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कैवल्य दिवस एक सुझाव
मुनि श्री नगराज जी
वैशाख शुक्ला दशमी का दिन माया और चला जैन एकता की दृष्टि से भी कैवल्य-दिवस का मनायो गया। प्राचार्यों, मुनियों व श्रावक-श्राविकामो को यह जाना बहुत उपयोगी होगा। सभी संघो में यह एक मनुभव ही विशेषतः नहीं हुमा कि वह हमारा कोई ऐतिहा
निर्विवाद तिथि है। सभी श्वेताम्बर सम्प्रदाय और सभी सिक दिवस था और उसके प्रति हमारा कुछ कर्तव्य भी
दिगम्बर सम्प्रदाय वैशाख शुक्ला दशमी को ही महावीर था। वैशाख शुक्ला 'पनरस' का दिन प्राया, अगले दिन
की कैवल्य तिथि को मानते हैं। दिगम्बर प्राम्नाय के
की समाचार-पत्रों में पढ़ा गया, प्रमुक जगह वैशाली पूणिमा अनुसार महावीर की प्रथम देशना श्रावण कृष्णा प्रतिका समारोह मनाया गया, लोगों ने जाना, यह बाधा का पदो को होती है। इस बीच में भगवान महावीर गणघरो ऐतिहासिक दिवस है इसी दिन बुद्ध का जन्म हुआ था। के प्रभाव में निश्शब्द रहते हैं। इसी दिन बद्ध को सम्बोधिलाभ हुअा था और इसी श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार भगवान महावीर दिन बुद्ध का परिनिर्वाण भी। बुद्ध के सम्बोधि-दिवस की प्रथम देशना कैवल्य-प्राप्ति के अनन्तर ही देव और को जहां सर्व साधारण भी जानते हैं वहाँ महावीर के देवांगनामो के बीच हो जाती है। व्रत-लाभ की दृष्टि कैवल्य-दिवस को बहुत सारे जैन भी नहीं जानते । इसका
से वह वाणी फल-शून्य रहती है। दूसरी देशना में कारण है, कैवल्य-दिवस के नाम से जैन धर्म-सघों में कोई
इन्द्रभूति प्रादि दीक्षित होते हैं और चतुर्विध तीर्थ की प्राध्यात्मिक समारोह किये जाने की प्रथा नही है।
स्थापना होती है। भगवान महावीर के जन्म, कैवल्य और परिनिर्वाण देशना-काल की इस विविधता से कैवल्य-दिवस ये तीन उत्कृष्ट जीवन प्रसंग होते हैं। चैत्र शुक्ला प्रभावित नहीं होता । सभी जैन परम्परामों में त्रयोदशी जन्म-जयन्ती के रूप में मनाई जाने लगी है। तदसम्बन्धी मान्यता ज्यो की त्यो रहती है। कैवल्यकातिक प्रमावस्या भी परिनिर्वाण दिवस के रूप में कुछ दिवस की स्थापना के बाद जैन समाज के पास तीन कुछ मनाई जाती है । वैशाख शुक्ला दशमी कैवल्य-दिवस पर्व ऐसे हो जाते है. जिन्हे वह निर्विवाद तथा एक दिन के रूप में कही मनाई जाती हो, ऐसा नहीं सुना गया। और एक साथ मना सकता है। वे होगे-जन्म-दिवस जन्म और परिनिर्वाण-दिवस से भी अधिक महत्त्व कुछ कैवल्य-दिवस और परिनिर्वाण दिवस । अपेक्षामों से कैवल्य-प्राप्ति का है । सभी जैन संघो में इस सम्बत्सरी पर्व की एकता में अनेक बाधाएं दीवार दिवस को प्राध्यात्मिक समारोह के रूप में मनाने का बनकर खड़ी हैं। इस स्थिति मे कैवल्य-दिवस की क्रम चालू हो, तो एक बहुत ही सात्त्विक परम्परा का स्थापना बहुत कुछ पूरक हो सकेगी ऐसी माशा श्री गणेश होगा। सार्वजनिक स्तर पर इसे मनाते रहने है। अपेक्षा है संघो एवं संस्थानों के दायित्वशील में जैन शासन की गौरव वृद्धि का एक अभिनव सूत्रपात लोग इस ओर ध्यान दे व अपने अपने परिप्रेक्ष में होगा।
इम सात्विक परम्पग का श्री गणेश करे। 1बौद्धो की सर्वास्तिवादो परम्परा मे बुद्ध का परिनिर्वाण कार्तिक पूर्णिमा को माना जाता है।