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कविवर पं० श्रीपाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल एम. ए. पी-एच. डी.
१५वी शताब्दी मे भट्टारक सकलकोति के आकर्षक अबाईदाम, अनन्तदास, वल्लभदास एवं विमलदास । पुत्रियां एवं सेवाभावी व्यक्तित्वसे बागड (राजस्थान) एव गुजरात थी अमरबाई, भगनीबाई एव वेलबाई। इस प्रकार प. प्रदेश के साधु एव भावक दोनो ही वों में साहित्य के प्रति श्रीपाल बहु कुटुम्ब वाले विद्वान थे। अद्भत प्रेम उत्पन्न हो गया था। सकलकीति स्वय ने तो कवि ने अपने पदों एव गीतों मे भ. अभयचन्द्र, भ. एक विशाल साहित्य की रचना की ही थी किन्तु अपने शुभचन्द्र एव भ. रत्नचन्द्र के गुण गाये हैं इससे ज्ञात होता शिष्य प्रशिष्यो में भी साहित्य सेवा के भावो को कूट-कूट है कि उन्होंने अपने जीवन में उक्त तीनों भट्टारकोका समय कर भर दिया था। यही कारण है कि उनके पीछे होने देखा था। इन भट्रारकों के सम्बन्ध मे गीत लिखकर कवि वाले प्रायः सभी भट्टारको एवं उनके शिष्योने खूब साहित्य ने एक अच्छी परम्परा को जन्म दिया। इनके पदों एव रचना की। इनमे ब्रह्म जिनदास, भ० ज्ञानभूषण, भ. शुभ- गीतो में ऐतिहासिक सामग्री भरी पड़ी है और कितनी ही चन्द्र, भ. रत्नकीति, कुमुदचन्द्र प्रादि के नाम विशेषरूप से नवीन जानकारी उपलब्ध होती है। कार्य की कृतियो को उल्लेखनीय है । साधूवर्ग से प्रभावित श्रावकोंने भी साहित्य हम निम्न भागो मे विभक्त कर सकते हैसेवा के इस अनुष्ठान मे पूरा योग दिया और कितनी ही १ऐतिहासिक गीत, २. तीर्थवन्दना गीत, ३. स्तुति महत्पूर्ण रचनाए लिखकर समाज को एक नया मार्ग दर्शन
परक पद, ४ एव श्रावकाचार प्रबन्ध । दिया । प्रस्तुत लेख में ऐसे ही एक श्रावक कवि का परि
ऐतिहासिक गोतचय दिया जा रहा है--
कविवर श्रीपाल ने कितने ही ऐतिहासिक पद लिखे __कविवर श्रीपाल १८वी शताब्दी के विद्वान् थे । गुज
है । ये पद तत्कालीन भट्टारको, श्रावकों एवं संघ रात व सूरत नगर इनका जन्म स्थान था जो सभवत।
पतियो की प्रशसा मे लिखे गये है। इन गीतों के अध्ययन हेमतर के नाम से भी विख्यात था। इसी नगर में रहते थे।
से भट्टारकों के व्यक्तित्व एव लोकप्रियता पर अच्छा प्रभाव कवि के पूर्वज पितामह बणायग एव पिता जीवराज जो
पडता है। जैन कवियो ने इस प्रकार के किसी साधु एव सिंपरा जातिके श्रावक थे । श्रीपाल अपने पिता के लाडले शावक के व्यक्तित्व पर बढ़त कम साहित्य लिखा है। पुत्र थे इसलिए लालन-पालन की पोर भी विशेष ध्यान भ. रत्नकीति एव कमदचन्द्र के ग्राम्नाय में होने वाले दिया गया था। प्रारम्भ से ही अध्ययन की पोर विशेष साधनो एव श्रावक विद्वानों ने विशेष रूप से लिखे है । रुचि होने के कारण ये साधुग्रो की सगति में अधिक रहने लेखक को ऐसे १०० से भी अधिक गीत एवं पद प्राप्त हो लगे । पहले उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्र श, गुजराती। चके है। श्रीपाल द्वारा भ. अभयचन्द्र के प्रति लिखे हए दो एवं राजस्थानी भाषा का अध्ययन किया एवं उनके पदों को पढियप्रवचनो का लाभ उठाया।
राग धन्नासी श्रीपाल का किस प्रायु में विवाह हुअा यह तो उनकी
चन्द्रवदनी मृगलोचनी नारि । रचनायो एव प्रशस्तियो से ज्ञात नही हो मका है । किन्तु अभयचन्द्र गछ नायक वंदो सकल संघ जयवारि ॥१॥ एक प्रशस्ति के अनुसार उनकी स्त्रीका नाम महत्तलदे था। मदन महामद मोडेरा मुनिवर, गोयमसम गुणषारी। इसी प्रशस्ति मे उनके ६ पुत्रो एवं तीन पुत्रियो के नाम क्षमावंतवि गंभीर विचक्षण, गयो गुण भंडारी ॥२॥ भी गिनाये गये है पुत्रों के नाम थे प. परवई, अमरसी, निखिल कलानिषि बिमल विद्यानिषि विकटवादी हल हारी।