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प्रनेकान्त
मै मन्त्री भी रहा। किन्तु प्रबन्ध करने में राग-द्वेप की कलकत्ता में बाबू धन्नूलाल जी अटर्नीके निमन्त्रण पर भनेक झंझटे होती है । मूरजभान जी वकील देवबन्द की सं. १९७२ में गए थे। तब भी पण्डितजी मुझे साथ ले प्रेरणा से एक जैन छात्र मुझे निकालना भी पड़ा जिसका गए थे । कलकत्ते के सैकडो उद्भट विद्वान् सभा मे प्रामत्रित कि मुझे अद्यापि अनुताप है। अत: पठन-पाठन ही मेरी थे। पण्डितजी ने बडी विद्वत्ता के साथ जिनागमोक्त द्रव्य, प्रकृति के अनुकल पड़ा। विद्यालय के अंगभूत छात्राश्रम, गुण, पर्यायों तथा अनेकान्त का प्रतिपादन किया। १० मुपरिन्टेन्डेन्ट, रसोइया. भोजनशाला की सुव्यवस्था भी सतीशचन्द्र जी डी. लिट् , प्रमथनाथ न्यायचक्रवर्ती आदि कर दी गई, यो मोरेना विद्यालय का तदानीन्तन अत्यधिक २०० वैष्णव ब्राह्मण चूड़ामणि विद्वानो ने प० जी को का नाम काम बढ़ गया था। १०० छात्र थे ७ अध्यापक न्यायवाचस्पति' पदवी से अलकृत किया ।
इसी प्रकार अजमेरमे हजारो जैना जैन जनता के सन्मुख बम्बई परीक्षालय की वार्षिक परीक्षाएं होती थीं। स्वामी श्रद्धानन्दजी के साथ पण्डितजी का शास्त्राथं हुआ। फल १० प्रतिशत निकलता था। विद्यालय में पढ़कर प० पडितजी की अकाटय यक्तियो के सम्मुख स्वामी जी की वंशीधर जी, पं० मक्खनलाल जी ने प्रष्ट सहस्री में अच्छे युक्तियां निर्बल रही। उस समय "सरस्वती" पत्र के नम्बर प्राप्त किए थे। पुनः अग्रिम वर्ष नोकवातिक मे सम्पादक महावीर प्रसाद जी द्विवेदी अादि प्रौढ विद्वानो ने भी परीक्षा देकर उत्तीर्णता प्राप्त कर ली । अत्यन्त प्रसन्न स्वकीय प्रसिद्ध पत्रिकामो मे यही टिप्पणी लिखी थी कि होकर गुरुजी ने १० मक्खनलाल जी पोर वशीधर जी का जनो की ओर से विशेष प्रबल यक्तिया दी गई थी। अजन्यायालकार पदवी से विभूपित किया था उस दिन विद्या- मेरमें मेरा भी प० यज्ञदत्तजी न्यायशास्त्री से सस्कृत भाषा लय मे विशेष अधिवेशन किया गया था। और पण्डितजी मे दो दिन शास्त्रार्थ हपा था । जैनधर्म की प्रकाण्ड प्रभाने मुझे अभिनन्दित किया तथा वेतन मे १०) मासिक बना हई।। वटि की। हित बढ़ाया। तथा स्वपुरुषार्थ से जिनवाणी पण्डितजीकी समय पर सूझ बड़ी तीक्ष्ण थी । प्रतिष्ठा, की प्रभावना देखकर अनेक पुत्र जन्मो से भी अधिक मेला, दशलक्षण, शास्त्रसभामो मे भी तत्त्वो का प्रतिपादन प्रात्मीय हर्ष का अनुभव किया, अपने लगाए हुए वृक्ष के अन्तःप्रविष्ट होकर करते थे। जोबनेर, अटेर, भिण्ड, मधुर फलो का पास्वादन कर पण्डित जी ने हर्प से गद्गद् मोनागिर, दिल्ली प्रादि मे गम्भीर सुशिक्षित वकील, होकर ये शब्द कहे कि-"प्राज मुझे परम हप है कि वरिष्टर, दार्शनिक प्रादि विद्वत्समाज में प० जी का धाराविद्यालय में उच्चकोटि के न्याय और सिद्धात के अध्येता, प्रवाही व्याख्यान गम्भीर विद्वत्तापूर्ण होता था। वे अध्यापक विद्यमान है।
जिनागम को दिपाबने वाले सूर्य थे। बुद्धि वैभव
बम्बई मे माधौबाग मे पडित जी का सार्वजनिक गुरुजी जैनधर्म प्रभावनार्थ बाहर भी जाते थे तो भाषण हुमा । ८ हजार विचारशील जनता उपस्थित थी। मुझे भी साथ रखते थे। कई स्थानो पर गर्विष्ठ विद्वान् ईश्वरदास, अनेकात द्रव्यनिरूपण विषयो पर प० जी २ पा जाते थे जो कि कठिन मस्कृत भाषा मे भाषण करते घण्टे तक बोलते रहे। गुणी सज्जनो ने पण्डितजी को हए पूर्व पक्ष उपस्थित कर देते थे। वे दक्षिण महाराष्ट्र "स्याद्वादवारिधि" पदवी प्रदान कर कृतज्ञता प्रगट की। सभा के सभापति होकर बेलगाव गये थे। उनके साथ परम पण्डित जी स्वल्प सन्तोषी थे। प्राशा रहित थे। प्रभावक मान्य ५० धन्नालाल जी भी थे। ५० जी मुझे प्रतिभाशाली महापण्डित थे। ५० जी के जीवनकाल में भी साथ ले गये थे। वहा उनका सभापति भाषण नितान्त सिद्धान्त विद्यालय मोरेना का भारी मभ्युदय हमा। आज गम्भीर हा था। दक्षिण के जैन भाइयो की गुरुजी पर कल जो पारातीय विद्वान दृष्टिगोचर हो रहे है सब प. तीव्र श्रद्धा थी। हजारो दाक्षिणात्य जैनबन्धु धनिक उनके जी की शिष्य प्रशिष्य परम्परा मे ही अन्तनिहित है।५० भक्त हो गये थे। चरणस्पर्श करते थे।
जी ने जैन समाज का बड़ा भारी उपकार किया है । जैन