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अनेकान्त
प्राये थे । उन्होने मुझे टपाल दी और उनके साथ साथ मे सा० २६-३० मार्च को शिरपुर पहुंचा।
डा० यशवंतराव ने इस मन्दिर का सूक्ष्मता से निरीक्षण किया, तथा गाँव के भी अंतरीक्ष पार्श्वनाथ मन्दिर की भेट दी। उनकी रिपोर्ट है की, यह पवली मन्दिर ६ वी या १० वी शताब्दी का है तथा स्पष्टतया और पूर्णतया यह मन्दिर दिगम्बरियों का ही है। डा० यशवतराव ने प्राप्त मूर्तियों के लेख तथा शिवाय भी उतार लिये है उसकी एक प्रति उन्होने मुझे भी दी है। उनका सविस्तार अहवाल तथा मूर्तिले ग्रह अनेकान्त में छपवाने की अनुमती उनमे ली है त वह श्रागे दे रहा हूँ । लेकिन पहले "यह मन्दिर भी श्वेताम्बरो का ही है और यह मन्दिर श्वेताम्बरो के मैनेजमेंट के अन्दर ही है ।" आदि एक लेख वहा के श्वेताम्बर मैनेजर ने ता० २४-३-६७ के दैनिक मातृभूमि में प्रकाशित किया है, इसका मरल अर्थ है कि यह दिगम्बरी समाज और इतिहास के लिये लाल झड़ी है । श्वेतांबर लोग किसी बहाने से यहाँ भी कब्जा करने की तैयारी में हैं। हाल ही अप्रेल के पंनिम सप्ताह में ( २६-४-६७ ) बुधवार के दिन उन लोगो ने दिगम्बरी धर्मशाला के ताले तोड़े तथा बोडंस निकलवाये। उम समय जो झगड़ा हुप्रा । उस कारण ताले तथा बोर्डस् स्थानीय पुलिस स्टेशन में जप्त होकर रखे गये हैं ।
यद्यपि वहां की दिगम्बर जनता जागृत है, तथापि समाज के सारे लोग उनके पीछे तन, मन, धन से नहीं होंगे तब तक उनकी बाजू मजबूत नहीं हो सकती। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार का कार्य चालू है । उसके लिये कम से कम १५ हजार रुपये की तथा मन्दिर जी के सामने के महाद्वार के प्राजुबाजू धर्मशाला के निर्माण हेतू २५ हजार रुपये की आवश्यकता है। इसकी पूर्ति अगर हमारे गणमान्य धनी तथा दानी लोग करेगे तो भागे के झगडे तथा विपक्षी से यह स्थान बच सकता है । बाद में हम कोर्ट कचेरी में हजारो रुपये लगा देगे या यह मन्दिर नष्ट होने पर लाखो रुपये लगायें तो भी ऐसा मन्दिर खड़ा नही हो सकता । अतः इसकी कीमत
समय पर यदि न आकी जाय तो इसको खतरा है यह सुनिश्चित है । और यह निर्विवाद है कि, आज तक इग मन्दिर पर कब्जा कभी श्वेताम्बरो का न था, और न है।
पिछले अंक में इस मन्दिर बाबत ऐतिहासिक तथा संशोधक लोगो के मत प्रकाशित किये हैं। प्रभी और कुछ दिगम्बर जैन समाज के लिये यहा दिये जाते है। इससे भी इस मन्दिर पर हमारा कब्जा कैसा है यह सिद्ध होता है :
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(१) एच० सी० जज्जमेंट पृष्ठ ३१२ (पी०पी०बी०) "श्वेताम्बर लोग इस पवली मन्दिर के कभी मालिक नही हो सकते, क्योकि उन्होंने ही मुख्य मन्दिर के केस में मालकी हक्क की माग पीछे ली है।" आदि ।
(२) कम्रम्वेशन रिपोर्ट बालेस्टोन, प्रांग स्टेन्ट मावियानाजीकल सर्व ईस्टर्न सर्कल बालपुर ता १७-४-१९१३ - 'सिरपुर का प्राचीन मन्दिर त पार्श्वनाथ भगवान का है तथा वह दिगम्बर जैनो का है।' आदि।
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(३) लीस्ट आफ प्रोटेक्टेड मानुपेट एक्स्पेक्टेड बाय दी गवर्नमेंट ग्राफ इण्डिया करेक्टेड ग्राट् सप्टेम्बर १६२६ – यह शिरपुर गाँव के बाहर का अन्तरिक्ष पानाथ का मन्दिर जैनो का है तथा पुरातत्व विभाग ने इसको संरक्षित करके ताबे मे लिया है और ता०८ मार्च १९२१ के करार के अनुसार दिगम्बरी लोग प्रार्डीनरी रिपेरी कर सकते हैं तथा स्पेशल रिपेरी सिर्फ गवर्नमेंट ही करेगी ।" आादि ।
(४) अकोला जिलाध्यक्ष का वाराम के तहमीनदार को पत्र १३-३-६१ - शिरपुर गाय के पश्चिम में जो दिगम्बर लोगो का प्राचीन मन्दिर है, वहाँ वे लोग सरकार के ताबे में देने के लिए तैयार है क्या ?" आदि।
( ५ ) ऊपर के पत्रको दिगम्बर समाज के पचो की तरफ से श्री यादवराव जी श्रावणे का उत्तर ता० १-४ ६१ "यह मन्दिर समस्त दिगम्बर जैन समाज का होने मे मालकी में अमला नही छोड सकता तथा इस मन्दिर में अभी अनेको दिगम्बर मूर्तियाँ विराजमान है, जो कि समाज मे नित्य पूजी जाती है। और अभी इस मन्दिर के