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भ० विनयचन्द के समय पर विचार
(मजयपाल) कृत राज विहार को बतलाया गया है। तब उससे पूर्व स० १३८४ मे वे कहा के राजा थे। यह उस समय तहनगढ़ जन धन से समृद्ध था। उसकी इस स्पष्ट करना चाहिए था। मर्जुनपाल क्या त्रिभुवन गढ़ समृद्धि की पुष्टि चूनड़ी रास की निम्न पक्ति से होती है भी रहा, यदि नही तो फिर उसके साथ एकत्व कैसा? जिसमे उसे—'सग्गखण्ड णं धरियल पायउ'- स्वर्ग खण्ड अर्जुनपाल प्रजयपाल नही हो सकते । क्योकि दोनो के समान सुभग बतलाया गया है। उसे विजयपाल के के समय मे काफो अन्तराल है। प्रजयपाल की प्रशस्ति पुत्र तहनपाल ने बसाया था । वयाना (श्रीपथ) तहनगढ़ सन् १९५० की है और अर्जुनपाल का समय १३८४ से (त्रिभुवनगिरि) और करौली के शासक यदुवंशी क्षत्रिय १४१८ तक बतलाया गया है। ऐसी हालत में दोनों की थे, जो श्रीकृष्ण के वंशज कहलाते थे। उनकी परम्परा एकत्व कल्पना निरर्थक जान पड़ती है। मेरे पास करौली निम्न प्रकार मिलती है - जैताल, विजयपाल, तहनपाल के शासकों को जो सूची है। उसमें भी बहुत राजानो के धर्मपाल, अजयपाल, हरिपाल, सहनपाल और कुमारपाल बाद अर्जुनपाल का नाम दिया है। प्रोर कुवरपाल के बाद प्रादि । इस परम्परा में कुमारपाल का नाम महनगल के अजयपाल का सप्रमाण उल्लेख पागे किया गया है अजय बाद प्राता है, जिसका उल्लेख मन ११९२ के लेख में नरेन्द ही अजयपाल है। और उनका समय भी दिया गया मिलता है । किन्तु वृत्त विलाम वाली परम्पग में प्रयुक्त है। उससे स्पष्ट हो जाता है, कि अर्जुनपाल अजयपाल नामो में कुछ क्रम भग भी पाया जाता है । जैसे धर्मल नही हो सकते । के बाद और अजयपाल से पूर्व कुवरपाल का नाम दिया वत्तविलास की वशावली प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान हुपा है।
हीराचन्द जी प्रोझाके निबन्ध मग्रह में प्रकाशित हुई है। किन्तु नाहटा जी ने लिखा है कि-"जगदीश मिह उसी पर से कुछ पद्य नीचे दिये जाते है। और वे इस गहलोत लिखित गजस्थान के इतिहास मे कगैनी राज्य प्रकार हैका इतिहास दिया है. उसमे अजय राज कुमारपाल के बाद
भये कृष्ण के वश में विजय ल महिपाल । सोहनपाल, नागार्जुन, पृथ्वीपाल के नाम पाते है। तद तिनके सुत परगट भये, तिहणपाल छितिपाल ॥६ नन्तर तिलोकपाल विमलदेव, सांसदेव, प्रामलदेव के नाम प्रश्वमेध जिहि जग किय, दीने अगनित दान । प्राते है। फिर गोकूलदेव के उत्तराधिकारी महाराजा
हेमकोटि वस सहस गो, गज सहस्र परिमान ॥७ अर्जुनपाल का विशेष विवरण है जिसने करौली स १४०५ वीस सह (सह) य सातसं, सासन बीने गाम । में बसा कर राजधानी बसाई। प्रर्जुनपाल का समय म.
धर्मपाल तिनके भये, भप परम के घाम ॥८ १३८४ से १४१८ का दिया है।"
कुंवरपाल तिनके भये, भपति बखत विलास । (जैन सन्देश शोधाक पृ० २७४)
प्रजपाल प्रगट बहुरि, कर्यो जगत प्रतिपाल । नाहटा जी ने ऊपर जिस इतिहास का उल्लेख किया
हरिपाल तिनके भय, भूप मुकुट जिमि हीर । किया है, वह यहा नही है। पर उन्होने अर्जुनपाल को
तिनके साहनपाल नप, साहस समद गंभीर ॥१० प्रजयपाल समझ कर विनयचन्द का समय म० १४०० के
अनगपाल नृप प्रगट हुव, तिनके पथ्वीपाल ।
तिनके सुत प्रगटे बहुरि, राजपाल महिपाल ॥११ पास-पास का बतलाया है। जो किमी तरह भी मंगत नही बैठता । अर्जुनपाल ने स. १४०५ मे जब करौली बसाई
यह क्रम ऐतिहामिक दृष्टि से विरुद्ध-सा जान पडता
है ; क्योंकि अजयपाल की महावन से प्राप्त प्रशस्ति में समय १. तिहुयण गिरि पुरु जगि विक्खायउ,
सन् ११५० (वि० स० १२०७) दिया हपा है । और सग्ग खंडु ण धरियलि प्रायउ । तहिं णिवसंते मुणिवरे प्रजयरिंदहो राज विहारहि ।
प्रजयपाल के उत्तराधिकारी हरिपाल के राज्य को उत्कीर्ण
प्रशस्ति उमी महावन से मन् ११८० (वि० स० १२३७) वेगे विरइय, चूनडिय सोहह मुणिवर जे सुयधारहिं ।। ..
--चुनड़ीरास प्रशस्ति २. देखो, एपिग्राफिका इडिका जिल्द ११० २८६ ।