Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
दसवाँ चरमपद]
[३७
अचरम है।
८०८.[१]णेरइए णं भंते ! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । [८०८-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक गतिचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? [८०८-१ उ.] गौतम ! (वह गतिचरम की दृष्टि से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। [२] एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए ।
[८०८-२] इसी प्रकार (एक असुरकुमार से लेकर) लगातार (एक) वैमानिक देव तक (जानना चाहिए।)
८०९.[१] णेरइया णं भंते ! गतिचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । [८०९-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक गतिचरम से चरम हैं अथवा अचरम हैं ? [८०९-१ उ.] गौतम ! (अनेक नैरयिक गतिचरम की अपेक्षा से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [२] एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया। [८०९-२] इसी प्रकार लगातार (अनेक) वैमानिक देवों तक (कहना चाहिए।) ८१०.[१]णेरइए णं भंते ! ठितीचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । [८१०-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक स्थितिचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? [८१०-१ उ.] गौतम ! (एक नैरयिक स्थितिचरम की दृष्टि से) कथंचित् चरम है, कथंचित् अचरम
[२] एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए। [८१०-२] लगातार (एक) वैमानिक देव-पर्यन्त इसी प्रकार (कथन करना चाहिए।) ८११. [१]णेरइया णं भंते ! ठितीचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । [८११-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक स्थितिचरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम हैं ?