाथ की गोद १६वें तीर्थकर शान्तिनाथ की प्रतिमा मानकर इस मन्दिर
मी और बाये हाथ में प्रामगुच्छक है। उल्लेख- का नाम ही शान्तिनाथ मन्दिर प्रचलित हो गया है । परन्तु नीय यह कि इस मूर्ति में उसका दूसरा पुत्र अनुपस्थित शान्तिनाथ का चिन्ह हिरण या यक्ष यक्षिणी आदि है। इस शासन देवी का मुकुट अपनी निजी विशेषता कोई भी यहाँ दृष्टिगत नही होते । ऐसा प्रतीत होता है । रखता है, जिसकी बनावट माधुनिक सेनापति की टोपी मे
म कि प्रहार, खजुराहो, सीरोन, चाँदपूर प्रादि निकटवर्ती ' बहुत कुछ मिलती जुलती है।
तीर्थ स्थानो पर विद्यमान कायोत्सर्गामन विशालाकार . इसके ठीक नीचे वीणावादन में तन्मय सरस्वती की
शान्तिनाथ की प्रतिमानो की समानता के कारण भक्तों मनोहारी प्रतिमा अंकित है। इसके ऊपर के दायें हाथ में
ने इसे भी शान्तिनाथ प्रतिमा कहना प्रारम्भ कर दिया, सूत्र से मजबूती के साथ लेपेटी गई पुस्तक और बाये में जो कदाचित् सम्भव भी है। भक्तो ने इसके चिन्ह या
यज्ञ आदि का अन्वेषण या तो किया ही नही, या वे इसमें घट विद्यमान है। इसके प्राभूषणों में पग में पायल, पाँव पोश, करधनी, हथफल, वधमा के चूरा, बाजूबन्द, मोहन
असफल रहे, क्योंकि अभी कुछ वर्ष पूर्व तक इस प्रतिमा
के सामने २ फुट ३ इंच के अन्तर से एक दीवाल खड़ी माला, भोरला, ठूसी, कर्णफूल और बैदी तथा वस्त्र अत्यन्त मूक्ष्मता के माथ निदर्शित हैं। इसकी केश राशि
थी, जिसमें प्रवेश करने के लिये १ फुट ६ इंच चौडाई की
एक खिडकी थी, इसमे मे प्रवेश करके एक अन्धकारअत्यन्त घुघराली और जूडा ऊपर को सम्हाल कर बांधा
पूर्ण और बदबूदार सकरी कोठरी24 में मूर्ति का चिन्ह गया है।
खोज निकालने का साहस कदाचित् ही किमी को होता इसके मुकाबले (चौखट के दाये किनारे) चतुर्भुजा
वर्तमान में इम दीवाल को हटा दिया गया है, और एक लक्ष्मी का भी बहुत सुन्दर अंकन हुआ है जिसके दाये ऊपर के हाथ में कमल है और नीचे का वरद् मुद्रा में है, 22 (अ) फुहरर ने पता नही किस प्राधार पर इमे तथा बाया ऊपर का खण्डित है तथा नीचे के हाथ में
ऋषभनाथ की मूर्ति लिखा है। फुहार, ए : कमल है।
मान्यूमेन्टल ए इ० । अलाहाबाद १८८१ । इस प्रकार गर्भ का प्रवेश द्वार सूक्ष्मता और भव्यता
(ब) कनिघम इस विषय में पूर्णत: मौन धारण किये से अलंकृत है, और तत्कालीन स्थापत्य का प्रतिनिधित्व
है, वे इसे मात्र विशालाकार दिगम्बर प्रतिमा करता है।
कहते हैं। पृष्ठ १००-प्रा०म०रि जिल्द १०
(स) किन्तु साहनी ने इसे शान्तिनाथ की मूर्ति कहा गर्भ गृह
है । देखिये-साहनी, दयाराम : एक प्रो० रि० . प्रवेश द्वार को वर्तमान में लकड़ी के किवाडो से
पृष्ठ १०। बन्द किया जाता है चार सीढियो से उतर कर २ फुट 23 (4) कनिंघम, ए : प्रा०म०रि०, जिल्द १० पृ०१०० नीचे पाना पड़ता है, प्रवेश करते ही दोनों पोर अम्बिका
(ब) फुहरर, ए : दि० मा० ए• हं०, । अलाहाबाद, की ४॥ फुट ऊ ची प्रतिमायें अंकित दृष्टव्य है । सामने
१८६१ । ही १२.४" ऊंची कायोत्सर्गासन भव्य तीर्थकर प्रतिमा के 24 (म) कनिंघम, ए : प्रा० स० रि०, जिल्द १०, पृ.१०० दर्शन होते ही हृदय भक्ति मे भर उठता है । यह विशाला- (ब) साहनी, दयाराम : ए० प्रो. रि०, पृ० १.। . कार प्रतिमा कल के कराल थपेडो और प्राततायियो की
(स) श्री परमानन्द जी बरया ने भी इस दीवाल, काली करतूतो मे बहुत कुछ खण्डित हो गई है। परन्तु
खिडकी तथा वहाँ के अन्धकार विषक तथ्यो 21 देखिए-टिप्पणी, सख्या ६
की पुष्टि की है।