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जैन आगमों के कुछ विचारणीय शब्द
मुनि श्री नथमल
पम्ह या पम्म
पद्म का अर्थ लाल है। छठे तीर्थकर का नाम पद्मजैन मागमो में छह लेश्याए प्ररूपित है। उनमे पाचवी प्रभ है। उनका वर्ण रक्त बतलाया गया है। माणक लेझ्या पप है । पन का प्रावृत रूप 'पम्म' या 'पउम' हो धातु का नाम पदमराग है। वह लाल होता । इसीलिए सकता है किन्तु वेताम्बर साहित्य-मागम कर व भागमेतर उसे लोहितक और अरुणोपल कहा गया। ग्रन्थों में 'पम्ह' रूप मिलता है। पम्ह का सस्कृत रूप पदम लेश्या का हरिताल, हलदी आदि के समान सक्षम होता है। प्राकृत व्याकरण के अनुसार म को 'म्ह'
हैहम पर पर संदेह है कि पीत लेश्या होता है।
के पुद्गलो को पद्म क्यों कहा गया ? इसका समाधान पक्ष्म-पम्ह, पद्म-पम्म या उम
हम निम्न शब्दों में पा जाते हैं। पद्म पीला नहीं होता पम्ह का संस्कृत रूप पद्म नही होता-यह प्रश्न इतने लम्बे समय में क्यो नही उठा? पम्ह का प्रयोग
किन्तु उसका गर्भ भाग पीला होता है। उसी के आधार किसी एक स्थल में एक बार नहीं है, किन्तु अनेक बार
पर इस लेश्या का नाम पद्म रखा गया है। अभयदेव मूरि है। इस स्थिति में यह मान लेना कि लिपि-दोष के कारण
ने इसे पदम गर्भवर्ण वाली बताया है । यह रूप परिवर्तित हो गया. सहज नहीं है। उच्चारणभेद
यदि पाह का पक्षम रूप किया जाय तो भी पीत वर्ण के कारण इमा हो, यह फिर भी संभव हो सकता है।
के साथ इसका सम्बन्ध हो सकता हैं। पक्ष्म का एक अर्थ पम्म प्रौर पम्ह के उच्चारण में बहुत कम भेद है। किन्त केसर (किंजल्क-पुप्परेण) है। पुष्परेणु के समान पीत वर्ण यह उच्चारण भेद सर्वत्र स्थान पा गया, यह भी कठिन वाली लेश्या को पक्षम-लेश्या कहा जा सकता है। कल्पना है। स्थानाग मूत्र मे पम्ह पम्ह कूड, पम्ह गावती इस चिन्तन के तीन फलित हैपम्ह लेस्सा, पम्हा और पाहावई -- इतने प्रयोग मिलते है। १ पम्म का रूप परिवर्तन होकर पम्ह शब्द प्रचलित इनमें वृत्तिकार अभयदेवमुरि ने पम्ह२ का मस्कृत रूप हुप्रा है। पक्ष्म और पम्हकड का सस्कृन र पद्मकट किया है। २. पद्म का पम्म पार्ष व्याकरण-सिद्ध हो तो भले किन्तु वर्तमान प्राकृत व्याकरणो से इसका समर्थन नही हो किन्न वर्तमान प्राकृत-व्याकरण से यह सिद्ध नही है। होता। उनके अनुसार पम्हकूड का सस्कृत रूप पदमकूट ३. पम्ह का मस्कृत हा पक्षम किया जाय तो भी भी हो सकता है।
अर्थ मे सगति हो सकती है। लेश्याम्रो के नाम वर्ण के ग्राधार पर है
इन तीनो फलितो पर विशेष विमर्श के मै अनुसन्धिविश्या वर्ण
लेश्या वर्ण युत्सु वर्ग को मादर प्रामत्रित करता हूँ। कृष्ण काला नेजम अग्निकण, लाल भोग या भोज--- नोल हग
परम पद्मगर्भ वर्ण, पीला रूप-विपर्यय के उदाहरण मिलते है। उनमे एक है कापोत कबूनमिया रग, धूम्र वर्ण शुक्ल सफेद
४. अभिधान चिन्तामणि १४६ ' रक्तौ च पदमप्रभ १. हेमचन्द्र ।
वासुपूज्यो। ५. वही ४.१३० । २. स्थानोगवृति, पत्र २० ।
६. स्थानाग वृत्ति २२१ पद्मगर्भवर्णा लेश्या पीत वर्णे३. स्थानाग वृनि, पE२ ।
त्यर्थ , पद्मलेश्या......