Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सोलहवाँ प्रयोगपद]
[२३९
नारक कभी-कभी एक भी नहीं पाया जाता; क्योंकि नरकगति के उपपात का विरह बारह मुहूर्त का कहा गया है। यह एक भंग हुआ ।
द्वितीय-तृतीय भंग- जब कार्मणशरीरकायप्रयोगी नारक पाए जाते हैं, तब जघन्य एक या दो और उत्कृष्ट असंख्यात पाए जाते हैं। इस दृष्टि से जब एक कार्मणशरीरकायप्रयोगी पाया जाता है, तब द्वितीय भंग होता है और जब बहुत-से कार्मणशरीरकायप्रयोगी पाये जाते हैं, तब तृतीय भंग होता है। असुरकुमारादि दशविध भवनवासियों की एकत्व-बहुत्व-विशिष्ट प्रयोग-सम्बन्धी वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझ लेनी चाहिए। एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों और तिर्यचपंचेन्द्रियों की प्रयोग सम्बन्धी प्ररूपणा
१०८०. पुढविकाइया णं भंते ! किं ओरालियसरीरकायप्पओगी ओरालियमीससरीरकायप्पओगी कम्मासरीरकायप्पओगी ?
गोयमा ! पुढविकाइया णं ओरालियसरीरकायप्पओगी वि ओरालियमीससरीरकायप्पओगी वि कम्मासरीरकायप्पओगी वि। एवं जाव वणस्सइकाइयाणं । णवरं वाउक्काइया वेउव्वियसरीरकायप्पओगी वि वेउव्वियमीससरीरकायप्पओगी वि।
[१०८० प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव क्या औदारिकशरीरकाय-प्रयोगी हैं, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी हैं अथवा कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी हैं ?
[१०८० उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव क्या औदारिकशरीरकाय-प्रयोगी हैं, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी हैं और कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी भी हैं।
__इसी प्रकार अप्कायिक जीवों से लेकर वनस्पतिकायिकों तक (प्रयोग सम्बन्धी वक्तव्यता कहनी चाहिए।) विशेष यह है कि वायुकायिक वैक्रियशरीरकाय-प्रयोगी भी हैं और वैविक्रयमिश्रशरीरकाय-प्रयोग भी हैं ।
१०८१. बेइंदिया णं भंते ! किं ओरालियसरीरकायप्पओगी जाव कम्मासरीरकायप्पओगी?
गोयमा ! बेइंदिया सव्वे वि ताव होजा असच्चामोसवइप्पओगी विओरालियसरीरकायप्पओगी वि ओरालियमीससरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे यं कम्मासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २ । एवं जाव चउरिदिया।
[१०८१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव क्या औदारिकशरीरकाय-प्रयोगी हैं, अथवा यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी हैं ?
[१०८१ उ.] गौतम ! सभी द्वीन्द्रिय जीव असत्यामृषावचन-प्रयोगी भी होते हैं, औदारिकशरीरकाय
२. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३२४