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श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ पवली दिगम्बर जैन मंदिर, शिरपुर
( नेमचन्द बन्नसा जैन )
विदर्भ के प्राचीन शिल्प के याद में जिसका उल्लेख भर तो निश्चित है तथा उसके एक भाग में चूने का होता ही है तथा जैन शिल्प-कला में जिसका नाम पहले प्लास्टर है। इन ईटो का याने दिवाल का कास प्रदाजा पाता है ऐसा पवली मन्दिर शिरपुर गांव के बाहर गुप्त काल बताया जाना है। यह इंट वजन में बहुत पश्चिम दिशा को पोर है। इस मन्दिर के शिल्प-रचना- हल्की है। वास्तु के बाबत पिछले अंको में विस्तृत चर्चा की गई है। इस मन्दिर के अन्दर गर्भगृह के मामने चूने के इस मन्दिर के इर्दगिर्द कुछ जमीन खोद कर मिट्टी बाजू प्लास्टर की जगह पाषाण की फर्मी बिछाने के इरादे से कर दी, तो पता चला की जमीन पर ४-५ फुट मिट्टी चढ खोदते समय ता०६-३-६७ को ११ मूर्ति प्रखण्ड मिली। गई थी जिसमें मन्दिर का नीचे का भाग दब गया था।
बहुतेक मूर्ति हरे पाषाण की है, एक लाल पाषाण की है, अब मन्दिर के तीनों बाजूमो के दरवाजे के सामने
सब मूर्तिया आकर्षक है। प्रत्येक मूर्ति पर लेख है १.'x१०' के चबूतरे लगे हैं। और उसके सामने से
तथा कुछ पर के लेख घिस गये है। प्राप्त मूर्ति में एक सीढियां भी लगी हैं। इस खुदाई में ता २०-२-६७ के
मूर्ति तो सिर्फ दो इच की है। दिन एक प्रति जीर्ण पाषाण का खगासन चतुर्मुख
इन जिन बिम्बो का प्रगट होने की बात कई वर्तमान जिन विम्ब, जिनबिम्बस्तम्भ तथा एक शिलालेख स्तम्भ
पत्रों में प्रकाशित हुई है तथा कुछ पेपरो में फोटो भी मिला है । कुछ भग्नावशेष भी प्राप्त हुए है ।
प्राये हैं। उन्हे पढ़ कर और देख कर मुझे शिरपुर जाने मन्दिर के बाहर गर्भागार के दोनो ओर २ से १॥ की इच्छा हुई। इसी समय पर डा. यशवंत खुशाल फीट लम्बी तथा ६ इच चौडी और २।। इच से ३ इच देशपाडे, अध्यक्ष-शारदाश्रम यवतमाल (हल्ली मु. जाही ईटो की दिवाल मिली है। वह जमीन में पुरुष नागपुर) नाती को शादी में परतना डा.(अचलपुर)
गार्डर द्वारा टूटी हुई कड़ी को सम्हाल कर उसका उद्देश्य की छत जमीन से १७ फूट ऊँची है और छत पर से पूरे पूरा कर दिया गया है। इस विशालाकार मूर्ति के दोनो शिखर की ऊंचाई लगभग ४५ फुट है। इस प्रकार मोर, प्रवेशद्वार के भीतर दोनो तथा चौखट के ऊपर दाये इस मन्दिर के प्रत्यन्त भव्य प्रधमण्डप, अन्तर्राल, अम्बिका पौर चौखट के नीचे बायें पाश्वं यक्ष का प्रकन प्रदक्षिरण पथ और गर्भगृह से इसकी पचायतन शैली होने से यह सम्भावना अधिक है कि यह मूनि २२ व स्पष्ट है तथा स्थापत्य और वास्तु कला के क्रमिक विकास तीर्थकर नेमिनाथ की होनी चाहिये।
की दृष्टि से इसमें अनेक सम्भावनायें छिपी हुई है। ___लगभग ३ फुट ऊंचे ४० फुट ५ इंच लम्बे और ३५ सहस्त्रो शीत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतुएं बिता देने पर फुट चौड़े अधिष्ठान वाले इस मन्दिर के प्रदक्षिणा पथ पर भी प्रकृति के प्रागन में निर्भयता से अवस्थित देवगढ 25 मेरी इस मान्यता की पुष्टि शोधक विद्वान् श्री नीरज का यह मन्दिर वहाँ के मभी स्मारको में सर्वाधिक समृद्ध जैन के विचारो से भी होती है।
और महत्वपूर्ण है। तथा अपने निर्मातामों की यशोगाथा द्रष्टव्य-अनेकान्त, वर्ष १७ किरण ४ में प्रकाशित भमर किए हुए है। निबन्ध -देवतापो का गर : देवगड. पृ० १६८