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देवगढ का शान्तिनाथ जिनालय
प्रो० भागचन जैन, भागेन्दु, एम० ए० शास्त्री
सामान्य परिचय
इसका प्राचीन नाम 'लुअच्छगिरि" था। इस नाम का देवगढ़ उत्तरप्रदेश में झासी जिले की ललितपुर तह- स्पष्ट उल्लेख विक्रम सं. ११६ के गुर्जर प्रतिहार राजा सील में वेतवा नदी के किनारे, २४° २२ प्रक्षाश और भोज के शिलालेख में है। प्रत १०वी शताब्दी ईस्वी ७८°१५ देशातर पर स्थित है। मध्य रेलवे के दिल्ली- तक यह स्थान 'लअच्छगिरि' नाम से प्रसिद्ध था। बम्बई मार्ग के ललितपुर स्टेशन से यह दक्षिण-पश्चिम में बारहवी शती से इस स्थान का नाम कीति गिरि ३३ किलो मीटर की एक पक्की सड़क से जुड़ा है। उसी प्रचलित हुआ। अत: यह कहा जा सकता है कि इस रेलवे के जाखलौन स्टेशन से इसकी दूरी १३ किलो स्थान का नाम 'देवगढ' १२वीं शताब्दी के अन्त का मीटर है।
तेरहवीं के प्रारम्भ में किसी ममय रखा गया। प्राचीन देयगढ विन्ध्याचल के पश्चिमी छोर की एक 'देव' शब्द 'देवता' का वाची है और 'गह' का शाखा पर गिरि दुर्ग के मध्य स्थित था। जबकि अर्थ 'दुर्ग' होता है । मेगे अपनी राय में यहाँ दुर्ग के प्राज वह उसकी पश्चिमी उपत्यका में बसा है। 1.देखिये-मन्दिर मम्या १२ के महामण्डप के मामने वर्तमान में यहाँ ५४ घरो में ३६६ मनुष्य निवास करते अवस्थित अधमरप के दक्षिण पूर्व के स्तम्भ पर हैं। एक विशाल जैन धर्मशाला और शामकीय विश्राम
उत्कीर्ण अभिलेख। गृह भी यहा है। ग्राम के उत्तर में प्रसिद्ध 'दगावतार-
- 2 देखिये --- देवगढ़ दुर्ग के दक्षिण पश्चिम में राजघाटी
ही मन्दिर' तथा शासकीय संग्रहालय और पूर्व में पहाडी पर
के किनारे बन्देलवशी गजा कीतिवर्मा के मन्त्री उसके दक्षिणी पश्चिमी कोने पर जैन स्मारक हैं। इस
वत्सराज द्वारा उत्कीर्ण अभिलेख। पहाडी की अधित्यका को घेरे हए एक विशाल प्राचीर
3. (अ) ग्रम मह : अमरकोष, वाराणसी, १९५७ : है, जिसके पश्चिम में कुज द्वार और पूर्व में हाथी दरवाजा
काण्ड १, वर्ग १, पद्य ७-६ देखे जा सकते है। इसके मध्य एक प्राचीर और है,
(ब) धनंजय · नाममाला, अमरकीति विरचित जिसे 'दूसरा कोट' कहते हैं, इसी के मध्य वर्तमान जैन
भाष्योपेता, प. शम्भुनाथ त्रिपाठी सम्पादित, स्मारक है । 'दूगरे कोट' के मध्य में भी एक छोटा-सा
काशी, १६५० . श्लोक ५६, पृष्ट ३. प्राचीर था, जिमके अवशेष ग्राज भी विद्यमान हैं। इस
(स) मस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ, चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद प्राचीर के भी मध्य एक प्राचीर सदा दीवाल सन १६३०
गर्मा तथा तारितीश झा सम्पादित, मे स्वर्गीय मठ पदमचन्द जी बैनाडा प्रागरा निवासी की
इलाहाबाद, १९५७ पृष्ठ ५३० अोर से बनाई गई, जिसमे दोनो पोर खण्डित मूर्तिया (2) नालन्दा विशाल द मागर, नवलजी मम्पा. जडी हुई है । विशाल प्राचीर के दक्षिण पश्चिम में वराह दिन, : देहली, विकमान २००७ पृष्ट ६१३ मन्दिर और दक्षिण में वेतवा नदी के किनारे नाहर घाटी 4. (अ) अमरसिंह अमरकोष,२-८-१७ पौर राजघाटी है।
(ब) धन जय, नाममाला, श्लोक १:, पृष्ठ ६
(स) मस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ, पृष्ठ ५२३ देवगढ, यह इस स्थान का प्राचीन नाम नहीं है। (ड) नालन्दा विशाल शब्द सागर, पृष्ठ ३.५