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अनेकान्त
मौदगल्यायन का निधन बहुत ही दयनीय प्रकार का स्थाक नियुक्त करो। उपस्थाक के अभाव में मेरी बताया गया है। उनके ऋद्धि-बल से जल-भुन कर इतर अवहेलना होनी है। मैं कहता हूँ, इस रास्ते चलना है, तैथिकों ने उनको पशुमार से माग। उनकी अस्थियाँ भिक्षु उस रास्ते जाते है । मेरा चीवर और पात्र भूमि पर इतनी चूर चूर कर दी गई कि कोई खण्ड एक तन्दुल मे यो ही रख देते हैं।" सारिपुत्र, मौद्गल्यायन प्रादि सभी बड़ा नही रहा। यह भी बताया गया है कि प्रतिकारक को टाल कर बुद्ध ने प्रानन्द को उपस्थोक-पद पर ऋद्धि-बल के होते हुए भी इन्होंने इसे भावी का परिणाम नियुक्त किया। समझ कर स्वीकार किया।
तब से आनन्द बुद्ध के अमन्य सहचारी रहे । समय मानन्द
समय पर गौतम की तरह उनसे प्रश्न पूछते रहते और कुछ द्रप्टियो से बुद्ध के सारिपुत्र और मौद्गल्यायन
समय-समय पर परामर्श भी देते रहते। जिस प्रकार से भी अधिक अभिन्न शिष्य प्रानन्द थे । बुद्ध के साथ
महावीर से गौतम का सम्बन्ध पूर्व-भवो में भी रहा; उसी इनके मम्मरण बहुत ही रोचक और प्रेरक हैं । इनके
प्रकार जातक साहित्य में प्रानन्द के भी बुद्ध के साथ हाथों कुछ एक ऐसे ऐतिहासिक कार्य भी हुए हैं, जो बौद्ध
उत्पन्न होने की अनेक कथाएं मिलती है। आगन्तुको के परम्परा में मदा के लिए अमर रहेगे । बौद्ध परम्परा में
लिए बुद्ध मे भेट का माध्यम भी मुख्यत: वे ही बनते । भिक्षणी संघ का श्रीगणेश नितान्त प्रानन्द की प्रेरणा से
बुद्ध के निर्वाण-प्रसंग पर गौतम की तरह आनन्द भी हमा । बुद्ध नारी-दीक्षा के पक्ष मे नही थे । उन्हें उसमें
व्याकुल हु" । गौतम महावीर-निर्वाण के पश्चात् व्याकुल अनेक दोष दीखते थे। केवल प्रानन्द के आग्रह पर महा हुए। आनन्द निवारण म पूव हा एक पार जाकर दीवाल प्रजापति गौतमी को उन्हाने दीक्षा दी। दीक्षा देने के का फूटा पकड कर गन लग, जब कि उन्हें बुद्ध के द्वारा माथ-गाय यह भी उन्होंने कहा-"प्रानन्द | यह भिक्ष उमी दिन निर्वागग होने की सूचना मिल चुकी थी। सघ यदि महसू वर्पक टिकने वाल' था तो ब पाचमो महावीर-निर्वाण के पश्चात् गौतम उमी रात को केवली वर्ष में अधिक नहीं टिकंगा। अर्थात् नारी-दीक्षा से मर हो गये। बुद्ध-निवारण के पश्चात् प्रथम बौद्ध संगीति में धर्म-मघ की पाधी ही उम्र मेष रह गई है।"
जाने में पूर्व प्रानन्द भी अर्हन् हा गए। गौतम की तरह प्रथम बौद्ध संगीति में त्रिपिटको का संकलन हुमा ।
इनको भी अर्हत् न होने की प्रात्म-ग्लानि हुई। दोनो ही
घटना-प्रसग बहुत सामीप्य रखते है । पाँचमी अर्हत्-भिक्षुमो में एक प्रानन्द ही ऐसे भिक्षु थे, जो मूत्र के अधिकारी ज्ञाता थे; अतः उन्हे ही प्रमाण मान
महावीर के भी एक अनन्य उपासक प्रानन्द थे,
पर ये ग्रही-उपासक थे और बौद्ध-परम्परा के प्रानन्द बुद्ध कर सुत्तपिटक का सकलन हुआ। कुछ बातो को स्पष्टता
के भिक्षु उपासक थे । नाम-माम्य के अतिरिक्त दोनों में यथा समय बुद्ध के पास न कर लेने के कारण उन्हे भिक्षु
कोई तादात्म्य नहीं है। महावीर भिक्षु शिष्यो मे भी एक संध के समक्ष प्रायश्चित्त भी करना पडा। पाश्चर्य तो
प्रानन्द थे, जिन्हे बुलाकर गोशालक ने कहा था-मेरी यह है कि भिक्षु-संघ ने उन्हे स्त्री-दिक्षा का प्रेरक बनने
तेजोलब्धि के अभिधात में महावीर शीघ्र ही काल-धर्म को का भी प्रायश्चित कराया।
प्राप्त होंगे। जिसका उल्लेख गोणालक सलाप में प्राता है। ___ आनन्द बुद्ध के उपस्थाक (परिचारक) थे। उपम्याक बनने का घटना-प्रसंग भी बहुत मग्म है । बुद्ध ने
उपालि अपनी प्रायू के ५६ वे वर्ष में एक दिन सभी भिक्षुमों को उपालि प्रथम मगीन में विनय-मूत्र के सगायक थे। प्रामत्रित कर कहा-"भिक्षुप्रो । मेंरे लिए एक उप
1. अगत्तरनिकाय, अट्ठकथा :-४-१ 1. धम्मपद, अट्ठकथा, १३-७
2. उपासकदशाग सूत्र, अ० १