Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र
[५] वेमाणिया दुविहा-कप्पोवगा कप्पातीता य । कप्पोवगा बारसविहा, तेसिं एि एवं चेव दुगतो भेदो । कप्पातीता दुविहा-गेवेजगा य अणुत्तरा य । गेवेजगा णवविहा, अणुत्तरोववाइया पंचविहा, एतेसिं पजत्तापजत्ताभिलावेणं दुगतो भेदो ।
_[१५२०-५] वैमानिक-देव दो प्रकार के होते हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीत । कल्पोपपन्न बारह प्रकार के हैं । उनके भी (पर्याप्तक और अपर्याप्तक, यों) दो-दो भेद होते हैं । उन सभी के वैक्रियशरीर होता है ।) कल्पातीत वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं-ग्रैवेयकवासी और अनुत्तरोपपातिक । ग्रैवेयक देव नौ प्रकार के होते हैं, और अनुत्तरौपपातिक पांच प्रकार के । इन सबके पर्याप्तक और अपर्याप्तक से दो-दो भेद (कहने चाहिए) । इन सबके वैक्रियशरीर होता है ।)
विवेचन - वैक्रियशरीर के भेद-प्रभेद - प्रस्तुत सात सूत्रों (१५१४ से १५२० तक) में वैक्रियशरीर के विधिद्वार के सन्दर्भ में उसके एकेन्द्रियगत और पंचेन्द्रियगत भेद-प्रभेदों का निरूपण किया गया है।
फलितार्थ - वैक्रियशरीर के सभी भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा का फलितार्थ यह कि एकेन्द्रियों में केवल पर्याप्तक-बादर-वायुकायिक जीवों के वैक्रियशरीर होता है ।
पंचेन्द्रियों में - पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में - संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-पर्याप्तकों के वैक्रियशरीर होता है ; जबकि मनुष्यों में-पंचेन्द्रिय-गर्भज-कर्मभूमिक-संख्यातवर्षायुष्क-पर्याप्तक-मनुष्यों के वैक्रियशरीर होता है । देवों में सभी प्रकार के पर्याप्तक-अपर्याप्तक-भवनपतियों, वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों के वैक्रियशरीर होता है । नारकों में-सातों ही नरकपृथ्वियों के पर्याप्तक-अपर्याप्तक नारकों के वैक्रियशरीर होता
__ निष्कर्ष यह है, वायुकायिकों में, पर्याप्तक-अपर्याप्तक-सूक्ष्म और अपर्याप्तक-बादर-वायुकायिकों में वैक्रियलब्धि नहीं होती । पंचेन्द्रियों में जलचर-स्थलचर-चतुष्पद, उर:परिसर्प, भुजपरिसर्प और खेचर तिर्यञ्च-पंचेन्द्रियों को तथा मनुष्यों में गर्भज, पर्याप्तक, संख्येयवर्षायुष्क-मनुष्यों को छोड़ कर शेष मनुष्यों में वैक्रियलब्धि सम्भव नहीं हैं ।
वाणमंतराणं अट्ठविहाणं-वाणव्यन्तरदेव ८ प्रकार के हैं-(१)यक्ष, (२)राक्षस, (३)किन्नर, (४) किम्पुरुष, (५) भूत, (६)पिशाच, (७)गन्धर्व और (८)महारोग ।
जोइसियाणं पंचविहाणं-ज्योतिष्कदेरव ५ प्रकार के हैं- (१)चन्द्र, (२)सूर्य, (३)ग्रह, (४)नक्षत्र और (५)तारा ।
१.. पण्णवणासुत्तं (प्रस्तावनादि) भाग-२, पृ. ११८ २. प्रज्ञापना., मलयवृत्ति, पत्र ४१६