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देवगढ़ का शान्तिाय जिनालय
स्त्री-पुरुषों का मनोरम अंकन हुपा है।
विद्वानों को निमित्त पाठक कहा जाता था। प्राजीवक चौखट के ऊपर मध्य में बहुत ही सुन्दर कमलाकृति सम्प्रदाय में निमित-शास्त्र बहुत प्रचलित था । ईसा पूर्व प्रासन पर द्वितीय तीर्थकर भगवान् अजितनाथ का पना- प्रथम शती में कालकाचार्य ने इन्ही से निमित्त-शास्त्र को
सन में और उनके दोनो मोर एक एक तीर्थकर का पर्ण विद्या प्राप्त की थी। इन सोलह स्वप्नो का , कायोत्सर्गासन में अंकन है। उनमें भी दोनो पर पांच दिगम्बर जैन परम्पग में बहत अधिक महत्व है और पांच विद्याधर युगल उडते हुए दिखाये गये हैं और उनके विभिन्न ग्रन्थो में विस्तार से उनका फल बताया गया ऊपर नवग्रहो का प्रकन है । इसके ऊपर एक नवीन पक्ति है। श्वेताम्बर जैन परम्पग में भी भगवान जिनेन्द्र के प्रारम्भ होती है, जिसके मध्य में एक देवकुलिदा में एक पूर्व माता को म्वान-दर्शन अावश्यक माना गया है, विन्तु पघासन तीर्थकर और उनके दोनों ओर चार-चार पद्या- उनके यहां इनकी संख्या चौदह म्वीकार की गई है। सन और छह-छह कायोत्सर्गासन तीर्थकरी का अंकन है। सोलह-स्वप्नो के दृश्य उत्कीर्ण करने की परम्परा बहुत इस पक्ति के ऊपर तथा मध्यवर्ती देवकुलिका के दोनो प्रचलित रही है, इसे खजुराहो के घण्टई मन्दिर और पोर तीर्थंकर की माता के मोलह मंगल म्वप्नों का ग्रादिनाथ मन्दिर में प्राव के स्वरतर बमहि में भी देखा मार्मिक चित्रण है, उनमें (बायें से दाये) एक हाथी, बैन, जा सकता है। यत्र नत्र पब भी ये दृश्य अंकित किये सिह, लक्ष्मी, झूलती हई दो मालाये पूर्ण चन्द्रमा, उदीय- जाते हैं। मान सूर्य, मरोवर में क्रीडा करता हमा मछलियों का इम मन्दिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण युगल । देवकुलिका के दाये : दो स्वर्ण कलश, पद्य म्वानो की मोलह संख्या निर्विवाद रूप में सिद्ध करती है, मगेवर, लहराता हया समुद्र ग्लजटिन मिहामन, स्वर्गीय किएम मन्दिर का सम्बन्ध दिगम्बर जैन परम्परा मे विमान, धरगगेन्द्र का भवन, रत्न ममह और प्रज्वलित रहा है। उपयुक्न मोलह स्वप्नी की बायी पोर महाअग्नि अंकित है।
काली नाम की नगमता पाठयी विद्यादेवी का प्रकन है, मंगल-स्वप्नो की मान्यता भारत में प्रत्यन्त प्राचीन जिसका एक हाथ अभय मुद्रा में है, एक हाथ किंचित है। छान्दोग्य उपनिषद् में उल्लेख है कि वह यदि स्त्री खण्डित हो गया है और शेप दो में वज्र तथा घण्टी है। को देखे तो समझ ले कि अभीष्ट कार्य सफल होगा। उन 17 शाह, डा. उमाकान्त प्रेमानन्द : म्टडीज इन जैन स्वप्नों के निमित मे समझ लें कि उन कार्यों में सफलता पार्ट, बनारस १९५२ पृ१०५, टिप्परगी-१ मिलगी"" दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार भगवान 18 (अ) जिनमेन, महापुराण प्रादि पुगण, मर्ग १२, । जिनेन्द्र जब माता के गर्भ में प्राने लगते है, नब माता पद्य १५५ और प्रागे । मोलह स्वप्नों को देखनी हैं। प्रत. ये स्वप्न भगवान्
(ब) वीरनन्दी : चन्द्रप्रभ चरित, १६-६३ । 'जिनेन्द्र के जन्म का अनुमान कराने में सूचना स्वरूप है।
(म) मुनिमुव्रतकाव्य, ३, २८, २६ । भगवान् महावीर मे पहले स्वप्न-फल प्रदर्शित करने वाले
(ड) रूपचन्द्र -पच मगल पाठ. जिनवाणी मग्रह।
कलकला, १९३७ । पृ० ५२ ॥ 14 (अ) भगवज्जिनमेनाचार्य, महापुराण प्रादि पुरागाः, 19 (न) भद्रबाह । कल्पमूत्र, डा. हमन याकोबी द्वाग पं. पन्नालाल जैन मम्पादित, काशी, वि.म.
मूत्र ३, पृष्ठ २१६ । नथा मूत्र ३१-३६, पृष्ठ २००७ । मर्ग १२. श्लोक १०१ मे १ १तक ।
२२६ मे २८ नक। (ब) जिनमेन, इग्विश पुराण, (बम्ब, १९२०) (ब) शाह, डा. यू. पी. • स्टडीज इन जैन पार्ट, मर्ग ८ श्लोक ५८ तथा ७४ ।
पृ० १०५। 15 देखिये-दादोग्योपनिषद, २,८-- |
20 शुक्ल, डा० द्विजेन्द्रनाथ - भारतीय वास्तुशाग्त्र, 16 वोग्नन्द्री-नन्द्रप्रभ पग्नि, मर्ग १६. ५७
पृ. २७१.२७४ ।