Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 530
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान - पद ] अहे जाव अहेसत्तमा पुढवो, तिरियं जाव सयंभुरमणे समुद्दे, उड्ढं जाव पंडगवणे पुक्खरिणीओ। [.१५४८ प्र.] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत नारक के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? [ ५०९ [उ.] गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाणमात्र तथा आयाम ( लम्बाई) की अपेक्षा से जघन्य सातिरेक (कुछ अधिक) एक हजार योजन की और उत्कृष्ट नीचे की ओर अधः सप्तमनरकपृथ्वी तक, तिरछी यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्र तक और ऊपर पण्डकवन में स्थित पुष्करिणी तक ( की अवगाहना होती है ।) १५४९. पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहा बेइंदियसरीरस्स (सु. १५४७ [१])। [१५४९ प्र.] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? [उ.] गौतम ! जैसे (सू. १५४७ - १ में) द्वीन्द्रिय (के तैजसशरीर) की अवगाहना कही है, उसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक की अवगाहना समझनी चाहिए।) १५५०. मणूसस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! समयखेत्ताओ लोगंतो । [१५५० प्र.] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत मनुष्य के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बड़ी गई है ? [उ.] गौतम ! (मनुष्य के तैजसशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना) समयक्षेत्र (मनुष्यक्षेत्र) से लोकान्त (ऊर्ध्वलोक या अधोलोक के अन्त) तक (की होती है।). १५५१. [१] असुरकुमारस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ- बाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं अहे जाव तच्चाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते, तिरियं जाव सयंभुरमणसमुद्दस्स बाहिरिल्ले वेइयंते, उड्डुं जाव इसीपब्भारा पुढवी ।

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